शुक्रवार यानी 13 जून को इजरायल के सैकड़ों विमानों ने ईरान के तेहरान में भारी बमबारी की. ये टारगेटेड अटैक था, जिसमें सैन्य ठिकानों समेत परमाणु ठिकानों पर हमला किया गया. दोनों देशों में छुटपुट तनाव तो चला आ रहा था, लेकिन अब शैडो वॉर को छोड़कर आरपार का संघर्ष शुरू हो चुका. तेल अवीव का कहना है कि वो ईरान जैसे आक्रामक देश को न्यूक्लियर पावर बनने कतई नहीं देगा. वहीं ईरान भी तेल अवीव पर हमलावर हो रहा है. इस दोनों के बीच अमेरिका है, लेकिन मध्यस्थ के तौर पर नहीं, बल्कि उसके इरादे कुछ और ही लगते हैं.
अभी क्या चल रहा है
शुक्रवार सुबह करीब साढ़े तीन बजे ईरान की राजधानी तेहरान में विस्फोट होने लगे. खुद तेल अवीव ने आधिकारिक बयान दिया कि उसने ईरान के दर्जनों सैन्य ठिकानों समेत न्यूक्लियर फैसिलिटी पर भी हमला किया. माना जा रहा है कि ईरान परमाणु बम बनाने के बहुत करीब पहुंच चुका. यही बात अमेरिका समेत इजरायल को लंबे समय से परेशान कर रही है. अमेरिका ने उसे रोकने के लिए कई पाबंदियां भी लगाई हुई थीं लेकिन बात कुछ बनी नहीं. इसी बीच हाल में इजरायल ने परमाणु ठिकानों को ही टारगेट कर दिया.
तेल अवीव के चैनल 12 के मुताबिक, अटैक में कई बड़े सैन्य अफसरों समेत सीनियर परमाणु वैज्ञानिकों की मौत हो चुकी है. इसके बाद ईरान ने भी इजरायल पर 100 से ज्यादा ड्रोन दागे, जो रास्ते में ही गिरा दिए गए. हालांकि ये अंत नहीं है. अपने परमाणु वैज्ञानिकों को खोने पर तेहरान ने धमकाया है कि वो हरेक मौत का बदला लेगा.
किस बात ने तेल अवीव को ट्रिगर किया
तनाव महीनों पहले से था. ईरान तेल अवीव को परेशान करने में हमास की मदद कर रहा था, तब भी इन देशों में कहासुनी हुई थी. लेकिन अब वजह अलग है. इजरायली अधिकारियों के पास खुफिया जानकारी है कि ईरान के पास अब इतना यूरेनियम जमा हो चुका कि वो कई परमाणु बम बना सकता है. रॉयटर्स को एक सीनियर इजरायली सैन्य अधिकारी ने बताया कि ईरान चाहे तो कुछ ही दिनों में करीब 15 बम बना सकता है. छोटे-से देश इजरायल के लिए ये बेहद जोखिमभरा हो सकता था. ऐसे में उसने ये कदम उठा लिया.
वहीं ईरान का कहना है कि वो परमाणु हथियार नहीं बना रहा, जबकि इजरायल ने बेवजह उसपर अटैक कर दिया. इस पूरे विवाद का एक बड़ा पहलू ये भी है कि कूटनीतिक कोशिशें भी चल रही थीं, जिसे इजरायल ने बायपास कर दिया.
क्या बातचीत फेल हो रही थी
मोटे तौर पर हां. दरअसल ईरान परमाणु बम बनाने से रुक जाए, इसके लिए अमेरिका ने उसपर भारी बैन लगा दिए थे. आर्थिक पाबंदियों से परेशान तेहरान ने आखिरकार बातचीत पर हामी भरी. साल 2015 में इसी के बाद कई प्रतिबंध हटे. हालांकि डोनाल्ड ट्रंप के पहले टर्म में सख्तियां एक बार फिर लागू हो गईं. इसके बाद ईरान ने भी परमाणु ताकत पर दोबारा काम शुरू कर दिया.
लगभग डेढ़ साल पहले हमास और इजरायल में संघर्ष के बाद हालात और बिगड़े. तेल अवीव ने आरोप लगाया कि तेहरान चुपके से हमास को सपोर्ट कर रहा है ताकि उनके यहां अस्थिरता आए. दोनों के बीच हल्का संघर्ष होकर रुक गया. इसी महीने अमेरिका और ईरान में न्यूक्लियर डील पर बातचीत होनी थी, लेकिन ताजा अटैक के बाद ये बात शुरू होने से पहले ही खत्म हो चुकी लगती है.
