More
    HomeHomeइस बार BRICS सम्मेलन में नहीं दिखेंगे पुतिन-जिनपिंग, भारत और ब्राजील के...

    इस बार BRICS सम्मेलन में नहीं दिखेंगे पुतिन-जिनपिंग, भारत और ब्राजील के लिए बड़ा कूटनीतिक मौका

    Published on

    spot_img


    ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में रविवार से ब्रिक्स (BRICS) समूह का शिखर सम्मेलन शुरू हो रहा है. इस बार एक महत्वपूर्ण बदलाव ने सबका ध्यान खींचा है – चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं. अपने एक दशक से अधिक लंबे शासन में यह पहली बार है जब शी ब्रिक्स की सालाना बैठक से दूर हैं.

    शी की गैरमौजूदगी ऐसे वक्त में हो रही है जब ब्रिक्स, जो अब 2024 के बाद 10 सदस्यीय समूह बन चुका है और अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापारिक तनाव और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के दौर से गुजर रहा है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कई देशों पर लगाए गए टैरिफ की समय सीमा 9 जुलाई को खत्म हो रही है, जिससे इन देशों पर साझा रणनीति बनाने का दबाव बढ़ा है.

    शी जिनपिंग की जगह इस बार चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ब्रिक्स में चीन प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. हालांकि जानकारों का मानना है कि यह चीन की ब्रिक्स में रुचि कम होने का संकेत नहीं है, बल्कि घरेलू आर्थिक मामलों और रणनीतिक प्राथमिकताओं के चलते यह निर्णय लिया गया है.

    क्या ब्रिक्स अब उतना प्रभावी नहीं रहा?
    ब्रिक्स की शुरुआत 2009 में ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन के आर्थिक सहयोग समूह के रूप में हुई थी, जिसमें एक साल बाद दक्षिण अफ्रीका जुड़ा. 2024 में इसमें मिस्र, UAE, इथियोपिया, इंडोनेशिया और ईरान को भी शामिल किया गया. अब यह समूह वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव लाने का प्रयास कर रहा है, खासकर पश्चिमी देशों के प्रभाव को संतुलित करने के लिए.

    यह भी पढ़ें: PM नरेंद्र मोदी रियो डी जेनेरियो पहुंचे, 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में लेंगे हिस्सा

    हालांकि, अलग-अलग राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक सोच रखने वाले देशों का यह समूह अक्सर एकजुटता नहीं दिखा पाता है. हाल ही में ईरान पर हुए हमलों को लेकर संयुक्त बयान में अमेरिका और इज़रायल का नाम नहीं लिया गया, जिससे इस समूह में अंर्तविरोध देखने को मिला

    भारत को मिल सकता है कूटनीतिक लाभ
    इस बार की बैठक में भारत ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का केंद्र बिंदु रहने वाला है. चीन और रूस के शीर्ष नेताओं की गैरमौजूदगी से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रमुख मंच मिलने की संभावना है. मोदी ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनेसियो लूला डा सिल्वा के साथ द्विपक्षीय बैठकें भी करेंगे.

    दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा भी सम्मेलन में मौजूद रहेंगे.ब्राजील ने पीएम मोदी के सम्मान में स्टेट विजिट का भी आयोजन रखा है, जो कि 8-9 जुलाई को ब्रासिलिया में होगा.

    डॉलर के विकल्प की तलाश
    ब्रिक्स के सदस्य लंबे समय से व्यापार में डॉलर की निर्भरता को कम करने और राष्ट्रीय मुद्राओं में लेनदेन को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं. रूस और ईरान जैसे अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित देशों के लिए यह रणनीति खास मायने रखती है. हालांकि, एक साझा ब्रिक्स मुद्रा की संभावना इस बैठक में कम ही दिख रही है, क्योंकि इसके विरोध में ट्रंप ने जनवरी में 100% टैरिफ लगाने की धमकी दी थी.

