विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने सरकार से भारत-पाकिस्तान के मौजूदा हालात और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दोनों देशों के बीच युद्धविराम (सीज़फायर) कराने के दावे पर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की है. कांग्रेस पार्टी ने तेजी से इस मुद्दे को उठाया और विपक्ष के दोनों सदनों के नेताओं- राहुल गांधी (लोकसभा) और मल्लिकार्जुन खड़गे (राज्यसभा)- ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर यह मांग की.
राहुल गांधी ने 10 मई को अपने संक्षिप्त पत्र में लिखा, ‘मैं विपक्ष की सर्वसम्मत मांग को दोहराता हूं कि संसद का विशेष सत्र तुरंत बुलाया जाए. मुझे उम्मीद है कि प्रधानमंत्री इस मांग को गंभीरता से और शीघ्रता से विचार करेंगे.’ हालांकि राहुल गांधी ने विपक्ष की ‘सर्वसम्मत मांग’ की बात कही, लेकिन इंडिया गठबंधन में इस पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं.
बिहार में आरजेडी कांग्रेस के साथ
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए राष्ट्रीय जनता दल ने कांग्रेस के साथ मिलकर मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा, ‘एक स्पष्ट संदेश संसद के जरिए दुनिया को जाना चाहिए कि इस देश की प्रतिष्ठा कभी भी व्यापार के नाम पर झुकी नहीं है और न ही कभी झुकेगी. हम एक संप्रभु देश हैं और हमें किसी तीसरे देश की पंचायत की जरूरत नहीं है, और न ही कोई बेमतलब का सरपंच बनने की कोशिश करे.’
चुनाव नजदीक होने के कारण यह मुद्दा दोनों पक्षों के बीच राजनीतिक खींचतान का केंद्र बन सकता है और सत्ताधारी नीतीश कुमार सरकार इसे मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल कर सकती है. भाजपा ने पहले ही बिहार में तिरंगा यात्रा निकालनी शुरू कर दी है.
महाराष्ट्र में सहयोगियों की मिली-जुली राय
महाराष्ट्र में कांग्रेस के सहयोगी दलों की राय अलग-अलग है. एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार ने साफ कहा कि ‘मैं संसद के विशेष सत्र के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन यह संवेदनशील मुद्दा है, जिस पर संसद में चर्चा करना मुश्किल है क्योंकि इसमें विश्वास और राष्ट्रीय सुरक्षा का पहलू जुड़ा है. विशेष सत्र बुलाने के बजाय एक सर्वदलीय बैठक करना बेहतर होगा.’
वहीं कांग्रेस की दूसरी सहयोगी पार्टी शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने विशेष सत्र की मांग का समर्थन किया है. संजय राउत ने कहा, ‘प्रधानमंत्री को जवाब देना चाहिए कि हमने किस तरह का बदला लिया? हमने किसी तीसरे देश के कहने पर समझौता क्यों किया? ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान के मामले में हस्तक्षेप क्यों किया, जबकि इजरायल-गाजा युद्ध रोकने में वो कुछ नहीं कर सके?’
हालांकि शिवसेना (यूबीटी) के अंदर भी मतभेद हैं. पार्टी के एक सांसद ने नाम न बताने की शर्त पर आजतक से कहा, ‘मैं नहीं चाहता कि मेरी पार्टी के नेता जो कह रहे हैं, उस पर टिप्पणी करूं. हमें कांग्रेस की लाइन क्यों फॉलो करनी चाहिए? मुझे लगता है कि शरद पवार सही कह रहे हैं, और हमें किसी संवेदनशील राष्ट्रीय मुद्दे पर विशेष सत्र की मांग नहीं करनी चाहिए.’
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सतर्क
समाजवादी पार्टी (सपा) ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है. पार्टी नेताओं को लगता है कि मोदी सरकार पर हमला करना राज्य स्तर पर उल्टा पड़ सकता है. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘यह विदेश नीति का मामला है और इस समय हमें सरकार के साथ खड़े दिखना चाहिए. हमने विशेष सत्र पर कोई आधिकारिक रुख नहीं लिया है और हमारे नेता अपने-अपने क्षेत्रों में जनता की सेवा में लगे हैं.’
पहलगाम आतंकी हमले के बाद सपा ने कांग्रेस की विशेष सत्र की मांग का समर्थन किया था, लेकिन इस बार पार्टी को लगता है कि उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया, और यह मुद्दा भाजपा के पक्ष में जनभावनाएं भड़का सकता है- जो कि 2027 के विधानसभा चुनावों में सपा के लिए नुकसानदेह हो सकता है.
टीएमसी ले रही है अपना समय
कांग्रेस की ‘सर्वसम्मत मांग’ को चुनौती देती एक और क्षेत्रीय ताकत है – तृणमूल कांग्रेस. टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने विशेष सत्र की मांग पर कोई टिप्पणी नहीं की है और न ही सोशल मीडिया पर कुछ लिखा है. इसके बजाय वह हर मीटिंग में यही दोहराती रही हैं कि ‘इंडो-पाक डिफेंस मुद्दे पर सरकार जो भी रुख लेगी, टीएमसी उसके साथ है.’ यह कोई नई बात नहीं है, क्योंकि टीएमसी अक्सर कांग्रेस से असहमति रखने का रास्ता अपनाती है ताकि वह खुद को स्वतंत्र नेतृत्व वाली पार्टी के रूप में पेश कर सके.