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    चौथी बड़ी इकोनॉमी… लेकिन इतनी भी गुलाबी नहीं तस्वीर! इन 7 मामलों में जापान से बहुत पीछे है भारत

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    भारत की इकोनॉमी इस वर्ष के अंत तक दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी. आर्थिक विकास की दौड़ में तेज रफ्तार से दौड़ रहा भारत कुछ ही महीनों में दुनिया की मौजूदा चौथी बड़ी इकोनॉमी जापान को पीछे छोड़ देगा और विश्व की चौथी सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बन जाएगा. ये आकलन देश की प्रमुख संस्था नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी ने दी है. दुनिया की प्रमुख आर्थिक संस्था अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष ने भी कहा है कि 2025 में भारत की अर्थव्यवस्था 4.19 लाख करोड़ डॉलर (4.19 ट्रिलियन डॉलर) की हो जाएगी. इससे भारत जापान से आगे निकल जाएगा.

    सवाल उठता है कि दुनिया की “चौथी बड़ी इकोनॉमी” होने का मतलब क्या होता है? आसान भाषा में कहें तो इसका मतलब है कि उस देश की आर्थिक ताकत और उत्पादन क्षमता दुनिया के बाकी देशों की तुलना में चौथे स्थान पर है. इसे मुख्य रूप से GDP (Gross Domestic Product – सकल घरेलू उत्पाद) के आधार पर मापा जाता है. 

    नीति आयोग और अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष के बयान का भारत के संदर्भ में यह मतलब है कि वर्ष के अंत तक भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था हो जाएगी. गौरतलब है कुछ वर्ष पहले भारत यूनाइटेड किंगडम को पीछे छोड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था, और अब वह जापान को पीछे छोड़कर विश्व की शीर्ष 10 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की सूची में चौथे स्थान पर पहुंचने की ओर अग्रसर है.

    चौथी बड़ी इकोनॉमी का मतलब क्या?

    यह उपलब्धि भारत की आर्थिक वृद्धि, नीतिगत सुधारों, और वैश्विक निवेश के लिए आकर्षण को दर्शाती है. इसका मतलब है कि भारत वैश्विक मंच पर आर्थिक प्रभाव, निवेश, और भू-राजनीतिक साख के मामले में मजबूत स्थिति में है. ये आंकड़े ये बताते हैं कि एक निवेश के लक्ष्य के रूप में भारत पर दांव लगाया जा सकता है. भारत अपने कर्जों को भुगतान करने की मजबूत क्षमता है और इस देश में आर्थिक विकास के मजबूत फंडामेंट्ल्स मौजूद हैं. यह आंकड़ा बताता है कि भारत में उत्पादन, व्यापार और सेवाओं की मात्रा बहुत अधिक है. इस मामले में केवल चुनिंदा देश (जैसे अमेरिका, चीन, जापान या जर्मनी) ही भारत से आगे हैं. 

    भारत का चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो वैश्विक मंच पर उसकी बढ़ती ताकत को दर्शाता है. लेकिन अंदर देखें तो तस्वीर इतनी भी गुलाबी नहीं है. नॉमिनल जीडीपी के मामले में हम भले ही जापान को पीछे छोड़ने के कगार पर हैं लेकिन प्रति व्यक्ति आय, जीवन प्रत्याशा, मैन्युफैक्चरिंग, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा, रोजगार, और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में जापान भारत से बहुत आगे है. 

    आइए हम देखते हैं कि जिस जापान को हम कुछ ही महीनों में पीछे छोड़ने वाले हैं उस देश से मानवीय विकास के संकेतकों पर हम कितने पीछे हैं? 

    1-प्रति व्यक्ति आय

    किसी देश की प्रति व्यक्ति आय देश की कुल GDP को उसकी आबादी से विभाजित करके निकाली जाती है, जो आम नागरिक के औसत आय स्तर को दर्शाती है. 

    भारत की स्थिति: 2025 में भारत की प्रति व्यक्ति आय लगभग $2,800-$2,937 है, जो जापान की प्रति व्यक्ति आय ($33,138-$53,059) की तुलना में लगभग 12 गुना कम है.  भारत की विशाल आबादी (लगभग 140 करोड़) के कारण प्रति व्यक्ति जीडीपी काफी कम हो जाता है. 

    जापान की प्रति व्यक्ति आय अधिक होने के कारण वहां के नागरिकों का जीवन स्तर, खर्च करने की क्षमता, और जीवन की गुणवत्ता भारत की तुलना में कहीं बेहतर है. 

