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    धराली-हर्षिल वैली… जहां बसी थी ‘राम तेरी गंगा मैली’ की यादें, आज वहां बर्बादी की पिक्चर!

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    ‘हुस्न पहाड़ों का, ओ साहेबा….क्या कहना के बारहों महीने यहां मौसम जाड़ों का…’

    ये पॉपुलर गाना है 1985 में आई फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ का. ज‍िस बेहद खूबसूरत घाटी में ये गाना गूंजा, आज वहां मातम पसरा हुआ है. गीतकार ने इस गाने में जिन पहाड़ों के हुस्न को बयां किया है, उसका नाम है- धराली-हर्षिल घाटी. ये वही हर्षिल घाटी है, जिसकी खूबसूरती ने आज से 4 दशक पहले The Showman of Indian Cinema यानी राज कपूर का ध्यान अपनी तरफ खींचा. 

    राज कपूर ने इस फिल्म के जरिए न सिर्फ एक प्रेम कहानी के पीछे की दुन‍ियावी जद्दोजहद को बेहद बारीकी से पेश क‍िया, बल्कि पहाड़ों की शांति, यहां के लोगों की सादगी, गंगा की व्यथा (फ‍िल्म में मंदाक‍िनी का नाम भी गंगा है), संवेदनशीलता और शुद्धता खोने के दर्द को भी पर्दे पर उतारा. 

    मंदाक‍िनी का चेहरा और हर्षिल की वाद‍ियां

    चेहरे पर कुदरती खूबसूरती के साथ ही बर्फ-सी चमक, काली आंखें, मासूमियत… ये सब म‍िलकर मंदाकिनी को एक भोली-भाली पहाड़ी लड़की गंगा के किरदार के ल‍िए एकदम माकूल बनाते थे. शायद इसल‍िए राज कपूर जैसे पारखी डायरेक्टर की फ‍िल्म की नाय‍िका के चेहरे की तलाश मंदाक‍िनी पर आकर खत्म हुई.
     

    मंदाकिनी और राजीव कपूर का सीन (Photo: Screen Grab)

    फिल्म की शूटिंग उत्तरकाशी, हर्षिल और गंगोत्री के एक बड़े हिस्से में की गई थी. कहानी के मुताबिक, मंदाकिनी का किरदार हर्षिल घाटी की रहने वाली एक पहाड़ी लड़की का होता है, इसलिए उसके ल‍िबास खासतौर पर गढ़वाल की ग्रामीण महिलाओं के पारंपरिक पहनावे जैसे ही डिजाइन किए गए थे. सिर पर साफा (स्कार्फ), धोती-ब्लाउज, सदरी, चांदी की पहाड़ी ट्रेडशिनल ज्वैलरी. मंदाकिनी की ज्वैलरी भी उत्तरकाशी के ट्रेडशिनल रवांई ज्वेल आर्ट से प्रेरित थी. 

    “तुझे बुलाए ये मेरी बाहें कि तेरी गंगा यहीं मिलेगी
    मैं तेरा जीवन मैं तेरी क़िस्मत कि तुझको मुक्ति यहीं मिलेगी”

    लता मंगेशकर की आवाज में फिल्म का ‘तुझे बुलाए ये मेरी बांहें’ गाना हर्षिल-गंगोत्री की वादियों में ही फिल्माया गया है. गंगोत्री मंदिर से थोड़ी दूर पर स्थित सूर्यकुंड से निकलती भागीरथी की तेज धाराएं, चारों तरफ ऊंची-ऊंची चोटियां और घने देवदार के जंगलों के बीच शूट हुए मंदाकिनी के इस गाने में पूरी घाटी की खूबसूरती देखते ही बनती है. इसी गाने में सफेद साड़ी में मंदाकिनी का झरने में नहाते एक शॉट भी है, जो उस दौर में काफी चर्चित रहा.

    गंगोत्री के पास सूर्यकुंड पर शूट हुआ सीन (Photo: Screen Grab)

    कैसे पड़ा ‘मंदाकिनी फॉल’ का नाम?

    हर्षिल घाटी के मुखवा के रहने वाले लोकगायक और कलाकार रजनीकांत सेमवाल ने aajtak.in से बात की. उन्होंने बताया कि इलाके के लोगों के लिए फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ की शूटिंग की यादें हमेशा खास रही हैं. बचपन से अपने बड़ों से शूटिंग से जुड़े किस्से-कहानियां सुनते आए हैं. रजनीकांत बताते हैं कि मंदाकिनी का सफेद साड़ी पहने जो शॉट था, वो तिलगाड़ में शूट हुआ. जो फिल्म के आने के बाद इतना फेमस हो गया कि लोग इसे एक्ट्रेस के नाम पर ‘मंदाकिनी फॉल’ कहने लगे. 

