भारतीय सेना, एयरफोर्स और नेवी ने 18 से 22 अप्रैल तक हल्दी घाटी में एक संचार अभ्यास (Tri-Services Communication Exercise) किया था. डिफेंस के सूत्रों ने आजतक को बताया कि इस अभ्यास का मकसद था कि सेना, वायुसेना और नौसेना के बीच ऐसा सिस्टम विकसित किया जाए, जिससे तीनों सेनाएं आपस में तत्काल और स्पष्टता से संवाद कर सकें. इसी दौरान पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकी हमला हुआ, इस आतंकी हमले के बाद ये साफ हो गया कि सैन्य कार्रवाई जरूरी है.
CDS ने तुरंत बनाई रणनीति
सूत्रों ने बताया कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने हालात की गंभीरता को तुरंत समझा और सुनिश्चित किया कि तीनों सेनाओं के बीच सभी ज़रूरी संचार व्यवस्थाएं तुरंत प्रभाव से एक्टिव की जाएं. इसके साथ ही एय़र डिफेंस सिस्टम को भी सीमावर्ती इलाकों में तैनात किया गया.
साझा सिस्टम से मिली मैदान की पूरी तस्वीर
तीनों सेनाओं के कमांड, कंट्रोल और रडार सिस्टम को जोड़कर एक ऐसा नेटवर्क तैयार किया गया जिससे पाकिस्तान सीमा पर फैले पूरे युद्धक्षेत्र की तस्वीर एक जगह पर साफ दिख सके. जब ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और POK में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया, तब इन सिस्टम्स की मदद से सेना ने पाकिस्तान की प्रतिक्रियाओं को साफ देखा और उसका प्रभावी जवाब दिया.
ट्रेनिंग ने निभाई बड़ी भूमिका
सूत्रों ने बताया कि तीनों सेनाओं के रडार भी डिफेंस फोर्सेस के हेडक्वार्टर्स तक स्पष्ट तस्वीरें पहुंचा रहे थे. साथ ही उन्हें उसके अनुसार निर्णय लेने में सक्षम बना रहे थे. वहीं, जमीन पर तैनात टुकड़ियों को ड्रोन हमलों से निपटने में इसलिए कामयाबी मिली क्योंकि उन्हें डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (DMA) द्वारा भविष्य की युद्ध तकनीकों की ट्रेनिंग दी गई थी. यह ट्रेनिंग अब युद्धक्षेत्र में असर दिखा रही थी.
एकजुटता की रणनीति रंग लाई
CDS जनरल चौहान लंबे समय से तीनों सेनाओं के बीच ‘जॉइंटनेस’ यानी एकता को बढ़ावा दे रहे हैं. उनकी इस रणनीति ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान बेहतरीन नतीजे दिए. तीनों सेनाओं की ताकत, संसाधन और सोच जब एकजुट हुई, तब ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाई इतनी जल्दी और प्रभावशाली तरीके से हो सकी.