बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कभी सहयोगी रहे दो नेता विधानसभा चुनाव से पहले अब साथ आ गए हैं. जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके रामचंद्र प्रसाद सिंह ने अपनी ‘आप सबकी आवाज’ पार्टी का चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर (पीके) की पार्टी जन सुराज में विलय कर दिया है. पीके भी जेडीयू में रह चुके हैं. जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे पीके और आरसीपी सिंह, दोनों ही कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद विश्वस्त माने जाते थे, नीतीश के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखे जाने लगे थे. ये गुजरे जमाने की बात हो गई और अब तस्वीर बदल चुकी है.
आरसीपी सिंह और प्रशांत किशोर, दोनों ही एक साथ आ चुके हैं. ये दोनों ही नेता आगामी विधानसभा चुनाव में नीतीश की सत्ता उखाड़ फेंकने के लिए जोर आजमाते नजर आएंगे. जीत किसकी होगी, किसको मात मिलेगी… ये अलग विषय है. फिलहाल, बात इसे लेकर हो रही है कि आरसीपी सिंह की ताकत क्या है, जिस पर पीके को भरोसा है और उनकी अब तक की पॉलिटिकल हिस्ट्री क्या कहती है?
क्या है आरसीपी की जमीनी ताकत
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इमेज सुशासन बाबू की है, तो उसे गढ़ने वाले शिल्पी आरसीपी सिंह माने जाते हैं. 1984 बैच के आईएएस अधिकारी आरसीपी को नीतीश कुमार प्रमुख सचिव बनाकर बिहार लाए. नीतीश कुमार के पहले कार्यकाल में अपराध पर नकेल से लेकर विकास तक, बिहार में आए बदलाव के लिए आरसीपी की भी चर्चा होती है. साल 2010 में आरसीपी सिंह स्वैच्छिक सेवानिवृ्ति लेकर जेडीयू में शामिल हो गए थे.
राजनीति में उतरने के बाद आरसीपी सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की तर्ज पर जेडीयू का संगठन खड़ा करने की पहल की. आरसीपी की इमेज भले ही जनता के बीच मजबूत अपील रखने वाले नेता की न हो, वह कुशल संगठनकर्ता माने जाते हैं. आरसीपी सिंह ने 17 साल तक नीतीश कुमार के साथ काम किया है. ऐसे में वह सीएम की वर्किंग स्टाइल, मजबूती और कमजोरी को किसी अन्य नेता के मुकाबले अधिक समझते हैं.
आरसीपी के साथ आने से बदलेगा समीकरण?
आरसीपी सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा से ही आते हैं. वह कुर्मी जाति से ही हैं, जिससे मुख्यमंत्री नीतीश हैं. नीतीश के बाद बड़े कुर्मी नेताओं की अग्रिम पंक्ति में गिने जाने वाले आरसीपी के आने से जाति की राजनीति का मकड़जाल तोड़ने की बात करने वाली जन सुराज के सामाजिक अंब्रेला को विस्तार मिला है. ब्राह्मण चेहरा पीके जन सुराज के सूत्रधार हैं, तो दलित चेहरा मनोज भारती पार्टी के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष. अब आरसीपी सिंह के आने से इसमें कुर्मी भी जुड़ गया है. कुर्मी जाति की आबादी बिहार में करीब तीन फीसदी है. नीतीश कुमार की लोकप्रियता में आई गिरावट के बीच पीके की पार्टी को आरसीपी सिंह के जरिये नीतीश के सजातीय वोटबैंक में सेंध लगाने का अवसर दिख रहा है.
क्या कहती है आरसीपी की पॉलिटिकल हिस्ट्री
आरसीपी सिंह ने साल 2010 में जेडीयू का दामन थामकर सियासत में कदम रखा था. आरसीपी की गिनती नीतीश कुमार के सबसे विश्वासपात्र नेताओं में होती थी. वह सियासत में बुलंदी की सीढ़ियां बहुत तेजी से चढ़े. नीतीश कुमार के बाद जेडीयू में नंबर दो का ओहदा रखने वाले आरसीपी सिंह को पहले महासचिव, और फिर 2020 के बिहार चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया. 27 दिसंबर 2020 को नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का ऐलान किया था. आरसीपी सिंह 2021 में नीतीश की इच्छा के विपरीत जाकर जेडीयू कोटे से केंद्र सरकार में मंत्री बन गए.
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साल 2022 में राज्यसभा का कार्यकाल पूरा होने के बाद जेडीयू ने आरसीपी को तीसरा मौका नहीं दिया और उन्हें मंत्री पद भी गंवाना पड़ा. बदली परिस्थितियों में आरसीपी सिंह ने अगस्त 2022 में जेडीयू के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. नीतीश कुमार की पार्टी ने अगस्त महीने में ही एनडीए का साथ झटक आरजेडी से गठबंधन कर लिया. आरसीपी सिंह ने अगस्त 2022 में ही जेडीयू को डूबता जहाज बताते हुए पार्टी की प्राथमिकता सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. आरसीपी सिंह मई 2023 में बीजेपी में शामिल हो गए थे. नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी के बाद आरसीपी सिंह फिर से हाशिए पर चले गए.
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साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से टिकट पाने की कोशिशें भी विफल रहीं तो आरसीपी सिंह ने आप सबकी आवाज नाम से अपनी पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया. अब आरसीपी ने करीब आठ महीने पुरानी अपनी पार्टी का जन सुराज में विलय कर दिया है. पिछले तीन साल में देखें तो पहले जेडीयू, फिर बीजेपी और आसा के बाद अब जन सुराज आरसीपी सिंह की चौथी पार्टी है.