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    काशी का घाट, शोक में भी उल्लास का गीत और अध्यात्म… शिवत्व में विलीन हो गए पंडित छन्नूलाल मिश्र

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    वाराणसी का घाट… रंग-अबीर, गुलाल में रंगे हुए चेहरे हैं. कहीं फाग-कहीं बिरहा की गूंज है तो कहीं है छायी मदहोशी. इतने में ये सारे रंग किसी सफेद गुबार में दब जाते हैं. अब हर तरफ अलग ही सफेदी छायी है. इन्हीं के बीच में से गूंज उठता है…

    लखि सुंदर फगुनी छटा के, मन से रंग-गुलाल हटा के,
    चिता भस्म भर झोरी दिगंबर, खेले मसाने में होरी

    यानी सुंदर फागुनी छटा को देखकर, मन से अलग-अलग रंगों के गुलाल हटा दिए हैं, उन्हें बस एक ही सफेदी में रंग लिया है और चिता की ऐसी सफेद भस्म की झोली भरकर दिगंबर मसान के बीच कूद पड़े हैं और जम कर होली खेल रहे हैं.

    इन पंक्तियों में उल्लास और अध्यात्म का जो संगम है, उसके सुंदर संयोजन की वजह अगर कोई है तो वे हैं प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक छन्नूलाल मिश्र… अपने आकार, आलाप और शब्दों के मींड-खटक से वो ऐसा उल्हास रचते हैं कि मानो दिगंबर बाबा भोले भंडारी सच में राख रूप शृंगार कर बनारसी अघोरी हुरियारों के बीच चले आए हैं और सारी सृष्टि को सिर्फ अपनी दिव्य सफेदी में रंग देना चाहते हैं. 

    ये जादू, ये संगीत, ये दिव्य अनुभूति पैदा करने का हुनर रखते थे पंडित छन्नूलाल मिश्र…
     

    साल 2018 में उनकी शास्त्रीय संगीत की धरोहर के रूप में एक एल्बम आई थी, ‘टेसू के फूल’, इसमें खेले मसाने में होरी… को सुना जा सकता है.  

    उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में एक गांव है हरिहरपुर, यहां 3 अगस्त 1936 की एक दोपहर पं. बद्रीप्रसाद मिश्रा के घर किलकारी गूंजी. बालक हुआ है इसलिए फूल-कांसे की बड़ी-बड़ी थालियां बजाई गईं और इस बड़े थाल समारोह से बालक ने ऐसे गुंजित स्वर में रूदन किया कि पिता समझ गए कि विरासत को बढ़ाने वाला आ गया है. प्यार से बालक का एक बार जो नाम पड़ा छन्नू तो वे छन्नूलाल ही हो गए. संगीत विरासत में मिला, सुर विरासत में मिले, साधना करने की शक्ति विरासत में मिली और विरासत की इस पूंजी को संभालकर चलते हुए छन्नूलाल मिश्र वाराणसी की ओर बढ़े. 

    यों समझिए कि जैसे कबीर को सीढ़ीयों पर गुरु रामानंद मिले थे,  वैसे ही छन्नूलाल मिश्र ने किराना घराने के उस्ताद अब्दुल गनी खान के पांव पखारे और उनका शिष्यत्व ग्रहण कर लिया, लेकिन भाग्य का लिखा अभी बाकी था. एक दिन युवा छन्नूलाल को गाते हुए प्रसिद्ध संगीतकार स्वर्गीय पद्मभूषण ठाकुर जयदेव सिंह ने सुना और उनकी अपार क्षमता को पहचानकर उन्हें अपने मार्गदर्शन में ले लिया. इससे गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मानित रूप विकसित हुआ, जिसमें शिक्षक और शिष्य के बीच का बंधन मजबूत हुआ और पंडित जी की गायकी उस आयाम पर पहुंची, जहां गायकी-गायकी नहीं रह जाती है, मंत्र बन जाती है. ऐसा मंत्र जो सिद्ध हो जाए तो बैठे-बैठे ध्यान की अवस्था में ले जाता है. 

