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    शुभांशु शुक्ला का यान समुद्र में उतरा जबकि जमीन पर लैंड हुए थे राकेश शर्मा… जानें क्या थी वजह

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    भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला कैलिफ़ोर्निया के पास स्पेसएक्स ड्रैगन कैप्सूल से समुद्र में सुरक्षित तरीके से उतरे. वहीं, 2024 में बोइंग का स्टारलाइनर न्यू मैक्सिको के व्हाइट सैंड्स स्पेस हार्बर पर ज़मीन पर उतरा. अंतरिक्ष से लौटते वक्त स्प्लैशडाउन यानी समुद्र में उतरना ज्यादा आसान और सुरक्षित माना जाता है, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है. 

    अमेरिका में आमतौर पर पानी में उतरना पसंद किया जाता है, जबकि रूस और चीन के मिशन ज़मीन पर ही उतरते हैं. ऐसा क्यों होता है? दरअसल, स्पेसक्राफ्ट की डिज़ाइन, उसकी क्षमता और रिकवरी की सुविधा के हिसाब से पहले से तय कर लिया जाता है कि कहां उतरना है.

    करीब 41 साल पहले, अप्रैल 1984 में, अंतरिक्ष में जाने वाले भारत के पहले शख्स विंग कमांडर राकेश शर्मा, सोवियत सैल्यूट 7 अंतरिक्ष स्टेशन के अपने मिशन के बाद सोयूज टी-10 कैप्सूल पर सवार होकर कजाकिस्तान पहुंचे थे.

    पानी में लैंडिंग से रिस्क कम क्यों?

    ड्रैगन के पानी में लैंडिंग से यह सुनिश्चित होता है कि अंतरिक्ष यान के ट्रंक से मलबा, पुनः प्रवेश से पहले महासागर फेंक दिया जाए. इससे ज़मीन पर लोगों या संपत्ति को होने वाले जोखिम कम हो जाते हैं.

    हालांकि, ज़मीन पर लैंडिंग सटीक और अपेक्षाकृत सुरक्षित होती है, जैसा कि स्टारलाइनर के न्यू मैक्सिको लैंडिंग के मामले में देखा गया. मलबे के मैनेजमेंट के लिए नियंत्रित क्षेत्रों की जरूरत होती है, जो अप्रत्याशित हो सकते हैं.

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    पानी में लैंडिंग ज्यादा सेफ होती है क्योंकि मलबा आवासीय या व्यावसायिक इलाकों में गिर सकता है, जिससे नुकसान हो सकता है. यह रिस्क अप्रैल में तब पता चला, जब स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन कैप्सूल के ट्रंक के टुकड़े ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे दूर-दराज के इलाकों में पाए गए.

    हमेशा हल्की नहीं होती धरती पर लैंडिंग…

    जमीन पर उतरते वक्त, पैराशूट वाले कैप्सूल पानी से टकराने से पहले काफ़ी धीमे हो जाते हैं, लेकिन ज़मीन पर उतरते वक्त अक्सर ज़्यादा ज़ोरदार प्रभाव पड़ता है. इससे खासकर सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित चालक दल के लिए असुविधा होती है. ज़मीन पर उतरना मुमकिन है लेकिन ज़मीन और मौसम की वजह से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

    ज़मीन पर लैंडिंग में अंतरिक्ष यान पैराशूट के सहारे पृथ्वी पर उतरते हैं और ठोस ज़मीन पर उतरते हैं. आमतौर पर कज़ाकिस्तान के मैदानों जैसे दूरदराज के इलाकों में ऐसा होता है. इससे समुद्री रिकवरी की जटिलताओं और लागतों से बचा जा सकता है. कज़ाकिस्तान के बड़े, समतल भूभाग की वजह से, दशकों से इस्तेमाल किया जा रहा रूसी सोयुज अंतरिक्ष यान इसी प्रोसेस का उपयोग करता है.

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    शेनझोउ (Shenzhou) जैसे चीनी मिशन भी इसी वजह से आंतरिक मंगोलिया में उतरते हैं. अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के उतरने के दौरान भी यही लैंडिंग विधि अपनाई गई थी. शर्मा सैल्यूट 7 स्टेशन के लिए एक मिशन के बाद सोयुज टी-10 मॉड्यूल पर सवार होकर कज़ाकिस्तान पहुंचे और अर्कालिक (Arkalyk) के पास दलदले मैदानों में सुरक्षित रूप से उतरे.

    2024 में राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष से अपनी वापसी के बारे में बताया था. पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, “वापसी ज़्यादा रोमांचक थी क्योंकि मुझे लगा था कि मैं इसमें सफल नहीं हो पाऊंगा, तभी पैराशूट खुलता है और अंदर से बहुत ज़्यादा आवाज़ आती है, जिसके लिए हम तैयार नहीं थे.”

    शुभांशु शुक्ला के मिशन के लिए सुरक्षा, आराम और ऑपरेशनल फायदों के लिए पानी में उतरने को चुना गया, जिससे स्पेस से वापसी आसान हो गई.
     

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