More
    HomeHomeमंत्र आधारित योग पद्धति, 13 मंत्रों के साथ प्रणाम मुद्रा के आसान......

    मंत्र आधारित योग पद्धति, 13 मंत्रों के साथ प्रणाम मुद्रा के आसान… जानिए क्या है सूर्य नमस्कार

    Published on

    spot_img


    साल 2014 से शुरू हुआ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस अपने 11वें संस्करण में पहुंच चुका है और विश्व भर में अब बड़े पैमाने पर इसका आयोजन होता है. योग को समर्पित यह एक दिन बताता है कि सनातन परंपरा सिर्फ धार्मिक आस्था के प्रति ही जागरूक नहीं रही है, बल्कि इस परंपरा ने स्वास्थ्य लाभ भी जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि माना है. इसीलिए सूक्तियों में दर्ज है कि ‘शरीर माद्यं खलु धर्म साधनम्’  यानी कि स्वस्थ शरीर ही धर्म का आधार है. 

    अच्छा स्वास्थ्य है मानव शरीर के लिए वरदान
    इसी तरह, एक श्लोक में कहा गया है कि यदि धन चला गया तो समझिए कि कुछ नहीं गया, यदि स्वास्थ्य चला गया तो समझिए कि आधा धन चला गया, लेकिन अगर धर्म और चरित्र चला गया तो समझिए सबकुछ चला गया. यहां स्वास्थ्य जाने की बात को भी बड़ी हानि के तौर पर देखा गया है, इसलिए स्वस्थ शरीर को मानव जीवन का सबसे बड़ा वरदान माना गया है. इस बारे में सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में भी कई ऋचाएं दर्ज हैं. 

    ऋग्वेद में शारीरिक स्वास्थ्य की बात सीधे तौर पर देवताओं से मिले आशीर्वाद से जोड़कर कही गई है, जहां एक यज्ञ में आहुति देते हुए कहा जाता है कि ‘हे इंद्र! तुम यह आहुति ग्रहण करो और फिर इसके प्रभाव से हमें बलिष्ठ बनाओ.’

    यह प्रार्थना सिर्फ इंद्र से ही नहीं की गई है, बल्कि सूर्यदेव से भी की गई है. ऋग्वेद में सूर्य को भी बड़ा और महान देवता माना गया है. सूर्य देव को जगत की आत्मा और सत्य के प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है. वे जीवनदाता हैं, जो संसार को प्रकाश, ऊर्जा और चेतना प्रदान करते हैं. ऋग्वेद में सूर्य की महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है, जिसमें उन्हें अंधकार पर विजय प्राप्त करने वाला, पापों को नष्ट करने वाला और धर्म के मार्ग को प्रकाशित करने वाला बताया गया है. इसलिए उन्हों ऊर्जा का स्त्रोत भी कहा गया है और सभी देवों में सबसे पहले उन्हें नमस्कार करने की बात कही गई है.

    हर रोज दिखाई देने वाले देवता हैं सूर्यदेव
    भगवान भुवन भास्कर आदि देव हैं और सभी देवताओं के प्रतिनिधि के तौर पर हर दिन दर्शन देते हैं.सूर्य को दिया गया अर्घ्य सभी देवताओं व भगवान विष्णु को अपने आप समर्पित हो जाता है. इसके अलावा भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सूर्य ही है जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है. ऊर्जा का सबसे प्रमुख स्त्रोत है सूर्यदेव और प्राणियों में बल की ऊर्जा भी इनकी किरणों से ही आती है. विज्ञान की भाषा में इसे विटामिन डी कहा जाता है, जो शरीर की मजबूती के लिए और प्रतिरोधक क्षमता के लिए बहुत जरूरी है. 

    भारतीय मनीषा में शारीरिक व्यायाम के साथ दंडवत प्रणाम की शैली में अलग-अलग स्थितियों में सूर्य को नमस्कार करने की पद्धति विकसित की गई है. आयुर्वेद में इस सूर्य नमस्कार व्यायाम के नाम से जगह मिली. महर्षि च्यवन, ऋषि कणाद और इससे भी पहले श्रीराम के गुरु विश्वामित्र सूर्य नमस्कार की योग विधि को सिद्ध कर चुके थे. इसलिए बात होती है कि सूर्य नमस्कार की शुरुआत कहां से हुई तो इसका एक जवाब रामायण में मिलता है, जहां ऋषि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को बला-अतिबला की विद्या सिखाते हुए उन्हें सूर्य नमस्कार सिखाते हैं. यहीं पर वह उन्हें आदित्य हृदय स्त्रोत के पाठ का भी ज्ञान देते हैं.