    शी की अनुपस्थिति के मायने
    विश्लेषकों के अनुसार, शी जिनपिंग इस समय घरेलू अर्थव्यवस्था पर ज्यादा ध्यान देना चाह रहे हैं. अमेरिका के साथ चल रहे ट्रेड वॉर और आने वाले वर्षों के लिए चीन की नीति-निर्धारण प्रक्रिया इस समय शी की प्राथमिकता बनी हुई है. उनके करीबी सहयोगी ली कियांग को भेजकर चीन ने संकेत दिया है कि वह ब्रिक्स को महत्व देता है, लेकिन यह बैठक किसी बड़े कूटनीतिक घटनाक्रम की अपेक्षा नहीं कर रही है.

    तेल पर दबदबा, 37% जीडीपी… कितना ताकतवर है BRICS 

    तो इस वजह से नहीं आ रहे पुतिन
    शी जिनपिंग अकेले ऐसे राष्ट्राध्यक्ष नहीं हैं जो ब्रिक्स में मौजूद नहीं रहेंगे बल्कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी सम्मेलन में केवल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल होंगे — ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने 2023 में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ब्रिक्स बैठक में वर्चुअली हिस्सा लिया था. 

    दरअसल ब्राजील इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (ICC) का सदस्य है और उस स्थिति में यदि पुतिन वहां आते तो उन्हें यूक्रेन युद्ध अपराधों के आरोप में कोर्ट के आदेश पर गिरफ्तार करना ब्राज़ील की बाध्यता बन जाती.ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति अधिक महत्वपूर्ण हो गई है, क्योंकि वे इस सम्मेलन में व्यक्तिगत रूप से हिस्सा लेने वाले चंद प्रमुख नेताओं में शामिल हैं.

    ब्रिक्स विस्तार और उसका प्रभाव
    ब्रिक्स को विकासशील देशों के G7 के विकल्प के रूप में देखा जाता रहा है. इसकी स्थापना ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका ने मिलकर की थी, लेकिन 2023 में इसमें इंडोनेशिया, ईरान, मिस्र, इथियोपिया, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश जुड़ गए. इस विस्तार से समूह का वैचारिक स्वरूप कमजोर पड़ा है.

    नए सदस्य देशों की पश्चिम विरोधी नीति और राजनीतिक व्यवस्थाएं अलग-अलग हैं, जिससे एकजुटता की कमी आई है.  ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे लोकतांत्रिक देश इस असंतुलन को लेकर असहज हैं. ब्रिक्स का विस्तार जहां बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ने का संकेत देता है, वहीं इसके भीतर विरोधाभास भी हैं. जैसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की मांग को चीन समर्थन नहीं देगा. ब्राज़ील की ग्रीन नीति और कार्बन उत्सर्जन कम करने की प्रतिबद्धता सऊदी, रूस और UAE जैसे तेल-आधारित अर्थव्यवस्थाओं से टकराएगी.

    —- समाप्त —-



    Source link

    Latest articles

    ‘अगर आप किसी ग्रुप का हिस्सा हैं…’, बॉलीवुड में नेपोटिज्म को लेकर बोले एक्टर अली फजल

    बॉलीवुड में नेपोटिज्म पर बहस लंबे समय से चली आ रही है. फिल्मी...

    Team Uddhav taunts Raj Thackeray day after reunion rally: Had tea with Amit Shah

    A day after Uddhav Thackeray and Raj Thackeray shared the stage in a...

    From Sex Clubs to Castles, Latex to Upcycling, Berlin Fashion Week Had Something for Everyone

    BERLIN — There was something for everyone at this season’s four-day iteration of...

    ‘Worrying disappearance’: 18-year-old French national missing in Iran; 20 Europeans under detention in country – Times of India

    An 18-year-old Frenchman, who also holds German citizenship, has gone missing...

    More like this

    ‘अगर आप किसी ग्रुप का हिस्सा हैं…’, बॉलीवुड में नेपोटिज्म को लेकर बोले एक्टर अली फजल

    बॉलीवुड में नेपोटिज्म पर बहस लंबे समय से चली आ रही है. फिल्मी...

    Team Uddhav taunts Raj Thackeray day after reunion rally: Had tea with Amit Shah

    A day after Uddhav Thackeray and Raj Thackeray shared the stage in a...

    From Sex Clubs to Castles, Latex to Upcycling, Berlin Fashion Week Had Something for Everyone

    BERLIN — There was something for everyone at this season’s four-day iteration of...