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    बादल फटा, ग्लेशियर टूटा या कोई और वजह? जानें, कहां-कहां जुड़ रहे धराली में मची तबाही के तार

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    उत्तरकाशी जिले के हर्षिल के पास धराली गांव में मंगलवार को भयानक आपदा आई. महज़ 30 से 35 सेकंड के भीतर एक शांत-सुंदर पहाड़ी बस्ती तबाह हो गई. आसमान से आई आफ़त ने गांव की रफ्तार थाम दी, ज़िंदगियां बदल दीं और कई सवाल खड़े कर दिए. 12,600 फीट ऊंचे पहाड़ से अचानक तेज धार के साथ पानी बहते हुए आया. उसके बाद दूसरा फ्लो आया जिसमें मलबा बहकर आया. और मात्र 30-35 सेकेंड में पूरा का पूरा कस्बा तबाह. इसकी वजह फिलहाल बदला फटने को वजह माना जा रहा है. Aajtak.in ने एक्सपर्ट्स से बातचीत की और समझने की कोशिश की कि इस तबाही के तार कहां-कहां तक जुड़ रहे हैं.

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    पहलीः बादल फटा या नहीं… 

    हैरान करने वाली बात है कि मौसम विभाग की साइट पर इतनी बारिश दिखाई नहीं गई, जिसे बादल फटना जैसे हालात कहें. मौसम विभाग के मुताबिक 4 अगस्त और 5 अगस्त को 8 मिमी से 10 मिमी बारिश हुई. वाडिया इंस्टीट्यूट के रिटायर्ड साइंटिस्ट ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. डीपी डोभाल ने कहा कि बादल फटने की परिस्थिति जो बनती है, वो पैरामीटर सेट नहीं हो रहा. बादल फटना मतलब एक घंटे में 100 मिमी से ऊपर बारिश. लेकिन IMD के मुताबिक 4 अगस्त की रात और 5 अगस्त की सुबह 8.30 बजे तक 8-10 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई. फ्लैश फ्लड दोपहर में आया. जिस वजह से ये माना जा रहा है बादल फटना इस सैलाब की वजह नहीं है. 

    उत्तरकाशी के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी शार्दूल गुसांई ने कहा कि बादल फटने की तीन घटनाएं रिकॉर्ड हुई है. धराली, हर्षिल और सुखी टॉप के सामने. उन्होंने कहा कि शुरूआती वजह बादल फटना ही है. सुबह नए डेटा आएंगे तब स्थिति और साफ हो पाएगी. अभी किसी भी कारण से इनकार नहीं कर सकते. क्योंकि एक दिन पहले मौसम ठीक था. कम बारिश हो रही थी. लेकिन पहाड़ों पर मौसम बदलने में अब समय कहां लगता है. 

    दूसराः अस्थाई लेक या डैम का बनना और बारिश से टूटना
    रिटायर्ड साइंटिस्ट और ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. डीपी डोभाल ने aajtak.in से बातचीत की. उन्होंने कहा कि-

    “धराली फ्लड प्लेन में बसा है. मैंने पहले ही चेतावनी दी थी. धराली के पीछे डेढ़-दो किलोमीटर लंबा और बेहद घना जंगल है. जिस खीर गाड़ से फ्लैश फ्लड आया वो उन्हीं जंगलों से होकर गुजरता है. उसके ऊपर स्नो से भरा माउंट श्रीकंठ है. लेकिन जिस गति से फ्लैश फ्लड आया है वो बादल फटने वाली नहीं है. बादल फटने पर आने वाली फ्लैश फ्लड पहले धीमी होती है. फिर तेज और बाद में फिर धीमी हो जाती है”

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    A. अस्थाई लेक बनना 

    फ्लैश फ्लड की गति धराली के ऊपर जंगल किसी अस्थाई लेक, पानी जमाव या प्राकृतिक डैम जैसी स्थिति को दर्शाता है. पानी करीब 43 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से आया. यही गति 2013 में केदारनाथ आपदा के समय चोराबारी लेक के टूटने से आए सैलाब की थी. दूसरा ये कि धराली और उसके अगल-बगल बेहद नैरो वैली है. ऊंचे पहाड़ है.अगर ऐसे में किसी ग्लेशियर के टूटकर अस्थाई लेक, पानी जमाव या प्राकृतिक डैम पर गिरता है तो वह उसे तोड़ देता है. जो वीडियो आए हैं, उसमें ऊपर से आता हुआ पानी काले रंग का है. मलबा भी स्लेटी रंग का है. 

