HomeHomeईरान में जंग खत्म लेकिन असली खेल तो अब शुरू... खामेनेई शासन...

ईरान में जंग खत्म लेकिन असली खेल तो अब शुरू… खामेनेई शासन के लिए आगे की राह आसान नहीं

Published on

spot_img


इजरायल और ईरान के बीच 12 तक चली जंग अब खत्म हो चुकी है. लेकिन इस लड़ाई में ईरान को काफी नुकसान हुआ है. उसके तीन प्रमुख परमाणु ठिकाने तबाह हो गए हैं, साथ ही कई टॉप मिलिट्री कमांडर्स और परमाणु वैज्ञानिक इजरायली हमले में मारे गए हैं. सबसे गंभीर चिंता यह है कि इजरायल की हिट लिस्ट में ईरानी सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई भी शामिल थे, जिनकी हत्या का प्लान अमेरिका की दखल के बाद रद्द कर दिया गया. ऐसे में अब ईरान में खामेनेई शासन के लिए आगे की राह बहुत मुश्किल नजर आ रही है.

जनता के बीच गहरा असंतोष

इजरायली हमले और फिर अमेरिका की एंट्री ने इस जंग में ईरान को पस्त कर दिया है. वहां एक हजार के करीब लोगों की जान चली गई और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. साथ ही रिहायशी इमारतों से लेकर अहम इंफ्रास्ट्रक्चर को बमबारी से भारी नुकसान हुआ है. ऐसे में वहां की जनता के भीतर शासन को लेकर अंसोतष पैदा हो गया है. ईरान में पहले से ही खामेनेई शासन के खिलाफ जनता, खासकर युवा और महिलाओं में गुस्सा है. साल 2022 में महसा अमीनी की मौत के बाद शुरू हुए प्रदर्शनों ने शासन की कठोर नीतियों और मानवाधिकार उल्लंघन को दुनिया के सामने ला दिया था. ऐसे में जंग के बाद आंदोलन की चिंगारी फिर भड़क सकती है और जनता तख्तापलट का आह्लवान भी कर सकती है.

ये भी पढ़ें: क्या खत्म हो गया ईरान से एटमी खतरा? इस जंग से इजरायल और अमेरिका ने क्या-क्या हासिल किया

खामेनेई अब 86 साल के हो चुके हैं और ऐसे में उनके उत्तराधिकारी को लेकर तस्वीर अब तक साफ नहीं है. ऐसे में अनिश्चित भविष्य भी शासन की स्थिरता पर सवाल उठा रहा है. कुछ रिपोर्ट्स में ऐसा दावा किया गया है कि खामेनेई को सत्ता से हटाने की कोशिशें चल रही हैं. ईरान के प्रमुख कारोबारी, सैन्य अधिकारी और कुछ मौलवी तख्तापलट की साजिश रच सकते हैं. ईरान के उदारवादी समूह यह मानते हैं कि खामेनेई की नीतियों की वजह से ही ईरान युद्ध और आर्थिक संकट में फंस गया है.

विपक्षी ताकतों की आवाज बुलंद

ईरान में वैसे तो कोई संगठित विपक्षी ताकत नहीं है जो खामेनेई शासन को सीधे चुनौती दे सके. विपक्षी समूह, जैसे कि मुजाहिदीन-ए-खल्क कमजोर हो चुका हैं और निर्वासित नेता जैसे रेजा पहलवी के पास जनसमर्थन का अभाव है. लेकिन हालिया जंग के बाद ईरान के निर्वासित क्राउन प्रिंस रेजा शाह पहलवी ने युद्ध के लिए परमाणु हथियारों की महत्वाकांक्षा को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने सुप्रीम लीडर खामेनेई के इस्तीफे की मांग की है और कहा कि इस शासन के अंत के साथ ही ईरान में शांति आ सकती है. 

ये भी पढ़ें: इजरायल से जंग के बाद क्या ढह जाएगा इस्लामिक शासन? अब क्या होगा ईरान का भविष्य

पहलवी ने कहा है कि परमाणु हथियारों की चाह ईरान में अशांति की सबसे बड़ी वजह है, जिसने जनता के हितों को ताक पर रख दिया है. उन्होंने कहा कि खामेनेई और उनका ढलता आतंकी शासन ईरान को विफल बना चुका है. जंग के बीच पहलवी ने खामेनेई से अपील करते हुए कहा कि अपने अंडरग्राउंड बंकर से निकलकर ईरानी जनता के हित में पद से इस्तीफा दें, ताकि ईरानी शांति और समृद्धि का दौर शुरू हो सके. इस अपील के बाद ईरान के नागरिक समूहों की तरफ से पहलवनी को समर्थन मिलने की उम्मीद है, जिससे खामेनेई को सत्ता से बेदखल करने का रास्ता साफ हो सकता है.

पश्चिम और बाहरी दबाव

अमेरिका और पश्चिमी देशों के सख्त आर्थिक प्रतिबंधों ने ईरान की अर्थव्यवस्था को भी गहरी चोट पहुंचाई है. तेल निर्यात में कमी, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी ने जनता के जीवन स्तर पर बुरा असर डाला है. ऐसे में वहां के कारोबारियों को डर है कि जंग का सबसे ज्यादा नुकसान उन्हें उठाना पड़ेगा और वे अब एक शांतिप्रिय शासन की उम्मीद कर रहे हैं. इसके अलावा पश्चिम का दबाव भी ईरान में खामेनेई शासन के अंत की एक वजह बन सकता है.

ये भी पढ़ें: क्या ईरान ने अमेरिकी हमले से पहले छिपा लिया 400 KG यूरेनियम? ये 10 परमाणु बम बनाने के लिए काफी

ईरान में खामेनेई शासन के करीबी लोग और रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स (IRGC) आर्थिक संसाधनों पर पूरा कंट्रोल रखते हैं, जिससे आम जनता के हितों से समझौता किया जाता है. यह असंतोष शासन के खिलाफ पहले भी उभरकर सामने आया है, लेकिन मौजूदा हालात में इसे बल मिल सकता है. संघर्ष ने ईरान की अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त दबाव डाला है, देश के सैन्य खर्चों में बढ़ोतरी और बुनियादी ढांचे को नुकसान ने को ज्यादा जटिल बना दिया है.

जंग में अकेला पड़ा ईरान

इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने खुलकर कहा कि ईरान में खामेनेई को हटाने से क्षेत्रीय युद्ध खत्म हो सकता है और वह परमाणु कार्यक्रम बंद होने के साथ-साथ ईरान में सत्ता परिवर्तन भी चाहते हैं. हालांकि सत्ता परिवर्तन के मुद्दे पर उन्हें अमेरिका का साथ नहीं मिला, लेकिन ट्रंप भी खामेनेई शासन पर अपनी टेढ़ी नजर बनाए हुए हैं, क्योंकि न सिर्फ इजरायल बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए यह एक चुनौती बन चुका है.

ईरान समर्थित समूह जैसे हिजबुल्लाह और हमास हाल के युद्धों में कमजोर हुए हैं और इसका सीधा असर शासन की पड़ रहा है. सीरिया में तख्तापलट भी ईरान के लिए एक सबक है, क्योंकि यह उसका प्रमुख सहयोगी था. इसके अलावा मौजूदा जंग में किसी भी मुस्लिम देश ने ईरान को सीधा समर्थन नहीं दिया और न ही कोई प्रॉक्सी अमेरिका या इजरायल के खिलाफ खड़ा हुआ, यह बताता है कि ईरानी शासन की जड़ें अब कमजोर हो चुकी है.



Source link

Latest articles

More like this