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    स्याही और पेंट में इस्तेमाल होने वाला केमिकल खांसी की दवा में क्यों? मीठे सिरप के जहरीले होने की पूरी कहानी

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    मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जहरीला कफ सिरप पीने से 14 बच्चों की जान गई. दो बच्चों की मौत बैतूल में हुई. भोपाल से छिंदवाड़ा की दूरी छह घंटे की है लेकिन इस छह घंटे का सफर पूरा करके जान गंवाने वाले बच्चों के परिजन से मिलने में सरकार को और विपक्ष दोनों को 33 दिन लग गए.

    अफसाना को जिंदगी भर ये अफसोस रहेगा. जिस बच्चे का चार दिन बाद जन्मदिन मनाने का प्लान किया, उसे ही सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की जहरीली खामियों की वजह से मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में वो जहरीला कफ सिरप पिलाना पड़ा, जिससे उसैद की जान चली गई. उसैद, अदनान और इन जैसे 14 बच्चे अकेले मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में केवल एक कफ सिरप की वजह से पिछले 40 दिन से ज्यादा वक्त के बीच जान गंवा बैठे. परिवार चालीस दिन अपने बच्चों को गंवाते रहे.

    यह भी पढ़ें: दिल्ली में कफ सिरप पर सख्ती, 5 साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं दी जाएगी दवा, खरीद-बिक्री पर भी लगाई रोक

    इलाज के पैसों के लिए बेचना पड़ा ऑटो

    3 साल ग्यारह महीने के उसैद के पिता यासीन ने यही कफ सिरप अपने बेटे को पिलाया जिससे उसकी किडनी फेल हो गई. लिहाजा इलाज के पैसों के लिए उन्हें अपना ऑटो तक बेचना पड़ा. उसैद की तरह ही पांच साल के अदनान के दादा अपने पोते के आखिरी जन्मदिन की तस्वीर दिखाते हैं. अदनान भी मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा के उन बच्चों में से एक है, जिसकी मौत ये कफ सिरप पीने से हुई.

    अब सवाल है कि मध्य प्रदेश में इस जहरीले कोल्ड्रिप सिरप को पिलाने का जिम्मेदार कौन है? क्या वो डॉक्टर जिन्होंने कोल्ड्रिप कफ सिरप बच्चों को पीने के लिए लिखा? जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार लिया है. लेकिन सवाल है कि डॉक्टर कैसे जिम्मेदार हैं जबकि डॉक्टर वही दवा लिखते हैं जो सरकारी जांच के बाद बाजार में बिकने के लिए आती है? 

    मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान तक कफ सिरप से बच्चों की मौत में एक पैटर्न देखा गया. राजस्थान में भी एक जगह डॉक्टर-फार्मासिस्ट पर कार्रवाई की गई. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में तो दवा लिखने वाले डॉक्टर की गिरफ्तारी कर ली. लेकिन राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश तक ड्रग कंट्रोलर को केवल हटाया गया. 

    33 दिन बाद पीड़ितों से मिलने पहुंचे सीएम मोहन यादव

    मध्य प्रदेश में भोपाल से छिंदवाड़ा की दूरी 313 किमी है, जिसे पूरा करने में छह घंटे लगते हैं. लेकिन मुख्यमंत्री मोहन यादव को छिंदवाड़ा पहुंचने में 33 दिन लग घए. 4 सितंबर को पहले बच्चे की जान गई थी. उसके बाद अब 14 बच्चों की मौत के बाद सरकार सांत्वाना देने पहुंची है. जब छिंदवाड़ा में जहरीला कफ सिरप पीकर बच्चों की जान जा रही थी, तब मुख्यमंत्री मोहन यादव काजीरंगा नेशनल पार्क में हाथियों की उम्र पता कर रहे थे.

    इसके बाद मुख्यमंत्री को छिंदवाड़ा की याद आई. बच्चों का कष्ट याद आया. लेकिन सवाल है कि प्रदेश में कौन सी दवा कहां से आकर बिकती रहेगी, इसको जांचने का जिम्मा जिनके कंधों पर है अगर वो सोते रहे तो क्या केवल पद से हटाना ही बहुत है या फिर गिरफ्तारी उन अधिकारियों की भी होगी?