    कहां से आया सूर्य नमस्कार?
    असल में सूर्य नमस्कार, कई गतिशील मुद्राओं का एक समूह है. यह एक संपूर्ण शारीरिक व्यायाम है, जिसे 1920 के दशक में औंध के राजा श्रीमंत बालासाहेब पंत प्रतिनिधि ने शुरू किया था. बाद में प्रख्यात योग गुरु और केवी. अय्यर और आयुर्वेदाचार्य योगगुरु कृष्णमाचार्य ने और प्रसिद्ध बनाया. यह व्यायाम दीपिका में बताए गए दंड व्यायाम पर आधारित है. जिन्हें दंडाल कहा जाता था. दंडाल एक पुराना शारीरिक प्रशिक्षण है, जिसे भारत में पहलवान और मार्शल आर्टिस्ट करते थे.

    पश्चिमी देशों में बॉडीबिल्डिंग के लिए किए जाने वाले पुशअप्स की शुरुआत भी इसी दंडाल से मानी जाती है. सूर्य नमस्कार में शारीरिक व्यायाम और योग का मिश्रण है, जो इसे आधुनिक व्यायामों का आधार बनाता है.  स्वामी शिवानंद योग वेदांत केंद्र, बिहार स्कूल ऑफ योग और स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान जैसे योग स्कूलों ने इसके सरल रूपों को अपनाया और इसे आधुनिक योग में शामिल किया. यह स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती के लिए एक प्रभावी अभ्यास है.

    सूर्य नमस्कार का सबसे सटीक वर्णन जिस व्यायाम दीपिका में मिलता है, वह 15वीं शताब्दी में लिखा गया योग आधारित ग्रंथ है. इसका एक और भाग है, जिसे हठयोग प्रदीपिका के नाम से जाना जाता है. नाथ योगियों के नाथ संप्रदाय से जुड़े योगी स्वात्माराम ने इन ग्रंथों की रचना की थी और कई शारीरिक योग आसनों का संकलन तैयार किया था, उन्होंने भी सूर्य को चेतना का केंद्र और ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत माना था, जिसके आधार पर सूर्य नमस्कार की आसन विधियों को संकलित किया गया था. हठयोग दीपिका और प्रदीपिका योग की प्राचीन भारतीय परंपरा का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है. इसमें कई खास प्रमुख पहलुओं पर जोर दिया गया है. 

    आसन: शारीरिक मुद्राएं जो शरीर को मजबूत और लचीला बनाती हैं.

    प्राणायाम: श्वास नियंत्रण की तकनीकें जो मन और प्राण (जीवन ऊर्जा) को संतुलित करती हैं.

    मुद्रा और बंध: विशिष्ट शारीरिक तकनीकें जो ऊर्जा प्रवाह को नियंत्रित करती हैं.

    नादानुसंधान: ध्यान और ध्वनि के माध्यम से आध्यात्मिक जागृति.
     
    वेदों से सूर्य पूजा के मंत्र लेकर और उनके सभी पर्यायवाची अर्थों को संकलित कर सूर्य नमस्कार आसन को बनाया गया. इसमें 13 मंत्र हैं और 12 स्थितियां हैं. यह 12 स्थितियां 12 आदित्यों को समर्पित हैं. वेदों में द्वादश आदित्य का जिक्र है जो देव माता अदिति के पुत्र हैं. इनमें विवस्वान सबसे बड़े हैं, जिन्हें सूर्य कहा गया है. इसके अलावा उनके नाम मित्र, रवि, भानु, खगाय, पूषण, आदित्य, भास्कर भी है. इन्हीं नामों के आधार पर मंत्र बने हैं. सूर्य नमस्कार की योग पद्धति मंत्र आधारित है. यह 13 मंत्रों की शक्तिशाली और विशेष धरोहर हैं. इन मंत्रों में सूर्य के पर्यायवाची नामों के जरिए उन्हें प्रणाम निवेदित किया जाता है. इन सभी 13 मंत्रों को एक-एक कर उच्चारण करते हैं और फिर 12 अलग-अलग स्थितियों की आसन शैली को करते जाते हैं. एक मंत्र बोलकर 12 स्थितियों में सूर्य को प्रणाम करना होता है.

