Search for an article

Select a plan

Choose a plan from below, subscribe, and get access to our exclusive articles!

Monthly plan

$
13
$
0
billed monthly

Yearly plan

$
100
$
0
billed yearly

All plans include

  • Donec sagittis elementum
  • Cras tempor massa
  • Mauris eget nulla ut
  • Maecenas nec mollis
  • Donec feugiat rhoncus
  • Sed tristique laoreet
  • Fusce luctus quis urna
  • In eu nulla vehicula
  • Duis eu luctus metus
  • Maecenas consectetur
  • Vivamus mauris purus
  • Aenean neque ipsum
HomeHomeभारत से तनाव के बीच पाकिस्तान से छिनी मजबूत लाइफ लाइन, दोस्तों...

भारत से तनाव के बीच पाकिस्तान से छिनी मजबूत लाइफ लाइन, दोस्तों का दायरा भी हुआ छोटा

Published on

spot_img


भारत की जवाबी कार्रवाई के बीच पाकिस्तान को शुक्रवार को यह एहसास हो गया कि उसकी सबसे भरोसेमंद लाइफ लाइन भी अब छीन ली गई है. इतिहास पर गौर करें तो पाकिस्तान इस भरोसे से भारत के साथ टकराव में रहा है कि अगर हालात मुश्किल हुए तो अमेरिका उसकी मदद करेगा, जिसके पास वह SOS लेकर दौड़ा चला आएगा. लेकिन भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अमेरिका ने भी पाकिस्तान से सॉफ्ट लैंडिंग की सुविधा अब छीन ली है.

परमाणु हमले की खोखली धमकी

पाकिस्तान की मानसिकता को समझने और अमेरिका पर उसकी निर्भरता को समझने के लिए साल 1999 की गर्मियों को याद करना अहम है, जब पाकिस्तान ने कारगिल की रणनीतिक रूप से अहम मानी जाने वाली पहाड़ियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी.

पाकिस्तान को सजा दिए बिना जाने देने के लिए तैयार न होते हुए भी भारत ने एक साहसिक कदम उठाया. उस समय सेना की स्ट्राइक टुकड़ियों को अपने बेस कैंप छोड़ने की तैयारी करने को कहा गया था. लगभग उसी वक्त अमेरिकी स्पाई सैटेलाइट ने राजस्थान में ट्रेनों पर लोड किए जा रहे भारतीय टैंकों और भारी तोपों की तस्वीरें कैद कीं. मैसेज साफ था कि भारत कारगिल में घुसपैठ का बदला लेने के लिए पाकिस्तान पर हमला करने वाला था.

ये भी पढ़ें: ‘मोदी का नाम लेने से डरते हैं…’, पाकिस्तानी सांसद ने ही शहबाज शरीफ को बताया बुजदिल, देखें VIDEO

सेना के इस कदम से पहले पाकिस्तान हमेशा की तरह ही इनकार और धमकी की रणनीति अपना रहा था. सार्वजनिक मंचों पर नवाज शरीफ सरकार कारगिल में पाकिस्तान की भूमिका से इनकार कर रही थी. साथ ही वह यह भी संकेत दे रही थी कि अगर भारत ने संघर्ष को बढ़ाने की हिम्मत की तो परमाणु विकल्प भी अपना सकती है.

दूसरों से मदद मांगने की आदत

लेकिन जैसे ही शरीफ को भारतीय सीमा पर हलचल के बारे में पता चला, उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन से मिलने की इच्छा जताई. बैठक में शरीफ कारगिल से अपने लड़ाकों को वापस बुलाने और नियंत्रण रेखा (LoC) की पर स्थिति बहाल करने पर सहमत हो गए. 12 जुलाई को शरीफ टीवी पर देश को समझा रहे थे कि अब घुसपैठियों का कारगिल में रहना जरूरी नहीं रह गया है. इसके तुरंत बाद कारगिल में संघर्ष खत्म हो गया.

कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान के बर्ताव से हमें दो अहम बातें पता चलती हैं. पहली, अपने परमाणु ब्लैकमेल और शेखी बघारने के बावजूद पाकिस्तान भारत के साथ पारंपरिक युद्ध लड़ने से कतराता है. दूसरी, जब भी वह खुद को बचाना चाहता है, तो वह अपनी इज्जत बचाने के लिए वॉशिंगटन (या अंतरराष्ट्रीय समुदाय) पर निर्भर हो जाता है.

