भारत के साथ युद्ध से पाकिस्तान को क्या नफा-क्या नुकसान हुआ? इस सवाल से परे हैं आसिम मुनीर क्योंकि पहलगाम अटैक के जवाब में हुए ऑपरेशन सिंदूर से उन्हें निजी फायदा हुआ है. खबर है कि पाकिस्तान में आसिम मुनीर को प्रमोशन देकर फील्ड मार्शल बना दिया गया है.
क्या बोले आसिम मुनीर
पाकिस्तान ने अपने सेना प्रमुख (सीओएएस) जनरल आसिम मुनीर को फील्ड मार्शल के सर्वोच्च सैन्य रैंक से सम्मानित किया है. बड़ी बात यह है कि, पाकिस्तान के इतिहास में दूसरी बार है जब किसी सैन्य अधिकारी को प्रमोशन में ये बड़ी पोस्ट हासिल हुई है. इससे पहले, 1959-1967 के बीच अयूब खान ने खुद को इस रैंक से नवाजा था.
फील्ड मार्शल आसिम मुनीर ने अपने बयान में कहा कि, “मैं इस सम्मान को प्राप्त करने के लिए अल्लाह तआला का आभारी हूं, मैं इस सम्मान को पूरे मु्ल्क, पाकिस्तान सशस्त्र बलों, विशेष रूप से नागरिक और सैन्य शहीदों और गाजियों को समर्पित करता हूं. मैं पाकिस्तान के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और कैबिनेट का उनके भरोसे के लिए आभार व्यक्त करता हूं. यह सम्मान मुल्क का भरोसा है, जिसके लिए लाखों ने शहादत दी है.” उन्होंने कहा कि “यह कोई निजी सम्मान नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान सशस्त्र बलों और पूरे मुल्क का सम्मान है.”
क्या होती है फील्ड मार्शल रैंक?
पाकिस्तान में बीते 5 से अधिक दशकों में यह हुआ है कि किसी को फिर से इस रैंक से नवाजा गया है. फील्ड मार्शल सबसे हाई लेवल रैंक है और आम तौर पर जनरल (चार सितारा) से ऊपर होती है और इसे पांच सितारा रैंक के रूप में जाना जाता. एक खास बात ये है कि ये रैंक औपचारिक होती है और या फिर युद्धकाल में दी जाती है. इसके अलावा युद्ध के दौरान विशेष परिस्थितियों में खास सैन्य उपलब्धियों के हासिल करने पर ये रैंक दी जाती है.
भारत में फील्ड मार्शल को सेना में सबसे बड़ी पोस्ट माना जाता है. उन्हें जनरल का पूरा वेतन मिलता है साथ ही उन्हें उनकी मृत्यु तक एक सेवारत अधिकारी माना जाता है.
जनरल मुहम्मद अयूब खान थे पाकिस्तान में पहले फील्ड मार्शल
पाकिस्तान के इतिहास में यह रैंक केवल एक बार 1959 में जनरल मुहम्मद आयुब खान को दिया गया था, जो उस समय पाकिस्तान सेना के कमांडर-इन-चीफ और बाद में देश के राष्ट्रपति बने. सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को भारत के ऑपरेशन सिंदूर के खिलाफ पाकिस्तान की ओर से शुरू किए गए ऑपरेशन बन्यनुन मार्सूस में उनके सैन्य नेतृत्व, वीरता और पाकिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता के लिए इस रैंक से सम्मानित किया गया है. ऑपरेशन बन्यनुन मार्सूस का अर्थ है ‘शीशे की ठोस दीवार’
पाकिस्तान में फील्ड मॉर्शल रैंक की खास बातें
रैंक और स्थिति
सेवा शाखा: पाकिस्तान सेना
रैंक स्तर: पांच सितारा (NATO कोड: OF-10)
अगला निचला रैंक: जनरल
समकक्ष रैंक: नौसेना में एडमिरल ऑफ द फ्लीट, वायु सेना में मार्शल ऑफ द एयर फोर्स
वेतन ग्रेड: शीर्ष स्केल (सम्मानजनक; कोई अतिरिक्त शक्तियां या विशेषाधिकार नहीं)
हालांकि यह रैंक आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त है, लेकिन इसके साथ किसी कमांड का अधिकार या संवैधानिक शक्ति नहीं मिलती. यह रैंक केवल सम्मानजनक है और असाधारण सैन्य सेवा का प्रतीक है.
संविधान के तहत शक्तियां
पाकिस्तान के संवैधानिक और कानूनी ढांचे के अनुसार पाकिस्तान के राष्ट्रपति सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर हैं. प्रधानमंत्री के पास कार्यकारी शक्तियां होती हैं और वे राष्ट्रीय शासन, सैन्य नियुक्तियों और नीतियों के लिए जिम्मेदार होते हैं. फील्ड मार्शल की नियुक्ति प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, रक्षा मंत्रालय और संभवतः सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के संवैधानिक मार्गदर्शन के साथ एक विशेष अपील के माध्यम से की जाती है.
इसके प्रतिष्ठित होने के बावजूद, फील्ड मार्शल का रैंक अतिरिक्त संवैधानिक प्राधिकार प्रदान नहीं करता. सैन्य कर्मियों के सभी कार्य संवैधानिक सीमाओं के भीतर होने चाहिए. पाकिस्तानी कानून में फील्ड मार्शल की नियुक्ति के लिए कोई स्थायी या नियमित तंत्र नहीं है. यह रैंक कोई अतिरिक्त विधायी, कार्यकारी या न्यायिक शक्तियां प्रदान नहीं करता. पाकिस्तान का संविधान किसी भी व्यक्ति, चाहे वह सैन्य या असैन्य हो, को अस्वीकृत राजनीतिक या प्रशासनिक शक्ति का उपयोग करने से रोकता है.
भारत में फील्ड मार्शल पद
साल 1971 में भारत-पाक युद्ध में जीत के बाद सैम मॉनेकशॉ को जून 1972 में सेवानिवृत्त होना था, लेकिन उनका कार्यकाल छह महीने की अवधि के लिए बढ़ा दिया गया था. मानेकशॉ को 1 जनवरी 1973 को “सशस्त्र बलों और राष्ट्र के लिए उत्कृष्ट सेवाओं की मान्यता के तौर पर”, फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया. उन्हें 3 जनवरी को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में औपचारिक रूप से रैंक प्रदान किया गया था. वे इस पद पर पदोन्नत होने वाले पहले भारतीय सैन्य अधिकारी बने थे.
इसके बाद साल 1986 में कोडंडेरा मडप्पा करियप्पा को भी यह सम्मान दिया गया था. इन्हें केएम करियप्पा के नाम से जाना जाता है. करियप्पा स्वतंत्र भारत के पहले सेना प्रमुख थे उन्हें 15 जनवरी 1986 को फील्ड मार्शल की उपाधि से सम्मानित किया गया था. यह सम्मान उनकी असाधारण सैन्य सेवा और 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में उनके योगदान के लिए दिया गया था.