शिया मुसलमान जनरल याह्या खान को पाकिस्तान में रहस्यमय तानाशाह कहा जाता है. इस पाकिस्तानी जनरल की जिंदगी विरोधाभास की कहानी है. जिस इस्लाम में शराब हराम है वहां ये जनरल अपने बुलंदी के दिनों में जमकर शराब पीता था. याह्या को शराब की तलब इस कदर लगती थी कि पाकिस्तान के सियासी हलकों में एक कहावत प्रचलित थी कि अगर याह्या 10 बजे रात के बाद कुछ आदेश दे तो इस पर अमल नहीं करना.
शराब ही नहीं खूबसूरत और प्रभावशाली महिलाएं भी जनरल याह्या खान की कमजोरी थीं. इनमें जनरल रानी, नूरजहां, ब्लैक पर्ल जैसी नामी हस्तियां थीं. राजनीतिक इतिहासकार मानते हैं कि ये ऐसे कारण थे जो याह्या के राजनीतिक और सैन्य विफलताओं का कारण बनीं.
लेकिन 1971 की जंग में पाकिस्तान की हार, नए बांग्लादेश के निर्माण ने याह्या की अय्याशियों पर ब्रेक लगा दी. 71 की नजरबंदी के दौरान उन्होंने
शराब छोड़ दी और “अत्यधिक धार्मिक” हो गए. यह परिवर्तन उनके जीवन की नाकामियों, नजरबंदी, और शायद आत्मचिंतन का परिणाम हो सकती हैं.
आज ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में एक जनरल अपनी वर्दियों के स्टार बढ़ाने में जुटा है. ऐसी स्थिति में पाकिस्तान को अपने जनरलों और तानाशाहों की कहानी याद करनी जरूरी है, ताकि हमारे पड़ोसी देश की नई पीढ़ी को अपने इन कथित नायकों के हश्र का पता चल सके.
1971 में जब बांग्लादेश मुक्ति संग्राम शुरू हुआ और भारत-पाकिस्तान की जंग शुरू हुई तो जनरल याह्या खान बड़े तेवर में थे. राजस्थान में पाकिस्तानी सेना को कुछ मामूली सफलता मिल गई थी. यह भी खबर आई थी कि पाकिस्तान नेवी ने भारत के युद्धपोत खुखरी को डूबा दिया है. इसके बाद तो याह्या को लगने लगा था कि किस्मत मेरे साथ है.
‘जनरल आप 10 साल तक राज करेंगे’
इन सब के बीच एक ऐसी घटना हुई जिसने याह्या खान को एक और झूठा दिलासा दिया. याह्या को लगा कि पाकिस्तान की सत्ता पर राज करने का योग वे ऊपर से लिखवा कर लाए हैं.
ये बात ज्योतिषी पर विश्वास की है. यूं तो इस्लाम में ज्योतिषी पर यकीन की परंपरा नहीं है. लेकिन मन और विश्वास को प्यारी लगने वाली बातें कहीं से आए तो इंसान यकीन कर ही लेता है.
1971 में बांग्लादेश की मुक्ति के लिए भारत-पाकिस्तान के बीच जंग चल रही थी. इसी समय का एक वाकया याह्या खान के एडीसी अरशद समी खान ने अपनी किताब ‘थ्री प्रेसिडेंट्स एंड एन एड’ में लिखा है. इस पूरे वाकये को वरिष्ठ पत्रकार रेहान फजल ने बीबीसी की एक रिपोर्ट में लिखा है.
जनरल याह्या के सहायक अधिकारी रहे एडीसी अरशद समी के अनुसार ISI के तत्कालीन प्रमुख ने जनरल याह्या से कहा कि दुनिया की मशहूर ज्योतिषी जीन डिक्सन ने भविष्यवाणी की है कि एक शासनाध्यक्ष के रूप में अभी वो कम से कम दस सालों तक रहेंगे. तानाशाह याह्या ये भविष्यवाणी सुनकर गदगद थे. उन्हें लगा कि मुकद्दर के सितारे उनके साथ हैं. उन्हें ये समझ में नहीं आया है कि संकट के समय में ISI के तत्कालीन प्रमुख अपनी नौकरी बचाने के लिए चापलूसी कर रहे हैं.
लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि दस साल तो दूर वे कुछ ही दिनों के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति नहीं रहेंगे और पाकिस्तान का मानचित्र हमेशा-हमेशा के लिए बदलने वाला है.