अमेरिका ने दिया जोर का झटका

लेकिन इस बार वॉशिंगटन ने सम्मानजनक तरीके से बाहर निकलने का विकल्प बंद कर दिया है. फॉक्स न्यूज से बात करते हुए अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने भारत-पाकिस्तान के बीच चल रहे संघर्ष में वॉशिंगटन की भागीदारी से इनकार किया. उन्होंने कहा, ‘हम जो कर सकते हैं, वह यह है कि इन लोगों को तनाव थोड़ा कम करने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश करें, लेकिन हम युद्ध के बीच में शामिल नहीं होने जा रहे हैं, यह मूल रूप से हमारा कोई काम नहीं है और इसका अमेरिका से कोई लेना-देना नहीं है.’

वॉशिंगटन के इस साफ संकेत के बीच कि भारत और पाकिस्तान को मामले को सुलझाने के लिए छोड़ दिया गया है, रिपब्लिकन नेता निक्की हेली ने इस्लामाबाद पर एक और बम गिराया है. ट्रंप की पूर्व सहयोगी हेली ने एक्स पर एक पोस्ट में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत के खुद का बचाव करने और जवाबी कार्रवाई करने के अधिकार का बचाव किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि पाकिस्तान को पीड़ित की भूमिका निभाने का अधिकार नहीं है.

पाकिस्तान का मददगार रहा है US

इस बार वॉशिंगटन की तटस्थता पिछले संघर्षों के दौरान उसके ऐतिहासिक पाकिस्तान समर्थक रुख के बिल्कुल उलट है. साल 1971 में, अमेरिका ने भारत को रोकने के लिए परमाणु ऊर्जा से चलने वाले एयरक्राफ्ट कैरियर USS एंटरप्राइज के नेतृत्व में अपनी 7वीं फ्लीट को बंगाल की खाड़ी में तैनात किया था. इसी तरह 2001 में, जब भारतीय संसद पर आतंकी हमलों के बाद दोनों देश युद्ध की कगार पर थे, तो वॉशिंगटन ने संकट को कम करने के लिए अपने दूतों को नई दिल्ली भेजा था.

कुछ साल पहले, जैसा कि रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने एक्स पर बताया था, जो बाइडेन प्रशासन ने F-16 बेड़े को अपग्रेड करने में पाकिस्तान की मदद की थी. लेकिन वेंस का बयान दिखाता है कि 1971 के बाद से वॉशिंगटन कितनी दूर आ गया है और वह भारत के साथ संबंधों को कितना महत्व देता है.

अब बचे हैं सिर्फ गिनती के दोस्त

अब तक पाकिस्तान का समर्थन सिर्फ कुछ ही सहयोगी देशों तक सीमित रहा है, मुख्य रूप से चीन, तुर्की और अज़रबैजान. यह पाकिस्तान के बढ़ते अलगाव को दर्शाता है, क्योंकि सऊदी अरब और यूएई जैसे पारंपरिक सहयोगियों ने संतुलित या भारत समर्थक रुख अपनाया है. जी-20 और खाड़ी देशों को ब्रीफिंग सहित भारत के कूटनीतिक संपर्क ने उसकी आतंकवाद विरोधी कथनी के लिए काफी सहानुभूति जुटाई है.

कारगिल के बाद से भारत ने रक्षात्मक रुख से हटकर आक्रमणकारी और जवाबी रणनीति अपनाई है, जैसा कि 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट एयर स्ट्राइक में देखा गया. सीधी कार्रवाई की इस रणनीति ने भारत को हिम्मत दी है और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पर उसकी निर्भरता कम की है.

ये भी पढ़ें: भारत-पाकिस्तान भिड़ंत में दुनिया के बड़े देश किसके साथ हैं? ईरान-तुर्की-सऊदी का क्या स्टैंड है

इस बीच पाकिस्तान अपने सहयोगियों पर बहुत ज़्यादा निर्भर हो गया है. उसकी कमज़ोर अर्थव्यवस्था, बढ़ते कर्ज का बोझ, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और बलूचिस्तान में अशांति और कमज़ोर राजनीतिक नेतृत्व ने भारत के साथ पारंपरिक युद्ध को अस्थिर बना दिया है, जिसकी वजह से इस्लामाबाद को कूटनीतिक तरीके से बाहर निकलने की कोशिश करनी पड़ रही है.



Source link

Latest articles

More like this