भारत-पाकिस्तान के बीच इस समय तनाव चरम पर है. पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कार्रवाई कीं. इनमें सिंधु जल संधि सस्पेंड करना और ऑपरेशन सिंदूर भी शामिल है. हालांकि जब बात खेल की होती है, तो यह तनाव अंतरराष्ट्रीय मानकों और प्रतिबद्धताओं से टकरा जाता है.
अगले महीने बिहार के राजगीर में आयोजित होने वाले एशिया कप हॉकी टूर्नामेंट में पाकिस्तान की टीम को खेलने की अनुमति मिलने के पीछे भी कुछ ऐसे ही अंतरराष्ट्रीय खेल सिद्धांतों और भारत की वैश्विक खेल छवि की चिंता छुपी हुई है.
दरअसल, 27 अगस्त से 7 सितंबर तक बिहार के राजगीर में एशिया कप हॉकी टूर्नामेंट खेला जाएगा, जिसमें कई एशियाई देशों की टीमों के साथ पाकिस्तान की हॉकी टीम भी शामिल होगी. इसके अलावा, भारत में नवंबर-दिसंबर में होने वाले जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप में भी पाकिस्तान को खेलने की अनुमति दी जाएगी.
हालांकि, हाल ही में चल रहे ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और भारत-पाक के बीच राजनीतिक तनाव को देखते हुए यह संदेह बना हुआ था कि पाकिस्तान को वीजा मिलेगा या नहीं. लेकिन अब खेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ सूत्र ने स्पष्ट किया है कि भारत सरकार पाकिस्तान की टीम को वीजा देने के पक्ष में है, क्योंकि यह मामला द्विपक्षीय मुकाबले का नहीं, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट का है और अगर भारत पाकिस्तान को इसके लिए वीजा नहीं देता है तो इससे कई तरह के अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ सकते हैं.
1. ओलंपिक चार्टर का आदेश
ओलंपिक चार्टर यह स्पष्ट करता है कि हर व्यक्ति को खेल में भागीदारी का समान अधिकार होना चाहिए, और यह अधिकार किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना सुनिश्चित किया जाना चाहिए. यह सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानवाधिकारों के अनुरूप है.
2. भेदभाव निषेध सिद्धांत
ओलंपिक चार्टर राष्ट्रीयता के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित करता है. इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि योग्य खिलाड़ी, भले ही उनके देशों के आपसी राजनीतिक संबंध जैसे भी हों, अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भाग ले सकें.
3. खेल की राजनीतिक तटस्थता
ओलंपिक आंदोलन इस सिद्धांत पर आधारित है कि खेल को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाए. यदि कोई देश राजनीतिक कारणों से किसी खिलाड़ी को वीज़ा देने से इनकार करता है, तो यह इस तटस्थता सिद्धांत का उल्लंघन माना जाता है.
4. भविष्य की मेज़बानी पर असर
यदि कोई मेज़बान देश योग्य खिलाड़ियों को वीज़ा देने से इनकार करता है, तो उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग किया जा सकता है। साथ ही, भविष्य के खेल आयोजनों की मेज़बानी का अधिकार भी खो सकता है.
5. भारत को पहले भी भुगतना पड़ा है खामियाजा
– 2019: ISSF शूटिंग वर्ल्ड कप, नई दिल्ली
भारत ने पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के दो शूटर और एक अधिकारी को ISSF राइफल/पिस्टल वर्ल्ड कप में भाग लेने के लिए वीजा देने से इनकार कर दिया. इसके जवाब में IOC ने भारत से ओलंपिक क्वालिफायर का दर्जा छीन लिया. भारत को भविष्य के आयोजन का मेजबान बनाने पर स्थगन लगा दिया. अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों के लिए लिखित गारंटी की मांग की.
– 2018: कोसोवो के खिलाड़ियों को वीजा से इनकार
भारत ने विश्व बॉक्सिंग चैम्पियनशिप के लिए कोसोवो के खिलाड़ियों को वीजा नहीं दिया था. इससे भी भारत की वैश्विक छवि को झटका लगा.
अन्य देशों के उदाहरण
भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जहां खेल और राजनीति के टकराव सामने आए हैं. मलेशिया ने 2019 में इजरायली पैरा स्विमर्स को वीजा देने से इनकार किया था. इसके बाद IPC (International Paralympic Committee) ने मलेशिया से मेजबानी का अधिकार छीन लिया.
UAE ने 2009 में इजरायली टेनिस खिलाड़ी शाहर पीयर को वीजा नहीं दिया था. WTA ने भारी जुर्माना लगाया और अगले वर्ष खिलाड़ियों के वीजा को अनिवार्य किया गया.
इन उदाहरणों और सिद्धांतों से स्पष्ट होता है कि अंतरराष्ट्रीय खेल संस्थाएं यह अपेक्षा करती हैं कि मेजबान देश सभी योग्य खिलाड़ियों को वीजा प्रदान करें, चाहे दो देशों के बीच राजनीतिक तनाव ही क्यों न हो. केवल राजनीतिक कारणों से वीजा देने से इनकार करना ओलंपिक चार्टर और वैश्विक खेल मानकों के खिलाफ है. ऐसा करने से संबंधित देश को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है या भविष्य में खेल आयोजनों की मेज़बानी का अधिकार छिन सकता है.
भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा और जिम्मेदारी
भारत आज G20 सदस्य, ओलंपिक पदक विजेता और अंतरराष्ट्रीय आयोजनों की मेज़बानी करने वाला देश है. यदि भारत अपने घरेलू राजनीतिक कारणों से किसी देश के खिलाड़ियों को वीजा देने से इनकार करता है, तो यह उसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर सीधा प्रहार है. भारत ने 2023 में पुरुष हॉकी विश्व कप की मेजबानी की थी और अब एशिया कप व जूनियर वर्ल्ड कप की मेज़बानी कर रहा है. ऐसे में उसे खेलों की राजनीतिक तटस्थता बनाए रखनी होगी.
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