याह्या की जीत के सामने कहां से आ गया गिद्ध
एक और वाकया है जिसका जिक्र अरशद समी ने अपनी किताब में किया है. ये घटना अपशकुन के कथित संकेतों से जुड़ी है. अरशद समी खान लिखते हैं.
“3 दिसंबर, 1971 की दोपहर को जैसे ही जनरल याह्या अपनी जीप से वायुसेना हेडक्वार्टर्स जाने के लिए निकले, एक बहुत बड़ा गिद्ध उनकी जीप के सामने आ कर बैठ गया.”
गौरतलब है कि इससे पहले 2 दिसंबर की शाम को याह्या खान को ढाका के प्रशासक की तरफ से मैसेज आया था कि जैसोर पर आखिरकार इंडियन आर्मी का कब्जा हो चुका है.
इसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति याह्य खान ने लेफ्टिनेंट जनरल हमीद, और चीफ आफ स्टाफ गुल हसन के साथ राष्ट्रपति भवन में मीटिंग की थी.
और अब वो एयरफोर्स हेडक्वार्टर अगली रणनीति बनाने के लिए जा रहे थे.
अरशद समी खान अपनी किताब में लिखते हैं, “न जाने कहां से एक बहुत बड़ा गिद्ध आकर जीप के रास्ते में बैठ गया. जनरल हमीद ने हॉर्न बजाया लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ.”
“जनरल याह्या ने नीचे उतरकर उसे अपने बेंत से भगाने की कोशिश की, लेकिन गिद्ध एक दो कदम चलकर फिर बीच सड़क में रुक गया. आख़िरकार एक माली ने दौड़ कर अपने फावड़े से गिद्ध को दूर भगाया. जैसे ही हम मुख्य गेट पर पहुंचे याह्या ने अपना चेहरा नीचे कर लिया.”
एडीसी अर्शद समी लिखते हैं, “मैं अंधविश्वासी नहीं हूं , लेकिन 3 दिसंबर, 1971 की दोपहर का वो दृश्य बार-बार मेरी आंखों के सामने कौंधता है जब एक गिद्ध ने जनरल याहया खान की जीप का रास्ता रोक लिया था, मानो कोई ऊपरी ताकत उन्हें बताने की कोशिश कर रही हो कि युद्ध पर जाने का फैसला सही फैसला नहीं है.”
चीन ने साफ कहा- ज्यादा उम्मीद मत रखिए
जंग की स्थिति हो या सामान्य कारोबार. चीन की मदद के बिना पाकिस्तान की गाड़ी चलती नहीं है. 71 की जंग में भी जनरल याह्या को उम्मीद थी कि इस लड़ाई में चीन उनके साथ खुल कर खड़ा होगा. लेकिन तब चीन ने एक सीमा से आगे जाने से दो टूक मना कर दिया था.
बीबीसी की रिपोर्ट में रेहान फजल पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव सुल्तान अहमद की आत्मकथा ‘मेमोरीज एंड रेफ्लेक्शन ऑफ अ पाकिस्तानी डिप्लोमैट’ के हवाले से लिखते हैं, “चीन के राजदूत ने मुझसे कहा कि हम पाकिस्तान को आर्थिक और राजनीतिक रूप से समर्थन देना जारी रखेंगे लेकिन इस लड़ाई मे हस्तक्षेप करने की हमारी क्षमता सीमित है और अगर हम ऐसा करें भी तो इसका एक संकुचित परिणाम ही निकल सकता है. इसलिए इस पर बहुत अधिक उम्मीद मत रखिए.”
16 दिसंबर को पाकिस्तान ने किया सरेंडर
पाकिस्तान इस जंग को लगातार खींचने की कोशिश कर रहा था. लेकिन बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए लड़ी गई ये लड़ाई पाकिस्तान का विभाजन लेकर आई. भारत की सेना ने पूर्वी मोर्चे पर तेजी से बढ़त बनाई, और ढाका पर कब्जा करने के बाद पाकिस्तानी सेना के पास कोई विकल्प नहीं बचा. 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने ढाका में आत्मसमर्पण पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए.
अरशद समी ने लिखा है, “हम सब के लिए ये बहुत दुख का मौका था. हम अपने आंसू नहीं रोक पाए. मैं अंधविश्वासी नहीं हूं लेकिन मुझे रह रह कर 3 दिसंबर का वो दृश्य याद आता रहा जब राष्ट्रपति भवन से निकलते समय एक गिद्ध ने हमारा रास्ता रोक लिया था मानो हमसे कह रहा हो कि इस लड़ाई पर जाना फिजूल है.”