    भारत में आय असमानता (टॉप 1% के पास 41% संपत्ति, निचले 50% के पास केवल 3%) और ग्रामीण-शहरी अंतर प्रमुख समस्याएं हैं. प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के लिए समावेशी विकास, कृषि पर निर्भरता कम करना, और क्षेत्रीय असमानताओं को पाटना जरूरी है. 

    2- जीवन प्रत्याशा

    किसी देश के लोग औसतन कितने वर्ष तक जीवित रहते हैं इसका सीधा उस देश की अर्थव्यवस्था, संसाधनों, चिकित्सा सुविधाओं से होता है. मूल रूप से जीवन प्रत्याशा औसत आयु को दर्शाती है, जो स्वास्थ्य सेवाओं, पोषण, और जीवन स्तर का सूचक है.

    दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं

    भारत में जीवन प्रत्याशा 2021 में लगभग 69-70 वर्ष थी, जो वैश्विक औसत से कम है. स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च GDP का केवल 1.2% है. जबकि जापान दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां जीवन प्रत्याशा दुनिया में सबसे अधिक है. यहां लोगों की औसत उम्र 84-85 वर्ष है.  इसका कारण यह है कि जापान ने हेल्थ सेक्टर पर मोटा पैसा खर्च किया है और अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया है. यहां लोगों को पौष्टिक खाना मिलता है और इस देश की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली मजबूत है.

    भारत में अपर्याप्त स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा, ग्रामीण क्षेत्रों में सुविधाओं की कमी, और कुपोषण (ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 में भारत 111वें स्थान पर) जीवन प्रत्याशा को सीमित करते हैं. स्वास्थ्य बजट और ग्रामीण सुविधाओं को बढ़ाने की जरूरत है. 

    3- शिक्षा

    किसी भी देश में शिक्षा की गुणवता और इसका स्तर ह्युमन कैपिटल और सामाजिक जीवन में नवाचार को दर्शाता है. भारत में साक्षरता का दर 77.7% है. लेकिन यहां  गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल विकास में कमी है. ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की स्थिति और शिक्षकों की कमी प्रमुख समस्याएं हैं. जहां शिक्षक हैं भी वहां उनके स्किल और क्वालिटी पर सवाल उठते रहते हैं. 

    वहीं द्वितीय विश्व युद्ध के बाद परमाणु हमले की भयंकर मार से तबाह हुए जापान में साक्षरता दर लगभग 100% है, और इसकी शिक्षा प्रणाली तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा में विश्व स्तर पर अग्रणी है. जापान की तकनीकी शिक्षा, यहां का कौशल विकास दुनिया के देशों के लिए अनुसरण करने योग्य है. यही वजह रही कि जापान की टेक कंपनियां, कार कंपनियां और मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां दुनिया में नंबर वन पोजिशन पर रहती हैं. 

    भारत में शिक्षा पर खर्च वर्तमान में GDP का 4% से कम है. इसे बढ़ाने, शिक्षक प्रशिक्षण, और व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने की जरूरत है.

    4-रोजगार 

    किसी भी देश में रोजगार की स्थिति वहां की नौकरियों की गुणवत्ता, आर्थिक समृद्धि और सामाजिक स्थिरता को दर्शाती है. जो देश अपनी सभी कामकाजी आबादी को नौकरी देने में कामयाब होते हैं वहां सामाजिक स्थिरिता और संतुष्टि की दर ज्यादा होती है. 

    अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 2023 में भारत में बेरोजगारी दर  6.1% थी. असंगठित क्षेत्रों में स्थिति और भी बुरी है. यहां 90 फीसदी लोगों को रोजगार मिलता है लेकिन यहां वेतन कम है और असुरक्षा अधिक है. काम की परिस्थितियां अस्वास्थ्यकर और असुरक्षा को आमंत्रण देने वाली होती है. भारत में हिंदी पट्टी से नौकरी के लिए हो रहे पलायन ने देश के सामाजिक ढांचे पर असर डाला है.

    भारत की तुला में जापान में कम बेरोजगारी है और यहां संगठित रोजगार प्रणाली है, जो देश को स्थिरता प्रदान करती है. जापान की बेरोजगारी दर 2.5% है. हालांकि भारत इस स्थिति में लगातार काम कर रहा है. भारत औपचारिक रोजगार के अवसर बढ़ाने, कौशल विकास, और स्टार्टअप इकोसिस्टम को मजबूत कर रहा है. इससे लोगों को नौकरियां मिल रही हैं. 

