बिहार की सियासत में अस्सी के दशक में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान ने एक साथ अपनी सियासी पारी का आगाज किया था. मंडल पॉलिटिक्स ने तीनों ही नेताओं को मजबूत सियासी पहचान दी. लालू प्रसाद यादव ने जिस तरह से अपना सियासी वारिस तेजस्वी यादव को बनाया और राम विलास पासवान ने चिराग पासवान को आगे बढ़ाया, उसी तर्ज पर सीएम नीतीश कुमार से उनके बेटे निशांत कुमार की सियासी एंट्री कराने की मांग हो रही है. जेडीयू से लेकर एनडीए के सहयोगी भी निशांत को सियासी पिच पर उतारने की डिमांड कर रहे हैं, लेकिन नीतीश साइलेंट मोड में है.
सीएम नीतीश कुमार के इकलौते बेटे निशांत कुमार के 44वें जन्मदिन पर रविवार को जेडीयू के दफ्तर के बाहर लगे पोस्टरों ने निशांत कुमार की पॉलिटिकल एंट्री को लेकर तपिश को बढ़ा दिया है. ‘कार्यकर्ताओं की मांग,चुनाव लड़े निशांत’, ‘बिहार की मांग, सुन लिए निशांत’ जैसे स्लोगन लिखे गए हैं. जेडीयू के नेता निशांत की राजनीति में आने की चर्चा नहीं कर रहे हैं बल्कि सहयोगी दलों के नेता भी मांग कर रहे. उपेंद्र कुशवाहा ने भी कहा कि नीतीश को सत्ता संभालनी चाहिए और पार्टी की कमान निशांत को सौंप देनी चाहिए.
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नीतीश के सियासी वारिस निशांत?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उम्र 74 साल हो गई है. जेडीयू में नीतीश के उत्तराधिकारी के तौर पर निशांत कुमार को सियासी एंट्री कराने की मांग काफी समय से की जा रही है. नीतीश के स्वास्थ्य को लेकर यह डिमांड भी तेजी की जा रही है. ऐसे में कई बार विरोधियों के द्वारा नीतीश कुमार के सेहत को लेकर उठाए जा रहे सवालों का निशांत ने न सिर्फ पुरजोर जवाब दिया, बल्कि नीतीश कुमार के विकास कार्यों का पूरी गंभीरता से आंकड़ों के साथ जवाब देकर राजनीतिक हलकों में भी लोगों को हैरान कर दिया था.
जेडीयू के सांसद कौशलेंद्र कुमार ने यहां तक कह दिया कि निशांत को अस्थावां से चुनाव लड़ना चाहिए और वे स्वयं जीत की जिम्मेदारी लेंगे. यह पार्टी के अंदर एक वर्ग की स्पष्ट मांग को दर्शाता है. जेडीयू के कुछ वरिष्ठ नेता जैसे अशोक चौधरी और श्रवण कुमार ने निशांत की एंट्री का समर्थन किया है. बिहार बीजेपी नेताओं से लेकर जेडीयू के दूसरे सहयोगी दल भी यही चाहते हैं कि निशांत की एंट्री राजनीतिक में होनी चाहिए, लेकिन नीतीश कुमार खामोशी अख्तियार किए हुए हैं.
नीतीश कुमार बहुत ही मंझे हुए सियासी खिलाड़ी हैं. उन्हें पता है कि निशांत की पॉलिटिकल एंट्री के बाद उन पर कई सवाल उठेंगे. इस तरह नीतीश 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले कोई भी राजनीतिक रिस्क लेने के मूड में नहीं हैं, जिससे बिहार के सत्ता का समीकरण गड़बड़ाए. नीतीश अपनी आखिरी सियासी पारी को सफल तरीके से खेलना चाहते हैं, जिसके लिए फिलहाल निशांत को सियासी पिच पर उतारने से बच रहे हैं?
परिवारवाद के आरोप से बचने का दांव
नीतीश कुमार ने हमेशा से परिवारवादी राजनीति का विरोध किया है, जिसके लिए लालू प्रसाद यादव पर सवाल खड़े कर रहे हैं. नीतीश भी अपने बेटे को राजनीति में लाते हैं तो उन पर भी सवाल खड़े होंगे. विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच नीतीश नहीं चाहते हैं कि उन पर किसी तरह का कोई परिवारवाद का आरोप लगे, क्योंकि एनडीए ने लालू यादव को परिवारवाद के एजेंडे पर ही चुनाव में घेरने की रणनीति बनाई है. इसीलिए नीतीश न ही जेडीयू नेताओं की मांग को स्वीकार कर रहे हैं और न ही सहयोगी दलों की डिमांड को तवज्जो दे रहे हैं. वहीं, निशांत ने खुद अपनी सियासी एंट्री को लेकर अब तक कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है. उन्होंने जब भी बात की है, अपने पिता के विकास कार्यों का समर्थन किया है और कहा है कि नतीश कुमार 100 फीसदी फिट हैं.
