मशहूर गीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने शनिवार को मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान ऐसा बयान दिया, जिसने राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा छेड़ दी है. उन्होंने कहा कि यदि उन्हें केवल दो विकल्प मिले-नरक या पाकिस्तान, तो वह बिना झिझक नरक को चुनेंगे.
यह टिप्पणी उन्होंने उन आलोचनाओं के जवाब में दी जो उन्हें दोनों ही धार्मिक समुदायों के कट्टरपंथियों से मिलती हैं. यह बयान उन्होंने शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नेता संजय राउत की पुस्तक “नरकातला स्वर्ग (Narkatla Swarg)” के विमोचन समारोह के दौरान दिया. कार्यक्रम में शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे बड़े नेता भी मौजूद थे.
जावेद अख्तर ने कहा, “मुझे दोनों ओर से गालियां मिलती हैं. कोई मुझे काफिर कहता है कि मैं नरक जाऊंगा, तो कोई मुझे जिहादी कहकर पाकिस्तान भेजने की बात करता है. अगर इन दोनों में से ही चुनना पड़े, तो मैं नरक जाना पसंद करूंगा.”
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नरक जाना पसंद करूंगा- जावेद अख्तर
जावेद अख्तर ने कहा, ‘अगर ऑप एक तरफ से बात कर रहे हैं तो एक ही तरफ के लोगों को नाखुश करेंगे, लेकिन अगर आप दोनों तरफ से बात कर रहे हैं तो बहुत ज्यादा लोगों को नाखुश करेंगे. मैं कभी मिलिएगा तो मैं दिखाऊंगा अपना व्हाट्सऐप और ट्विटर, जिसमें मुझे दोनों तरफ से गालियां आती हैं. ऐसा नहीं है बहुत से लोग तारीफ भी करते हैं, लेकिन सच ये भी है कि मुझे इधर के कट्टरपंथी भी गाली देते हैं और उधर के कट्टरपंथी भी गाली देते हैं. यह सही है, अगर इनमें से एक ने गाली देना बंद कर दिया तो मुझे परेशानी हो जाएगी कि मैं क्या गड़बड़ कर रहा हूं. एक कहते हैं कि तुम तो काफिर हो जहन्नुम में जाओगे. दूसरे कहते हैं कि तुम जिहादी हो और पाकिस्तान जाओ…अब अगर मेरे पास च्वॉइस पाकिस्तान या जहन्नुम यानि नरक की है है तो नरक ही जाना पसंद करुंगा.’
जावेद अख्तर अपने स्पष्ट विचारों और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते हैं. उनके अनुसार, सार्वजनिक जीवन में सक्रिय व्यक्ति को न केवल समर्थन बल्कि आलोचना के लिए भी तैयार रहना चाहिए.
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संजय राउत की पुस्तक का हुआ विमोचन
जावेद अख्तर, मार्च 2010 से मार्च 2016 तक राज्यसभा के नामित सदस्य रह चुके हैं. उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने राज्यसभा में मनोनीत किया था. इस मौके पर विमोचित संजय राउत की पुस्तक “नरकातला स्वर्ग” उनके राजनीतिक जीवन के अनुभवों और संघर्षों का संग्रह है, जिसमें उन्होंने जेल, सत्ता और सियासी दबावों के दौर का उल्लेख किया है.