बरेली के एक छोटे से कस्बे शीशगढ़ में रहने वाला लड़क महज 17 साल का था, जब उसे बाइक चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया. अब आरोप साबित नहीं हुए, लेकिन इसके पहले उसने अब तक अपनी जिंदगी के सबसे कीमती साल पुलिस थानों, अदालत की तारीखों और जेल की चारदीवारियों में खो दिए.
मामले की शुरुआत
साल 2014 में, शीशगढ़ (जिला बरेली) के निवासी कमर अहमद को रामपुर जिले के बिलासपुर थाना पुलिस ने बाइक चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया था. आरोप था कि उसने चोरी की गई मोटरसाइकिल के इंजन और चेचिस नंबर को खुरचकर उसकी पहचान मिटा दी है. इस आधार पर केस बनाया गया. उसे जेल भेज दिया, जहां उसने करीब तीन साल तक सजा काटी.
कमर के मुताबिक, जब उसे गिरफ्तार किया गया, तब वह महज 17 साल का था. वह कहते हैं, उस वक़्त ना मुझे जिम्मेदारी की समझ थी. मैं बस एक आम लड़का था, जो खेलकूद और पढ़ाई में लगा रहता था. लेकिन पुलिस ने मुझे गांव के भट्टे से उठाया और चोरी का केस लगा दिया. इसके बाद से मेरी जिंदगी जैसे रुक गई.
तीन साल जेल, 11 साल का संघर्ष
कमर को जब जेल भेजा गया, तब उसे उम्मीद थी कि अदालत जल्द ही सच्चाई जान जाएगी. लेकिन यह प्रक्रिया एक-दो महीने नहीं, पूरे ग्यारह साल तक खिंचती रही. इस दौरान उसे कई बार दोबारा गिरफ्तार किया गया, वारंट जारी हुए, और आर्थिक तंगी के कारण कई बार वह अदालत में पेश भी नहीं हो सका. वह बताते हैं, जेल में रहना बहुत कठिन होता है. वहां इज्जत, इंसानियत, खाना कुछ भी ढंग का नहीं मिलता. फिल्मों में जेल देखी थी, लेकिन हकीकत बहुत ज्यादा डरावनी निकली. तीन साल ऐसे बीते जैसे पूरी उम्र बीत गई हो.
पुलिस पर लापरवाही का आरोप
कमर अहमद की पैरवी कर रहे अधिवक्ता अकील अहमद ने बताया कि इस मामले में पुलिस की विवेचना बेहद सतही और अपूर्ण थी. मुकदमे के दौरान चार गवाह वादी, विवेचक, एफआईआर लेखक और एक अन्य पेश किए गए. लेकिन किसी ने भी यह नहीं बताया कि मोटरसाइकिल की असली चोरी कहां से हुई थी और उसका मालिक कौन था.
पुलिस ने नहीं की सही जांच
अकील अहमद कहते हैं, पुलिस ने केवल मोटरसाइकिल की बरामदगी दिखाकर केस बना दिया, लेकिन यह जांच ही नहीं की कि बाइक किसकी थी. जब मालिक ही सामने नहीं आया, तो चोरी कैसे मानी जाए? यही बात हमने अदालत में जोर देकर रखी. अदालत ने पाया कि पर्याप्त सबूत नहीं हैं और अंततः कमर को दोषमुक्त कर दिया गया. अकील अहमद कहते हैं जब अदालत ने 11 साल बाद फैसला सुनाया कि कमर अहमद निर्दोष है, तो वह राहत की सांस ले तो सका, लेकिन वह मुस्कान नहीं लौटी जो कभी उसका चेहरा सजाया करती थी.
कौन लौटाएगा मेरे वो दिन
कमर कहते हैं कि मेरे वो दिन कौन लौटाएगा जो मैंने जेल में और कोर्ट-कचहरी में गंवाए. मेरे दोस्त पढ़-लिखकर नौकरी कर रहे हैं. मैं कुछ नहीं कर पाया. कमर आगे कहते हैं, जिंदगी का सबसे कीमती वक्त मैं इस केस में झोंक चुका हूं. क्या कोई मेरे बीते हुए दिन लौटा सकता है.
कहते हैं देर है अंधेर नहीं
कमर कहते हैं कि अंततः न्यायालय ने यह माना कि मामले में पर्याप्त सबूत नहीं हैं और पुलिस की गवाही भरोसे के लायक नहीं थी. मुझे बरी कर दिया गया. यह न्याय ज़रूर है लेकिन वह देर से आया है.
—- समाप्त —-