कल पाकिस्तान की सड़कों पर जश्न हुआ. आतिशबाजियां हुईं. लोग एक दूसरे को बधाई दे रहे थे. रैलियां निकाली गई. गोया नजारा ऐसा था मानो पूरा पाकिस्तान ईद मना रहा हो. ये उस मुल्क की तस्वीर है जो 80 घंटे पहले ही भारत की मार खाकर पस्त हो गया था. भारत की सेना ने जिसके हवाई अड्डों को तहस नहस कर दिया था. पाकिस्तान के पाले गए 100 आतंकियों को मारा और 40 से 50 सेना के जवानों का खात्मा किया.
भारत ने ऐसा सबक सिखाया कि रावलपिंडी में बैठे हुक्मरानों के पसीने छूट गए. लेकिन आर्मी चीफ मुल्ला मुनीर और पीएम शहबाज ने अपनी जनता को जश्न का डोज दे दिया. सवाल यह है—क्या जश्न? हार से बचने की खुशी? एयरबेस की तबाही का तमाशा? या फिर बस एक और झूठ का जश्न, जिसका पाकिस्तान 77 सालों से आदि है?
हार को हराना है, झूठ को जीतना है…
शनिवार को जब 86 घंटों के युद्ध के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम हुआ तो पाकिस्तान ने इस सीजफायर को ही अपनी जीत बता दी. जनरल मुनीर के कमांड पर खेल रहे शहबाज ने ‘ऑपरेशन बनयान-उन-मर्सूस’ की कथित कामयाबी के लिए रविवार को पूरे देश में ‘यौम-ए-तशक्कुर’ यानी कि ‘शुक्रिया का दिन’ का दिन मनाने की घोषणा कर दी.
तबाही का तमाशा और जश्न की तलब
महंगाई, गुरबत और लोन की खुराक पर जी रही पाकिस्तान की जनता ने सरकार की इस घोषणा को हाथों हाथ लिया और रविवार को पाकिस्तान की सड़कों पर निकल पड़े.
लेकिन पाकिस्तान का एक तबका ऐसा था जिन्होंने असीम मुनीर और शहबाज शरीफ से दो टूक पूछा? किस बात का शुक्रिया- पाकिस्तान के हवाई अड्डों के तहस-नहस हो जाने का शुक्रिया. बहावलपुर में सुभान अल्लाह मस्जिद के गिरने का शुक्रिया, 40 पाक जवानों के मारे जाने का शुक्रिया, पाकिस्तान के लड़ाकू विमान गिरने का शुक्रिया या फिर मुल्क के मिसाइल डिफेंस सिस्टम के फेल हो जाने का शुक्रिया मनाएं.
86 घंटों के जंग में हर मोर्चे पर पिटे पाकिस्तान को एक जश्न की तलब थी और मुनीर ने ‘यौम-ए-तशक्कुर’ के रूप में उन्हें ये वजह दे दी.
भारतीय वायुसेना ने PoK और पाकिस्तान में 9 आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद किया, 100 से ज्यादा आतंकियों को जहन्नुम पहुंचाया, और रफीकी, नूर खान, चकलाला जैसे एयरबेस को ऐसा झटका दिया कि सैटेलाइट तस्वीरें देखकर पाकिस्तानी सेना सन्नाटे में आ गई. लेकिन मुनीर साहब ने इसे “भारत की नाकामी” का तमगा दे दिया.
पाकिस्तानी जनता को बताया गया कि उनकी सेना ने भारत के हमलों को “नाकाम” कर दिया. सोशल मीडिया पर दर्जनों फर्जी वीडियो वायरल किए गए. ISPR के प्रवक्ता ने तो दिल्ली पर पाकिस्तानी ड्रोन उड़वा दिए, भारत की 70 फीसदी बिजली सप्लाई ठप करवा दी. इंडियन पायलट को किडनैप कर दिया.
वो अलग बात है कि भारत सरकार की एजेंसी PIB के फैक्ट चेक ने इन दावों की धज्जियां उड़ा दीं, लेकिन मुनीर और शहबाज का जश्न थमा नहीं. आखिर, जब हकीकत कड़वी हो तो झूठ की मिठाई बांटना पाकिस्तानी सेना की पुरानी रवायत जो है.
याद रहे भारत में रेडियो पाकिस्तान को रेडियो झूठिस्तान कहा जाता है.
शहबाज शरीफ और असीम मुनीर के जश्न का असली मकसद जनता को बरगलाना और हकीकत से जनता का ध्यान हटना था. जब अर्थव्यवस्था डूब रही हो, भारत ने एयरस्पेस बंद कर दिया हो, और सिंधु जल समझौता स्थगति होने से कभी बाढ़, कभी सूखे जैसी स्थिति हो तो जश्न ही एकमात्र रास्ता बचता है. जनरल मुनीर का फलसफा है, “अगर हार को जीत कह दूं, तो शायद जनता कुछ दिन और बहक जाए.” जनता को जश्न का माहौल चाहिए था, सो माहौल बना दिया गया.
पाकिस्तानी जनता इस जश्न में उलझी रही कि आखिर जश्न है किस बात का? उन्हें आतंकियों के जनाजों में पाकिस्तानी सेना के अधिकारी दिखे. पाकिस्तानी झंडे में लिपटे जवानों के ताबूत दिखे. लेकिन जश्न का नशा नहीं उतरा.
तो बता दीजिए, जनरल साहब, यह जश्न है पिटाई में बचने का? तबाही को छिपाने का? या फिर बस एक और दिन तक जनता को बेवकूफ बनाने का? जवाब आपको बता है लेकिन आप मुंह छिपा रहे हैं.