    Dharali cloudburst news

     

    डोभाल कहते हैं कि ऐसा पानी और मलबा जमे हुए स्थान के टूटने से आया है. लेकिन पिछले कुछ दिनों में वहां कोई ऐसी लेक सैटेलाइट तस्वीरों में नहीं दिखी. हो सकता है जंगल के बीच में कहीं हो. जिसपर कोई पत्थर गिरा हो या लगातार बारिश की वजह से कमजोर होकर टूट गई हो. जिसकी वजह से फ्लैश फ्लड आया. एकदम ऋषिगंगा हादसे जैसा. उसके उस अस्थाई लेक, डैम में जमा गंदा मलबा भी बहकर नीचे आ गया.

    B. पहले से दो लेक थी 

    गूगल अर्थ से इलाके को समझने की कोशिश करें तो दिखता है कि धराली के पीछे जो पहाड़ है, उसके टॉप कैचमेंट एरिया में दो ग्लेशियर हैं, जिसमें बड़े-बड़े दरारें दिख रही हैं. हो सकता है यहां से आइस एवलांच आया होगा, जिससे ग्लेशियर में जमा मलबा तेजी से नीचे की ओर आया. धराली में मची तबाही के वीडियो को देखें तो उसमें सैलाब बहुत तेजी से नीचे की ओर आता दिख रहा है. सैलाब की स्पीड की वजह स्टीप स्लोप भी है. 

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    2022 में गूगल इमेज भी सामने आई थीं, जिनमें तब ऊपर ग्लेशियर के पास दो छोटी-छोटी लेक (Lakes) भी नजर आईं थी. जो तब आपस में मिलने की कगार पर थी. संभावना ये भी है कि अब ये दोनों लेक मिल गई हों और फिर एवलांच आया हो, जिसने नीचे की ओर तबाही मचा दी. जैसा 2021 में चमोली जिले के Rishiganga आपदा में हुआ था. 

    तीसराः क्लाइमेट बदलने से अब बादल ऊंचाई पर भी फटने लगे हैं

    डोभाल ने ये भी कहा कि आजकल क्लाइमेट चेंज की वजह से बादल फटने की घटना 3-4 हजार मीटर की ऊंचाई पर हो सकती है. जो पहले 1 या 2 हजार मीटर की ऊंचाई पर होती थी. आमतौर पर 3-4 हजार मीटर की ऊंचाई पर बारिश नहीं होती. बर्फबारी होती है. लेकिन क्लाइमेट चेंज और बढ़ते तापमान की वजह से ये पैटर्न बदल गया है. अब लगातार बारिश होगी तो उससे ग्लेशियर टूटेंगे. ये ग्लेशियर किसी अस्थाई लेक पर गिरे तो उसके वजन से लेक टूट जाएगी और तेजी से नीचे की तरफ आएगी. 

    क्या दिखा रहा है धराली की तबाही का वीडियो

    धराली में मची तबाही के वीडियो को अगर ध्यान से देखें तो  ऐसा लग रहा है कि ये सैलाब किसी चीज़ के अचानक टूटने से बहुत तेज़ी से नीचे आया. सैलाब जो आया है वो केवल पानी नहीं है बल्कि स्लरी टाइप का मटीरियल भी इसमें दिख रहा है जो ऊपर के सारे डिपॉजिट को नीचे ले आया है.

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    धराली में तबाही से नुकसान की आशंका इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यहां घनी बसावट है. धराली, गंगोत्री और हर्षिल से सटा इलाका है. जो अपने में पर्यटकों में काफी फेमस है. टूरिस्ट एरिया होने की वजह से धराली बाजार में होटल, होम स्टे भी बड़ी संख्या में हैं. जिस वजह से नदी के आसपास (River Bed) काफी बसावट है. जिसकी वजह से वहां नुकसान ज्यादा हुआ है.

    बादल फटने की घटना क्या होती है?

    बादल फटना एक ऐसी प्राकृतिक घटना है, जिसमें एक छोटे से इलाके में एक घंटे में 10 सेंटीमीटर (100 मिलीमीटर) से ज्यादा बारिश हो जाती है. हिमालय जैसे पहाड़ी इलाकों में यह तब होता है जब गर्म हवा और नमी भरे बादल पहाड़ों से टकराते हैं. अचानक भारी बारिश शुरू हो जाती है. इससे नाले उफान पर आते हैं. बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति बनती है, जिसे लोग हिमालयन सुनामी कहते हैं. यह घटना इतनी तेज होती है कि पहले से भविष्यवाणी करना मुश्किल है.

    —- समाप्त —-



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