    पहले भी बच्चों की जान ले चुका है कफ सिरप

    आज से 3 साल पहले अफ्रीकी देश गाम्बिया में कफ सिरप पीने से 66 बच्चों की मौत हो गई थी. दूसरी घटना इंडोनेशिया की है, जहां कफ सिरप पीने से 200 बच्चों की मौत ने हड़कंप मचा दिया था. वहीं तीसरी घटना उज्बेकिस्तान की है, जहां जहरीला कफ सिरप पीने से 18 बच्चों ने दम तोड़ दिया. WHO की जांच में सामने आया कि इन सभी कफ सिरप में DEG और EG जैसे जहरीले पदार्थ मिले थे. सबसे बड़ी बात ये है कि ज्यादातर सिरप बनाने वाली कंपनियां भारतीय थीं. अगर भारत में सरकारें और संबंधित विभाग बच्चों की इन मौतों से खबरदार हो जाते तो मध्य प्रदेश से राजस्थान तक छोटे बच्चों की मौत नहीं होती.

    कैसे बनता है कफ सिरप?

    सवाल ये है कफ सिरप में ऐसा क्या है, जो बच्चों के लिए जहर बन जाता है? इसका जवाब खांसी के सिरप बनाने में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ हैं. आमतौर पर इसमें क्लोरफेनिरामाइन और फेनिलफ्राइन दवाइयों का इस्तेमाल होता है. 4 साल से कम उम्र के बच्चों को आमतौर पर यह दवाई दी जाती है, लेकिन अब सरकार ने इस पर बैन लगा दिया है. 4 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को डेक्सट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड नाम की दवाई वाले सिरप भी दिए जाते हैं. 

    आमतौर पर ये दवाइयां पाउडर के फॉर्म में होती हैं इसलिए इनको घोलने के लिए एक सॉल्वेंट की जरूरत होती है. बच्चे कड़वी दवाई नहीं पीते इसलिए मीठा सोर्बिटॉल या गाढ़ा करने वाले ग्लिसरीन या ग्लिसेरॉल या प्रोपिलीन ग्लाइकॉल मिलाया जाता है. इससे दवाई गाढ़ी रहती है, लेकिन मुंह में नहीं चिपकती. जब सॉल्वेंट की जगह EG यानी एथिलीन ग्लाइकॉल या फिर DEG यानी डाई-एथिलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल किया जाता है तो ये बच्चों के लिए जहर बन जाता है. EG और DEG रंगहीन और गंधहीन एल्कोहल हैं, जिनका इस्तेमाल इंडस्ट्री केमिकल की तरह पेंट, हाइड्रोलिक ब्रेक फ्लूड, स्याही, बॉल पॉइंट पेन वगैरह में होता है. 

    WHO के मानक के अनुसार दवाइयों में EG या DEG का इस्तेमाल 0.1% से ज्यादा नहीं होना चाहिए. दवाइयों में इनकी ज्यादा मात्रा में मौजूदगी जहरीली मानी जाती है. जब EG या DEG शरीर में जाते हैं, तो टॉक्सिक मेटाबोलाइट्स यानी जहरीले रसायन बनते हैं. जैसे- EG से ऑक्जैलिक एसिड और DEG से HEAA नाम का एसिड बनता है. इससे किडनी और तंत्रिका तंत्र को नुकसान होता है. इसके अलावा ये केमिकल खून में ऑक्सीजन के फ्लो को रोकते हैं. इससे कोशिकाएं मरने लगती हैं. 

    यह भी पढ़ें: ‘ऑटो बेचकर कराया इलाज, फिर भी नहीं बचा बेटा’; छिंदवाड़ा में कफ सिरप से मरे उसैद के पिता का छलका दर्द

    कफ सिरप में DEG और EG जैसे जहरीले पदार्थ

    मध्य प्रदेश में जिस जहरीले कफ सिरप ने बच्चों की जान ली, उसे बनाने वाली श्रीसन फार्मास्यूटिकल को लेकर तमिलनाडु सरकार ने बताया है कि कफ सिरप में इस्तेमाल किया गया प्रोपीलीन ग्लाइकॉल फार्मा नहीं, इंडस्ट्रियल ग्रेड का था, जो दवा बनाने में बैन है. इंडस्ट्रियल ग्रेड प्रोपीलीन ग्लाइकॉल सस्ता पड़ता है, लेकिन इसमें जहरीले केमिकल होते हैं जो बच्चों के मामले में जानलेवा होते हैं. जिस सिरप से बच्चों की मौत हुई उसमें 48% से अधिक DEG मिला, जबकि ये 0.1 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए.

    आज से 5 साल पहले जम्मू-कश्मीर के उधमपुर जिले में भी 12 बच्चों की मौत COLDBEST-PC कफ सिरप पीने से हुई थी. इसे हिमाचल प्रदेश की ‘डिजिटल विजन फार्मा’ कंपनी ने बनाया था. इसमें 34% DEG पाया गया था. इसके बाद भी सरकारों की नींद नहीं टूटी और मध्य प्रदेश से राजस्थान तक दर्जनों माता-पिता ने अपने मासूमों को खो दिया.

    —- समाप्त —-



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