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तेजस्वी-चिराग से होगी निशांत की तुलना
निशांत कुमार की सियासी एंट्री बिहार की सियासत में एक नया मोड़ ला सकती है. तेजस्वी यादव और चिराग पासवान जैसे दूसरी पीढ़ी के उभरते नेताओं के बीच निशांत राजनीति में आते हैं तो नीतीश की परिवारवाद विरोधी छवि को धक्का पहुंचेगा. निशांत कुमार के राजनीति में आते ही उनकी तुलना तेजस्वी और चिराग पासवान से होने लगेगी. तेजस्वी यादव ने निशांत कुमार की संभावित एंट्री का स्वागत करते हुए कहा था कि इससे जेडीयू को मजबूती मिलेगी, लेकिन साथ ही बीजेपी पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि वह इसे रोकने की कोशिश कर रही है.
चिराग और तेजस्वी एक दशक से भी ज्यादा समय से बिहार की राजनीति में सक्रिय हैं और खुद को स्थापित करने में सफल रहे हैं. जबकि निशांत कुमार को अभी राजनीति में कदम रखना बाकी है. निशांत राजनीति में आते हैं, तो वह जेडीयू के लिए एक नई पीढ़ी के नेता होंगे, लेकिन चिराग और तेजस्वी से सियासी अनुभव के मामले में पिछड़ सकते हैं. ऐसे में नीतीश नहीं चाहते हैं कि उनके बेटे चुनाव में उतरें तो सियासी मात खाएं, बल्कि एक सफल नेता के तौर पर खुद को स्थापित करें. इसीलिए नीतीश कुमार वेट एंड वॉच के मूड में हैं और चुनाव तक निशांत की पॉलिटिक्स में एंट्री को टाले रखना चाहते हैं.
नीतीश जेडीयू में नहीं चाहते कोई फूट
नीतीश कुमार चुनावी तपिश के बीच किसी तरह का कोई जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. नीशांत कुमार के राजनीतिक एंट्री को लेकर जेडीयू दो धड़ों में बंटी हुई है. एक धड़ा निशांत को सियासी पिच पर उतारने के लिए बेताब है, तो दूसरा धड़ा नहीं चाहता है कि वह फिलहाल राजनीति में एंट्री करें. नीतीश कुमार की परिवारवाद की राजनीति से दूर रहने वाली छवि से जेडीयू में कई नेता हैं, जो खुद को भविष्य में पार्टी का नेता देख रहे हैं.
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निशांत कुमार की राजनीति एंट्री से जेडीयू के ऐसे नेताओं की नाराजगी का भी खतरा है. नीतीश कुमार चुनावी माहौल में पार्टी के अंदर सिकी तरह की कलह नहीं चाहते. वह इस बात को जानते हैं कि जेडीयू कोई कैडर आधारित पार्टी नहीं है, बल्कि सियासी हालातों से निकली हुई पार्टी है. जेडीयू में पिछले दिनों ओबीसी व सवर्ण नेताओं के बीच सियासी टकराव देखने को मिली थी, जब अशोक चौधरी और ललन सिंह अपने-सामने आ गए थे.
2025 के चुनाव तक टाले रखने का दांव
नीतीश कुमार के लिए 2025 का विधानसभा चुनाव ‘करो या मरो’ वाली स्थिति है. जेडीयू की सीटें 2020 में काफी घट गई थीं और वह तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. नीतीश के लिए इस बार जेडीयू को पुराने मुकाम पर पहुंचाने की चुनौती है, जिसके लिए वह तमाम लोकलुभावन वादों का ऐलान कर रहे हैं. नीतीश बिहार के लोगों को मुफ्त बिजली देने से लेकर एक करोड़ नौकरी देने का ऐलान तक कर चुके हैं. इसके अलावा जेडीयू के कोर वोट बैंक, महिलाओं के लिए भी तमाम वादों की घोषणा की है.
जेडीयू 20 साल से बिहार की सत्ता में बनी हुई है. ऐसे में संभावित सत्ता विरोधी लहर को काउंटर करने की रणनीति नीतीश कुमार ने बनाई है, लेकिन निशांत की राजनीतिक एंट्री से सियासी माहौल बदल सकता है. इसीलिए नीतीश चुनाव तक कोई भी राजनीतिक रिस्क लेने के मूड नहीं हैं. नीतीश कुमार की रणनीति चुनाव तक निशांत की एंट्री टालने की है, जेडीयू अगर सत्ता में लौटती है, तो निशांत को हम सक्रिय राजनीति में देख सकते हैं.
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