पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने बुधवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बैठक में कहा कि अगर ईरान में इस्लामिक सत्ता का पतन होता है तो पाकिस्तान-ईरान बॉर्डर पर अलगाववादी और जिहादी आतंकी इसका फायदा उठा सकते हैं. ईरान-इजरायल युद्ध में लगातार इस बात की आशंका जताई जा रही है कि अमेरिका इसमें शामिल हो सकता है और ईरान में सत्ता पलट सकती है.
पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किमी लंबी सीमा है और सीमा के दोनों और ईरान विरोधी और पाकिस्तान विरोधी संगठन सक्रिय हैं. इजरायल की तरफ से बार-बार कहा जा रहा है कि ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई उनके निशाने पर हैं.
ईरान में फैल रही अराजकता के साथ-साथ पाकिस्तान को इस बात की भी चिंता है कि इजरायल ने दूसरे देश के परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला करके एक मिसाल कायम की है जिसका अनुसरण भविष्य में दूसरे देश भी कर सकते हैं. परमाणु हथियार संपन्न प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान और भारत के बीच मई में चार दिनों तक संघर्ष चला था जिसमें दोनों देशों ने एक-दूसरे पर एयरस्ट्राइक किया था.
बुधवार को व्हाइट हाउस में पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर के साथ लंच के बाद ट्रंप ने इजरायल-ईरान संघर्ष पर पाकिस्तान की राय का जिक्र करते हुए कहा कि पाकिस्तान इससे खुश नहीं है.
पाकिस्तान की सेना ने गुरुवार को कहा कि दोनों नेताओं ने ईरान के मुद्दे पर चर्चा की और संघर्ष के समाधान पर जोर दिया.
ईरान पर इजरायल के हमले की पाकिस्तान ने की है निंदा
पाकिस्तान ने ईरान पर इजरायल के हमले की निंदा करते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने गुरुवार को कहा, ‘हमारे भाई जैसे देश ईरान में जो कुछ हो रहा है, वह हमारे लिए बहुत गंभीर मुद्दा है. इससे पूरे क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे को खतरा है, इसका हम पर गहरा असर पड़ता है.’
ईरान-इजरायल युद्ध से खुश हैं बलूच विद्रोही
वहीं, ईरान-पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थित कुछ उग्रवादी समूहों ने ईरान-इजरायल युद्ध का स्वागत किया है. जातीय बलूच और सुन्नी मुस्लिम अल्पसंख्यकों से बना ईरानी जिहादी समूह जैश अल-अदल (JaA),जो पाकिस्तान से संचालित होता है, ने कहा कि ईरान के साथ इजरायल का संघर्ष एक बड़ा अवसर है.
समूह ने 13 जून को एक बयान में कहा, ‘जैश अल-अदल ईरान के सभी लोगों की ओर भाईचारे और दोस्ती का हाथ बढ़ाता है और सभी लोगों विशेष रूप से बलूचिस्तान के लोगों, साथ ही सशस्त्र बलों से इस आंदोलन में शामिल होने का आह्वान करता है.’
पाकिस्तान को यह भी डर है कि ईरान में स्थित उसके अपने बलूच अल्पसंख्यक समुदाय के आतंकवादी भी हमले तेज कर देंगे.
वाशिंगटन, अमेरिका में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत मलीहा लोधी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए कहा, ‘जिन जगहों पर पाकिस्तान का कंट्रोल नहीं है, वहां डर है. वो जगह आतंकवादी समूहों के लिए उपजाऊ जमीन हो सकते हैं.’
बलूचों का विद्रोह बढ़ने की संभावना को लेकर परेशान है पाकिस्तान
पाकिस्तान की सीमा तालिबान शासित अफगानिस्तान और भारत के साथ पहले से ही अस्थिर हैं और वो नहीं चाहता कि ईरान के साथ लगी उसकी सीमा पर भी अस्थिरता आए.
ईरान-पाकिस्तान सीमा क्षेत्र में जातीय बलूच आबादी है, जो दोनों देशों में अल्पसंख्यक है और लंबे समय से भेदभाव की शिकायत करते रहे हैं. दोनों ही देशों में बलूच अलगाववादी आंदोलन चलाते हैं. पाकिस्तान में बलूच अल्पसंख्यक बलूचिस्तान में और ईरान में सिस्तान-बलूचिस्तान में रहते हैं.
ईरान पर इजरायल के हमले से पहले ईरान भारत के करीब था. पाकिस्तान और ईरान ने पिछले साल ही एक-दूसरे पर हवाई हमले भी किए थे और एक-दूसरे पर बलूच आतंकियों को पनाह देने के आरोप लगाए थे. लेकिन ईरान पर इजरायल के हमले ने सारा खेल पलट दिया है क्योंकि भारत ने ईरान पर इजरायल के हमले की निंदा नहीं की है.
चीन ने यह भी कहा है कि वह बलूचिस्तान में सुरक्षा स्थिति को लेकर बहुत चिंतित है, क्योंकि यहां उसने अपने चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर प्रोजेक्ट में अरबों डॉलर निवेश कर रखा है. चीन यहां ग्वादर बंदरगाह का संचालन भी करता है. पाकिस्तान में बलूच आतंकवादी समूहों ने पहले भी चीनी इंजिनियरों और प्रोजेक्ट्स को निशाना बनाया है.
वहीं, ईरानी सीमा पर भी बलूच विद्रोही सक्रिय हैं और ईरान समय-समय पर पाकिस्तान, खाड़ी देशों, इजरायल और अमेरिका पर उन्हें समर्थन देने का आरोप लगाता रहता है.
इस्लामाबाद स्थित विश्लेषक सिम्बल खान ने कहा कि अलग-अलग बलूच समूह साथ आकर एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकते हैं जो पाकिस्तान और ईरान के बलूच क्षेत्रों से एक नया राष्ट्र बनाने की मांग करेगा. उन्होंने कहा, ‘अगर ऐसा हुआ तो वो सभी साथ मिलकर लड़ेंगे.’