    5- मैन्युफैक्चरिंग

    मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अर्थव्यवस्था का वह हिस्सा है जो वस्तुओं का उत्पादन करता है. इससे रोजगार पैदा होता है और आखिरकार देश का निर्यात बढ़ता है. किसी भी देश का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अर्थव्यवस्था की बुनियाद होती है. 

    विश्व बैंक के अनुसार, भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर GDP में 13-14% योगदान देता है. भारत सरकार इस दिशा में तेजी से काम कर रही है. ‘मेक इन इंडिया’ पहल से इस सेक्टर को पुश मिला है. प्रधानमंत्री मोदी की पहल ‘वोकल फॉर लोकल’ से कई देशी कंपनियों ने भारत में निर्माण शुरू किया है. एप्पल जैसी विदेशी कंपनियां भारत में निर्माण करने के लिए आ रही हैं. 

    भारत ने चिप मैन्युफैक्चरिंग की दिशा में हाल में पहल शुरू की है और इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ा है. 

    इन प्रयासों के बावजूद भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में सीमित भूमिका निभाता है. बुनियादी ढांचे, पूजी और कुशल श्रम की कमी इस दिशा में भारत की मुख्य चुनौतियां हैं. 

    वहीं (OECD-Organisation for Economic Co-operation and Development) के आंकड़ों के अनुसार, जापान का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर GDP में 20% से अधिक योगदान देता है. जापान ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, और रोबोटिक्स में वैश्विक नेतृत्व करता है. इसकी उत्पादकता और गुणवत्ता विश्व स्तर की होती है. 

    भारत को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में बड़े निवेश की जरूरत है. इसके अलावा बंदरगाहों और बिजली जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार और कौशल विकास पर ध्यान देना होगा. 

    6- टेक्नोलॉजी 

    टेक्नोलॉजी और अनुसंधान देश की नवाचार क्षमता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को दर्शाते हैं. UNESCO के अनुसार भारत का रिसर्च और डेवलपमेंट पर खर्च GDP का 0.7% है. भारत IT और डिजिटल सेवाओं में मजबूत है, लेकिन हार्डवेयर और स्वदेशी तकनीक में पीछे है. हालांकि भारत ने फिनटेक, स्पेस और मिलिट्री टेक्नॉलजी में उल्लेखनीय काम किया है. 

    जापान रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर GDP का 3.3% खर्च करता है और रोबोटिक्स, AI, और इलेक्ट्रॉनिक्स में वर्ल्ड लीडर है. 

    7-सामाजिक सुरक्षा

    सामाजिक सुरक्षा में पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, और बेरोजगारी लाभ शामिल हैं. ये सरकार के ऐसे पहल हैं जो नागरिकों को आर्थिक स्थिरता प्रदान करते हैं. 

    अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल 49% आबादी को सामाजिक सुरक्षा कवरेज मिलता है. असंगठित क्षेत्र जहां भारत का 90% वर्क फोर्स काम कर रहा है, वहां सामाजिक सुरक्षा की कमी है. यहां कर्मचारियों को बमुश्किल पेंशन लाभ मिल पाते हैं और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति दयनीय है. 

    वहीं जापान की सामाजिक सुरक्षा प्रणाली व्यापक है, जिसमें सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा और पेंशन शामिल हैं. हालांकि इसकी वजह से जापान पर कर्जे का भी बोझ है. लेकिन जापान ने अपने देश के नागरिकों को मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली दी है. 

    ऊपर की चर्चाओं का निष्कर्ष यह है कि दुनिया की चौथी बड़ी इकोनॉमी की ओर कदम बढाना भारत की बड़ी उपलब्धि है. भारत भले ही जीडीपी के आंकड़ों में जापान को पीछे छोड़ दे लेकिन जापान कई मानकों पर हमसे बहुत आगे हैं. विकसित देश होने के नाते जापान में जिंदगी का स्तर उच्च श्रेणी का है. इस अंतर को पाटने के लिए भारत को प्रति व्यक्ति आय, जीवन प्रत्याशा, मैन्युफैक्चरिंग, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा, रोजगार, और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में आगे बढ़ने की जरूरत है. 

    भारत को फिलहाल समावेशी विकास, नीतिगत सुधार, और बुनियादी ढांचे में निवेश पर ध्यान देना होगा और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि आर्थिक वृद्धि का लाभ समाज के निचले तबके तक पहुंचे. 



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