    जब गायकी में सभी घरानों की खासियतों का हो जाता है संगम
    पंडित छन्नूलाल मिश्रा की विभिन्न घरानों की शैलियों को अपनी अनूठी शैली में सुंदरता से मिलावट करने की क्षमता ही उन्हें अलग बनाती है. उनकी लयात्मक प्रस्तुतियां किराना बादहत और पटियाला घराने के खूबसूरत अलंकारों से प्रेरित हैं, जिसकी वजह से पंजाब और पूर्व की शैलियों का एक मधुर संयोजन होता है. इसके अलावा, उनकी संगीत में एक आध्यात्मिक गहराई भी झलक लेकर आती है. ये झलक घराना शैलियों की सीमाओं को पार कर जाती है और फिर सारे अंतर मिट जाते हैं, घरानों का अस्तित्व गायकी की खूबसूरती को बढ़ाता है, लेकिन जब गायन अध्यात्म की ओर बढने लगता है तो वह सारे भेद मिटाने लगता है. भाषा के भेद, जाति के भेद, सुर के भेद, ऊंच-नीच का भेद. रह जाता है तो सिर्फ एक उल्लास… वही अकेली एक सार्वभौमिक आध्यात्मिकता, पंडितजी का गायन इसी सार्वभौमिकता का परिचायक रहा है. परंपराओं और आध्यात्मिकता के इस संयोजन ने ही उन्हें भारतीय शास्त्रीय और अर्ध-शास्त्रीय संगीत में एक अनूठा व्यक्तित्व बनाया है.

    बनारसी गंगा और गीत को जिलाए रखने की तमन्ना
    पंडित जी के बनारस प्रेम और गंगा के प्रति समर्पण का एक किस्सा बहुत मशहूर है. वह पीएम मोदी के लिए प्रस्तावक भी रहे हैं. हालांकि पहले उन्होंने इसके लिए इनकार किया था, लेकिन अमित शाह से मुलाकात के बाद वह मान गए थे. बाद में जब वह प्रस्तावक बने तब उन्होंने सिर्फ एक ही बात कही- बनारस, संगीत और गंगा को जिलाए रखिएगा. हालांकि वह कई बार गंगा के हाल पर दुखी होते रहे थे.

    दुख… जो एक बार मंच पर झलका
    खैर, दुख तो उनका संगीत को लेकर भी बड़ा था. दिल्ली में आयोजित अपने एक कार्यक्रम के दौरान वह मंच से यूं हो बोल पड़े थे कि संगीत में ठुमरी के बस दो ही अंग जिंदा रह गए हैं.  जबकि ठुमरी की विधा 12 अलग-अलग प्रकार की ठुमरियों से संपन्न है. गायक न गाते हैं न बताते हैं. आप गाओगे नहीं-बताओगे नहीं, आप ही भूल गए तो सुनने वाला ही क्या याद रखेगा. फिर पंडित जी ने सभी 12 प्रकार भी बताए. इस तरह जिस संगीत समारोह में पंडित जी की प्रस्तुति है तो वह सिर्फ समारोह नहीं रह जाता था, संगीत की क्लास बन जाता था.

    पंडित छन्नूलाल मिश्रा को उनकी संगीतमय प्रतिभा के सम्मान में अनेक पुरस्कार और सम्मान प्रदान किए गए हैं. वे ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर टॉप ग्रेड कलाकार के विशिष्ट खिताब से नवाजे गए. वे भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय (उत्तर-मध्य) के सम्मानित सदस्य रहे. पंडित छन्नूलाल मिश्रा की विरासत उनकी प्रस्तुतियों से परे विस्तारित है. वे एक समर्पित शिक्षक रहे जो विश्व भर के छात्रों को अपनी पीढ़ी और विरासत से रूबरू कराते रहे. पंडितजी अब स्मृतिशेष हैं और संगीत में जो खाली छोड़ गए हैं, वहां से न अब कोई आलाप उठाया जा सकता है, न कोई ताल दी जा सकती है. 

    —- समाप्त —-



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