    घाटी की खूबसूरती को बखूबी बयां करते हैं गाने

    ‘हुस्न पहाड़ों का, ओ साहिबा…’ गीत को आवाज दी सिंगर लता मंगेशकर और सुरेश वाडकर ने. ये गाना इतना मशहूर हुआ कि पहाड़ों पर जाने वाला हर शख्स इसे गुनगुनाता है. फिल्म रिलीज के 40 साल बाद भी ये गाना लोगों की जुबान पर है. ज‍िसे हर्षिल-गंगोत्री की खूबसूरत वादियों के सेब के बगीचों, भागीरथी के किनारे, सरसों के लहलहाते खेतों में फिल्माया गया. इस इलाके से गंगोत्री पीक, श्रीकंठ, सुदर्शन पीक, भागीरथी पीक जैसी कई चोटियां दिखती थीं. जो बर्फ से लदी रहती हैं. गाने में हर्षिल घाटी की खूबसूरती को बखूबी बयां क‍िया गया है. 

    “छोटे-छोटे झरने हैं, के झरनों का पानी छू के कुछ वादे करने हैं
    झरने तो बहते हैं, कसम ले पहाड़ों की जो कायम रहते हैं”

    गाने की ये लाइन भी बताती है कि हर्षिल घाटी किस तरह प्रकृति की नेमतों से भरपूर है. पहाड़, झरने, जंगल, फूलों की वादियां-  यहां सब कुछ है. इस फ‍िल्म को याद करते ही उसकी कहानी, किरदार, गाने -आप जेहन में उतरने लगते हैं.     

    शूट‍िंग स्पॉट्स अब बन गए हैं टूर‍िस्ट स्पॉट्स 

    फिल्म में एक सीन है… जहां गंगा भागी-भागी पोस्ट ऑफिस के पास आती है. जहां वो पोस्टमैन से नरेन (नरेंद्र) नाम का मतलब पूछती है. वो पोस्ट ऑफिस हर्षिल में ही है.  इस डाकघर के इर्द-गिर्द फिल्म के कई सीन फिल्माए गए थे. भारत और चीन की सीमा पर बना ये डाकघर आज भी सैलानियों का हॉट-स्पॉट है. रजनीकांत कहते हैं कि पर्यटक जब हर्षिल घाटी आते हैं तो स्थानीय लोग उन्होंने बड़े उत्साह से बताते हैं कि किस जगह फिल्म का कौन-सा सीन शूट हुआ था. चाहे वह गंगोत्री मंदिर के पास सूर्यकुंड हो, मंदाकिनी फॉल, हर्षिल का पोस्ट ऑफिस, छोटे-छोटे व्यू प्वाइंट हो. इतना ही नहीं, भैरव घाटी के गढ़वाल मंडल (GMVN) का रेस्टहाउस का भी जिक्र होता है जहां राज कपूर, फिल्म की कास्ट और क्रू रुका था. 

    पोस्ट ऑफिस वाले सीन में मंदाकिनी (Photo: Screen Grab)

    आज के जमाने में किसी जगह का YouTube ब्लॉग बनने के बाद वो जगह फेमस हो जाती है, उसी तरह 80-90 के दशक में ये काम फिल्में किया करती थीं. हर्षिल घाटी के साथ भी ये हुआ. यहां ‘राम तेरी गंगा मैली’ की शूटिंग के बाद ये इलाका भी दुनिया की नजरों में आया. पर्यटक यहां का रुख करने लगे. रजनीकांत बताते हैं कि ‘राम तेरी गंगा मैली’ के बाद यहां और भी शूटिंग होने लगीं. साउथ की कई मूवी यहां फिल्माई गईं. 

    कैमरे और कलाकारों की रौनक की जगह आज गम-मातम

    अपनी खूबसूरत वादियों और नजारों के लिए मशहूर ये घाटी इन दिनों प्रकृति की मार झेल रही है. उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल गुंसाई ने aajtak.in से बात की. शीशपाल कहते हैं-  “भागीरथी के किनारे, देवभूमि उत्तराखंड की गोद में बसा हर्षिल और धराली—ये सिर्फ भूगोल नहीं हैं, ये भावना हैं. ये वो स्थान है जहां हिमालय की शांति, गंगा की पवित्रता और मानवीय संवेदना का संगम होता है. लेकिन समय की धार और प्रकृति की मार ने इस स्वर्ग जैसे क्षेत्र को आज शोक की छाया में ढंक दिया है.

     

    गंगोत्री में फिल्माए गए सीन में मंदाकिनी और राजीव कपूर (Photo: Screen Grab)

    बता दें कि ‘राम तेरी गंगा मैली’ फिल्म में न स‍िर्फ गंगा के किरदार ने दर्शकों का मन छूआ, बल्कि आसपास की वादियों की पवित्रता और सौंदर्य ने भी एक अमिट छाप छोड़ी. इस फिल्म ने इस इलाके को मनोरंजन जगत के जरिए अलग पहचान दी. लेकिन आज वही धराली, वही हर्षिल.जहां कभी कैमरे और कलाकारों की रौनक हुआ करती थी, मलबे और मातम की चुप्पी में डूब गया है.

    5 अगस्त 2025 की त्रासदी ने इन पहाड़ियों को लहूलुहान कर दिया है. भागीरथी की ये खूबसूरत घाटी अब केवल मोक्ष की नहीं, विपदा की भी साक्षी बन चुकी है. राज कपूर की फिल्म में जो “गंगा के मैल” की बात थी, वो अब वास्तविक मलबे और मानवीय दर्द में बदल चुकी है. कभी गंगा ‘राम तेरी गंगा मैली’ में रोई थी… और आज धरा पर आंसू बहा रही है.”

    —- समाप्त —-



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