    Surya Namskar

    इस तरह तेरह मंत्रों को बोलकर उसके बाद 12 अलग-अलग आसन किए जाते हैं.  इन सभी मंत्रों और इनके नाम के तात्पर्य पर डालते हैं एक नजर-

    ओम मित्राय नमः – सूर्य ऊर्जा का आधार है, इसलिए जीवों के लिए मित्र हैं. 
    ओम रवये नमः – सूर्य का एक नाम रवि भी है. इसका अर्थ है मैं रवि को नमस्कार करता हूं. 
    ओम सूर्याय नमः – यह तो सर्व प्रसिद्ध नाम है. इसका अर्थ है मैं सूर्य को नमस्कार करता हूं

    ओम भानवे नमः – सूर्य का एक नाम भानु है, भुवन में श्रेष्ठ होने के कारण वह भानु कहलाए हैं. 
    ओम खगाय नमः – पक्षियों के समान आकाश में विचरण करने के कारण वह पक्षी स्वरूप भी हैं. खग का अर्थ पक्षी होता है. 
    ओम पूषणे नमः –  सूर्य को इस नाम से भी पुकारते हैं.

    ओम हिरण्यगर्भाय नमः – हिरणी का गर्भस्थल सुनहला रंग का होता है. सूर्य में इसकी आभा होने के कारण उन्हें हिरण्यगर्भ कहा जाता है. 
    ओम मरीचए नमः – मरीचि के कुल में जन्म लेने के कारण सूर्यदेव मारीचि भी कहलाते हैं. 

    ओम आदित्याये नमः – अदिति और ऋषि कश्यप उनके माता-पिता है. अदिति के पुत्र होने से सूर्य देव आदित्य कहलाए. 

    ओम सवित्रे नमः – सकारात्मकता की प्रतीक किरणों के कारण उन्हें सविता देव कहते हैं. 
    ओम अर्काय नमः – सभी औषधियों और बूटियों में सूर्य का ही तेज समाया है. रस को अर्क कहते हैं, इसलिए सूर्य देव को अर्काय कहा जाता है. 
    ओम भास्काराय नमः –  सूर्य देव का एक नाम भास्कर भी है.
    ओम श्री सवित्र सूर्यनारायणाय नमः–  यह सूर्य नमस्कार का पूर्णता मंत्र है. जिसमें उन्हें नारायण स्वरूप बताया गया है. 

    ऐसे करें सूर्य नमस्कार 

    सबसे पहले दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हो जाएं. सांस भरते हुए अपने दोनों हाथों को ऊपर की ओर कानों से सटाएं और शरीर को पीछे की ओर स्ट्रेच करें. सांस बाहर निकालते हुए व हाथों को सीधे रखते हुए आगे की ओर झुकें व हाथों को पैरों के दाएं-बाएं जमीन से स्पर्श करें. यहां ध्यान रखें कि इस दौरान घुटने सीधे रहें. सांस भरते हुए दाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं. इस स्थिति में कुछ समय तक रुकें. अब सांस धीरे-धीरे छोड़ते हुए बाएं पैर को भी पीछे ले जाएं व दोनों पैर की एड़ियों को मिलाकर शरीर को पीछे की ओर स्ट्रेच करें. 
    सांस भरते हुए नीचे आएं व लेट जाएं.

    शरीर के ऊपरी भाग को उठाएं और गर्दन को पीछे की ओर करते हुए पूरे शरीर को पीछे की ओर स्ट्रेच करें व कुछ सेकंड्स तक रुकें. अब पीठ को ऊपर की ओर उठाएं व सिर झुका लें. एड़ी को जमीन से लगाएं. दोबारा चौथी प्रक्रिया को अपनाएं लेकिन इसके लिए दाएं पैर को आगे लाएं व गर्दन को पीछे की ओर झुकाते हुए स्ट्रेच करें. लेफ्ट पैर को वापस लाएं और दाएं के बराबर में रखकर तीसरी स्थिति में आ जाएं यानी घुटनों को सीधे रखते हुए हाथों से पैरों के दाएं-बाएं जमीन से स्पर्श करें. सांस भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाकर ऊपर उठें और पीछे की ओर स्ट्रेच करते हुए फिर दूसरी अवस्था में आ जाएं. फिर से पहली स्थिति में आ जाएं यानी दोनों हाथों जोड़कर सीधे खड़े हो जाएं. 

    सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियां हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं. यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है. इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें शक्ति आ जाती है. गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है.



    Source link

    Latest articles

    Genuinely funny, breezy: Vir Das praises Sitaare Zameen Par, urges fans to watch

    Actor-comedian Vir Das has joined the list of those praising 'Sitaare Zameen Par',...

    What minister Gaude’s sacking says about the Goa BJP

    Almost a month after he alleged corruption in the tribal welfare department helmed...

    More like this