विकसित देशों में राजनीति ऐसे मुद्दों पर होती है, जिससे देश और देशवासियों का भला हो, जैसे बेरोजगारी, औद्योगिक विकास, टैक्स नीति, स्वास्थ्य सेवाएं और अवैध प्रवासी. लेकिन हमारे देश में राजनीति इन मुद्दों पर नहीं होती. हमारे यहां के नेता जनता से पूछते हैं कि आप कौन सी जाति से हैं, आप कौन सी भाषा बोलते हैं या फिर आपका धर्म क्या है. हमारे नेताओं की सारी राजनीति जाति, धर्म और भाषा के आधार पर जनता को बांटने तक ही सीमित रह गई है.
महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी विवाद
महाराष्ट्र में चल रहा भाषा विवाद इसका एक बड़ा उदाहरण है. यहां पर पिछले कुछ हफ्तों से मराठी बनाम हिंदी भाषी के बीच जंग छिड़ी हुई है. मराठी भाषा के छद्म ठेकेदार (ऐसा व्यक्ति जो किसी निर्माण कार्य में वैध ठेकेदार नहीं होता), हिंदी भाषी लोगों के साथ मारपीट और गाली-गलौज कर रहे हैं और उन पर मराठी बोलने का दबाव डाल रहे हैं. मराठी भाषा के ये नकली योद्धा, अपने नेताओं के इशारे पर गरीब हिंदी भाषियों पर अत्याचार कर रहे हैं.
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एक घटना 29 जून की शाम मीरा रोड पर हुई थी, जिसमें राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कुछ कार्यकर्ताओं ने एक गुजराती दुकानदार को खूब मारा था. इस दुकानदार की गलती ये थी कि वह मराठी में नहीं बोल रहा था. मनसे कार्यकर्ताओं ने उस दुकानदार को मराठी न बोलने की वजह से पीटा था. क्या यह मनसे कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी नहीं है?
गुजराती और मारवाड़ी समाज का विरोध प्रदर्शन
इस घटना के खिलाफ कुछ दिन पहले गुजराती और मारवाड़ी दुकानदारों ने जोरदार प्रदर्शन किया था. लोगों ने मराठी भाषा को जबरदस्ती थोपने के नाम पर हो रही गुंडागर्दी के खिलाफ थे. मीरा रोड पर ही प्रदर्शन हुआ, जिसमें महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के खिलाफ नारेबाजी की गई थी.
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मनसे का जवाबी प्रदर्शन
अपने कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी के खिलाफ हुए इस प्रदर्शन से मनसे के कार्यकर्ता भड़क गए और उन्होंने मीरा रोड पर जबरदस्त हंगामा किया. इस हंगामे का मकसद हिंदी भाषियों पर मराठी बोलने का दबाव बनाना ही था. मनसे ने इस प्रदर्शन को लेकर कोई अनुमति नहीं ली थी. इस वजह से महाराष्ट्र पुलिस ने प्रदर्शन करने वाले कार्यकर्ताओं को हिरासत में भी लिया.
सियासी बयानबाजी और नेताओं की जुबानी जंग
मराठी और हिंदी के बीच चल रहे घमासान में उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र के नेताओं में जुबानी जंग भी चल रही है. बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मराठी विवाद के समर्थक नेताओं को यूपी-बिहार में पटक पटक कर पीटने की चेतावनी दी, तो वहीं इसके जवाब में उद्धव ठाकरे ने इस तरह के बयान देने वालों को लकड़बग्घा कहा. नेताओं की इसी तरह की बयानबाजी ने कार्यकर्ताओं को भड़का दिया. इसी वजह से आज सुबह करीब 5 से 6 घंटे तक मीरा रोड पर खूब हंगामा हुआ. पुलिस और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं में झड़पें भी हुईं. इस दौरान मनसे के कार्यकर्ता हिंदी भाषी पत्रकारों पर भी मराठी थोपने की कोशिश करते नजर आए.
मराठी बनाम हिंदी की राजनीति का इतिहास
महाराष्ट्र में मराठी बनाम हिंदी भाषी की यह लड़ाई नई नहीं है. यह समय-समय पर राजनीतिक जरूरत के हिसाब से सड़क पर उतरती रही है. मराठी बनाम हिंदी की हालिया जंग, ठाकरे बंधुओं की गठजोड़ की देन समझा जा रहा है.
बाला साहेब ठाकरे की राजनीति
महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा से ही मराठी मानुष बनाम बाहरी के बीच घूमती रही है. शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे की शुरुआती राजनीति भी क्षेत्रवाद से प्रेरित थी. उन्होंने मराठी बनाम गैर मराठी के मुद्दे से ही अपनी राजनीति शुरू की थी. बाला साहेब ठाकरे का मुख्य एजेंडा हिंदुत्व था, लेकिन वह महाराष्ट्र पर पहला हक मराठी मानुष का ही मानते थे.
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राज ठाकरे की राजनीति और मनसे का गठन
2005 में बाला साहेब ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने क्षेत्रवाद के एजेंडे पर ही टिके रहने में अपनी भलाई समझी और अगले साल एक नई पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली. इस पार्टी का एजेंडा स्पष्ट था—दूसरे प्रदेशों से आने वाले लोगों का विरोध. राज ठाकरे की पार्टी मनसे शुरू से ही उत्तर प्रदेश और बिहार से आने वाले मजदूरों के खिलाफ रही है. वह दूसरे प्रदेशों से आने वाले लोगों को मराठियों के लिए खतरा बताती रही है.
विधानसभा और लोकसभा में गिरता जनाधार
पिछले कुछ चुनावों के नतीजे बताते हैं कि उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की पार्टियों का जनाधार गिरा है. विधानसभा और लोकसभा चुनावों में लगातार गिरती सीटों की संख्या इसकी पुष्टि करती है.
BMC चुनाव और भाषा की राजनीति
मुंबई में होने वाले बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव को दोनों नेताओं की तीसरी बड़ी परीक्षा माना जा रहा है. बीएमसी भारत का सबसे अमीर नगर निगम है और इसी वजह से मराठी बनाम हिंदी की राजनीति को बीएमसी चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.
मराठी भाषा की विरासत और शिवाजी का दृष्टिकोण
मराठी भाषा को छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन में विशेष सम्मान मिला था. उन्होंने सभी भाषाओं को सम्मान दिया और किसी पर भी मराठी बोलने का दबाव नहीं डाला. उनके अनुसार विदेशी मुगल ही बाहरी थे, ना कि भाषाई विविधता वाले भारतीय नागरिक.
भारत की भाषाई विविधता
भारत विविधताओं का देश है. यहां 22 आधिकारिक भाषाएं हैं और सैकड़ों बोलियां हैं. बावजूद इसके हम हजारों सालों से एक साथ रह रहे हैं. लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कुछ लोग भाषा के स्तर पर भेदभाव और मारपीट करने लगे हैं.
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भाषाई भेदभाव का विरोध
देश का संविधान हमें जो आजादी देता है उसके तहत आप और हम देश के किसी भी कोने में कोई भी भाषा बोल सकते हैं. इसलिए भाषा के नाम पर हिंसा करने वालों का यह झुंड कायरों की फौज है, जिनके लिए भाषाई नफरत फैलाना राजनीतिक हथियार बन गया है.
बॉलीवुड और हिंदी भाषियों का योगदान
मुंबई में हिंदी भाषियों को मारने-पीटने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि बॉलीवुड हिंदी भाषी फिल्मों के दम पर टिका है. ना जाने कितने ही राज्यों और भाषाएं बोलने वाले लोगों को इसने रोजगार दिए हैं.
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