क्यों फेल हो रही कोशिशें
– अमेरिका को डर है कि ईरान गुप्त रूप से हथियार बना रहा है, जबकि ईरान को लगता है कि अमेरिका और उसके सहयोगी, खासकर इजरायल बातचीत के बहाने टाइम बाई कर रहे हैं और बाद में हमला करेंगे.
– अमेरिका और इजरायल को यह डर है कि ईरान के पास हथियार बनाने की ब्रेकआउट कैपेसिटी आ चुकी है, यानी वो कुछ ही हफ्तों में परमाणु बम बना सकता है.
– ट्रंप पहले से ही ईरान को लेकर आक्रामक रहे. इधर ईरान में भी नई अमेरिकी सरकार को लेकर नाराजगी और आशंकाएं हैं. यही वजह है कि बातचीत ठंडे बस्ते में जा रही है.
अमेरिका क्या कह रहा है
वॉशिंगटन वैसे तो इजरायल का मजबूत सहयोगी है लेकिन उसने हाल में हुए हमले से खुद को दूर बताया. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने साफ कहा कि इजरायल ने ईरान के खिलाफ अकेले कार्रवाई की. हम इस हमले में शामिल नहीं. इस बयान से अमेरिका यह संदेश देना चाहता है कि यह पूरी तरह इजरायल की अपनी सैन्य कार्रवाई थी और वह इसमें शामिल नहीं. हालांकि ईरान और इजरायल की तनातनी में अमेरिकी भूमिका हमेशा सवालों में रही.
वो भले ही सार्वजनिक रूप से कह रहा हो कि उसका ताजा हमले से कोई लेनादेना नहीं, लेकिन सच तो ये है कि वो ईरान को न्यूक्लियर पावर बनने से रोकने की तमाम कोशिशें करता रहा. इसके लिए वो कूटनीति और आर्थिक पाबंदियों से लेकर बैक चैनल बातचीत भी करता रहा. यानी वो न्यूट्रल बायस्टैंडर नहीं, बल्कि खेल में शामिल है.
ईरान न्यूक्लियर ताकत बन जाए तो अमेरिका को क्या खतरे
ईरान खुलेआम कहता रहा कि इजरायल एक अवैध देश है और उसे नक्शे से हटा दिया जाना चाहिए. अगर ईरान के पास परमाणु हथियार आ गया, तो तेल अवीव जोखिम में आ जाएगा. अमेरिका का वो मजबूत साथी रहा. यही वजह है कि वो इस खतरे को किसी भी हाल में बढ़ने नहीं देना चाहता.
अगर ईरान न्यूक्लियर पावर बना, तो बाकी मुस्लिम बहुल देश जैसे तुर्की, सऊदी भी वही करना चाहेंगे. इससे पूरा मध्यपूर्व अस्थिर हो जाएगा. इसका असर व्यापार पर होगा.
मध्य पूर्व में अमेरिका के कई सैन्य अड्डे और हजारों सैनिक तैनात हैं, खासकर इराक, कतर और बहरीन में. ईरान की शक्ति से अमेरिकी सैन्य ठिकाने भी खतरे में होंगे.
ईरान में लोकतंत्र की बजाए आतंकी समूहों की ज्यादा चलती है. हिजबुल्लाह से लेकर कई मिलिशिया यहां एक्टिव हैं. ऐसे में परमाणु हथियार अगर आतंकियों के हाथ लग गए तो अमेरिका भी टारगेट हो सकता है.
एक वक्त पर थी मित्रता
कट्टर दुश्मन दिखने वाले ईरान और इजरायल किसी समय दोस्त हुआ करते थे. खासकर साल 1948 से 1979 तक, जब ईरान में शाह मोहम्मद रजा पहलवी की सत्ता थी, तब दोनों देशों के बीच व्यापारिक सहयोग के रिश्ते थे. यहां तक कि ईरान ने तेल अवीव को देश बतौर मान्यता भी दी थी. दोनों में कई समानताएं थीं, जैसे दोनों ही को अरब देशों से खतरा था. और दोनों ही अमेरिका के करीबी थे. लेकिन सत्तर के आखिर में इस्लामिक क्रांति हुई, जिसमें ईरान एक धार्मिक इस्लामी गणराज्य बन गया. नए शासन ने तेल अवीव को इस्लाम का दुश्मन घोषित कर दिया और उन सारी ताकतों को सपोर्ट करने लगा जो इजरायल के खिलाफ थे. न्यूक्लियर पावर की बात छिड़ते ही ईरान, इजरायल के लिए सीधा खतरा बन गया.