राजस्थान और मध्य प्रदेश में बच्चों की मौतों को लेकर कफ सिरप पर उठे सवालों के बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि जांच में किसी भी सैंपल में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) जैसे खतरनाक केमिकल नहीं मिले. दावा है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में कफ सिरप पीने से 11 मासूमों की मौत हुई थी.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC), राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV), केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) और राज्य अधिकारियों की संयुक्त टीम ने मौके पर जाकर कई सैंपल कलेक्ट किए. रिपोर्ट में साफ हुआ कि किसी भी कफ सिरप में डायथिलीन ग्लाइकॉल या एथिलीन ग्लाइकॉल मौजूद नहीं था. ये ऐसे केमिकल हैं, जो किडनी को गंभीर नुकसान पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं.
मध्य प्रदेश राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन (SFDA) ने भी तीन सैंपल का परीक्षण किया और डायथिलीन ग्लाइकॉल या एथिलीन ग्लाइकॉल की अनुपस्थिति की पुष्टि की.
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एक्सपर्ट्स की टीम जांच कर रही
हालांकि, एनआईवी पुणे में की गई जांच में एक मामले में लेप्टोस्पायरोसिस (Leptospirosis) पॉज़िटिव पाया गया है. साथ ही पानी, मच्छर वाहकों और श्वसन संक्रमण से जुड़े सैंपलों की जांच अभी जारी है. NCDC, NIV, ICMR, AIIMS नागपुर और राज्य स्वास्थ्य अधिकारियों के विशेषज्ञों की टीम रिपोर्ट किए गए मामलों के सभी संभावित कारणों की जांच कर रही है.
स्वास्थ्य मंत्रालय का बयान
राजस्थान में दूषित कफ सिरप पीने से बच्चों की हुई मौतों की रिपोर्ट पर स्पष्टीकरण आया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि राजस्थान में बच्चों की मौत के मामले में जिस कफ सिरप का जिक्र है, उसमें भी प्रोपाइलीन ग्लाइकोल (Propylene Glycol) नहीं पाया गया. इसके साथ ही बताया गया कि यह उत्पाद डेक्सट्रोमेथॉर्फन आधारित फार्मूलेशन है, जिसे बच्चों के लिए (बाल चिकित्सा उपयोग) अनुशंसित नहीं किया जाता.
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DGHS ने राज्यों को एडवाइजरी जारी की
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के डीजीएचएस (DGHS) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 5 साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप देने में सावधानी बरतने की सलाह दी है.
एडवाइजरी की बड़ी बातें
– 2 साल से कम उम्र के बच्चों को खांसी और जुकाम की दवा बिल्कुल न दी जाए.
– 5 साल से छोटे बच्चों को सिरप देने से पहले डॉक्टर द्वारा सावधानीपूर्वक क्लीनिकल मूल्यांकन किया जाए.
– पहला विकल्प हमेशा गैर-दवा उपाय हो. पर्याप्त पानी, आराम और सहायक देखभाल बेहतर है.
– सभी स्वास्थ्य संस्थान और क्लीनिक केवल गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) के तहत बनी और सुरक्षित फार्मास्यूटिकल ग्रेड सामग्री से तैयार दवाओं का ही उपयोग करें.
– डॉक्टरों और फार्मासिस्टों को संवेदनशील और जागरूक करने की जरूत है, ताकि मानकों का पालन हो सके.
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