बिहार में नीतीश कुमार के अगुवाई वाले एनडीए में आखिरकार सीट शेयरिंग हो गया. बीजेपी और जेडीयू बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेंगी, जबकि जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को महज छह सीटें मिली हैं. इस तरह मांझी की ‘प्रेशर पॉलिटिक्स’ का कोई भी दांव काम नहीं आया.
एनडीए के सीट बंटवारे में सबसे बड़ा झटका जीतनराम मांझी को लगा है. मांझी ने पहले 40 सीटों की डिमांड रखी, उसके बाद 20 सीट पर और फिर 15 सीट मांग रहे थे, लेकिन सीट शेयरिंग में उन्हें सिर्फ 6 सीटें मिलीं. इस तरह पिछले चुनाव से भी 1 सीट कम उनके खाते में आई है.
बीजेपी और जेडीयू को जिस तरह बराबर-बराबर सीटें मिली हैं, उसी तर्ज़ पर जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को 6-6 सीटें मिली हैं. मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को सीट बंटवारे में सबसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है. इसी वजह से मांझी को कहना पड़ा कि आलाकमान ने जो निर्णय लिया वह सर आंखों पर है, लेकिन 6 सीट देकर हमारे महत्व को कम आंका गया है. ऐसे में हो सकता है एनडीए को इसका खामियाज़ा भी भुगतना पड़े.
एनडीए में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला
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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए में सीट बंटवारा हो गया है. राज्य की कुल 243 सीटों में से बीजेपी और जेडीयू 101-101 सीट पर चुनाव लड़ेंगी. इसके अलावा चिराग पासवान की एलजेपी (आर) को 29 सीटें मिली हैं तो जीतनराम मांझी की ‘हम’ को 6 सीट और कुशवाहा की पार्टी को 6 सीट मिली है.
जीतनराम मांझी की पार्टी के पास फिलहाल चार विधायक और एक सांसद हैं. मांझी के बेटे नीतीश कैबिनेट में मंत्री हैं और मांझी भी खुद केंद्र की कैबिनेट में मंत्री हैं. वहीं, उपेंद्र कुशवाहा खुद लोकसभा चुनाव हार गए थे और उनकी पार्टी से कोई विधायक नहीं है। इसके बाद भी मांझी और कुशवाहा के खाते में बराबर-बराबर 6 सीटें आईं हैं.
21, 7 और अब 6 सीट से संतोष
अस्सी के दशक में सियासी पारी का आग़ाज़ करने वाले जीतनराम मांझी 2014 में बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. 2015 में नीतीश कुमार के साथ मांझी का सियासी टकराव शुरू हुआ. इसके बाद 2015 में मांझी ने अपनी पार्टी का गठन किया था, जब नीतीश कुमार ने उन्हें सीएम पद से हटाकर सत्ता की बागडोर अपने हाथ में दोबारा ले ली थी.
जीतनराम मांझी ने हिंदुस्तान आवाम मोर्चा नाम से पार्टी बनाई और बीजेपी से हाथ मिला लिया. 2015 में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़े थे. इस चुनाव में मांझी की पार्टी को 21 सीटें चुनाव लड़ने के लिए एनडीए में मिली थीं. हालांकि, उस वक्त जेडीयू एनडीए का हिस्सा नहीं थी.
2017 में नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी हुई तो मांझी का खेल बिगड़ गया. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मांझी को मिली सीटें 21 से घटकर महज़ 7 रह गईं। उन्हें सात सीट से संतोष करना पड़ा.
2025 में विधानसभा चुनाव में जीतनराम मांझी ने 40 सीटों की मांग से अपनी डिमांड शुरू की, उसके बाद 20 सीट और फिर 15 सीट पर अड़े रहे थे, लेकिन सीट शेयरिंग में उन्हें सिर्फ 6 सीटें मिलीं। इस तरह उन्हें पिछले चुनाव से एक सीट कम मिली.
मांझी की लगातार घटती अहमियत
बिहार की सियासत में मांझी भले ही केंद्र में मंत्री हों, लेकिन उनकी सियासी अहमियत लगातार कम होती जा रही है. 2015 में 21 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले मांझी को 2020 में सात सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ा और अब उन्हें 6 सीटें मिली हैं. 2015 में 21 सीट पर चुनाव लड़ कर महज़ एक सीट जीत पाए थे. 2020 में सात सीट पर चुनाव लड़कर 4 विधायक जीते थे.
2024 में गया से लोकसभा सांसद बने और केंद्र में मंत्री. अब उन्हें छह विधानसभा सीटें मिली हैं. इस तरह लगातार तीसरे चुनाव में मांझी की सीटें कम हुई हैं; 2015 के चुनाव में उन्हें 21 और 2020 में 7 सीटें मिली थीं. ऐसे में उनकी ख़्वाहिश थी कि 2025 में कम से कम 15 सीट पर चुनाव लड़ें ताकि उनकी पार्टी को मान्यता प्राप्त दल का दर्ज़ा मिल सके.
मांझी की उम्मीदों पर फिरा पानी
मांझी ने कहा था कि 2015 में हमारी पार्टी बनी है. बिहार विधानसभा में उनके चार सदस्य हैं. एक विधान परिषद सदस्य हैं. दो जगह हम अपमानित हो रहे हैं. मतदाता सूची हमें नहीं मिली क्योंकि हम मान्यता प्राप्त दल नहीं हैं. चुनाव आयोग ने हमें बैठक में नहीं बुलाया, जिसका एक विधायक नहीं है, एक-दो है वह अपने को बड़ा समझ रहा है और क्या-क्या मांगता है. हम सिर्फ़ अर्ज़ करते हैं कि हमें अपमानित न किया जाए.
जीतनराम मांझी ने कहा था कि लास्ट इलेक्शन में सात सीटें मिलीं और हम चार पर जीते. हमको 15-16 सीट देंगे तो 7-8 सीट जीतेंगे और हमारी पार्टी को मान्यता मिल जाएगी. दावा कर रहे थे कि बिहार की 60-70 सीटों पर उनके वोटर 25 हजार से ज्यादा हैं. बिहार की आबादी में तीन फीसदी मुसहर की नुमाइंदगी वो खुद करते हैं. यही वजह है कि अब 6 सीटें मिलने के बाद मांझी दुखी नज़र आ रहे हैं.
मांझी ने कहा कि जो निर्णय लिया वह सर आंखों पर है, लेकिन 6 सीट देकर हमारे महत्व को कम आंका गया है. उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है हमारे एनडीए को इसका खामियाज़ा भी भुगतना पड़े.
दरअसल, जीतनराम मांझी सीट बंटवारे की घोषणा से पहले भी खुले तौर पर बयान देते रहे हैं और कहते रहे हैं कि उन्हें सम्मानित संख्या में सीटें चाहिए और वह यह भी कहते रहे हैं कि उन्हें कम से कम इतनी सीटें चाहिए जिससे उनकी पार्टी मान्यता प्राप्त पार्टी बन सके. मांझी की उम्मीदों को ज़रूर झटका लगा है.
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