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    बिहार में CWC की बैठक: तेलंगाना जैसे सरप्राइज या तेजस्वी के वोटबैंक में सेंध की तैयारी?

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    आज 24 सितंबर, बुधवार को पटना के सदाकत आश्रम में कांग्रेस वर्किंग कमिटी (सीडब्ल्यूसी) की बैठक हो रही है, जो आजादी के बाद बिहार में पहली बार है. बिहार में विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह बैठक सामान्य नहीं हो सकती. कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं की पटना में जुटान बताती है कि पार्टी बिहार राज्‍य और वहां के विधानसभा चुनावों को लेकर कितनी गंभीर है. दूसरी बात यह भी है कि पार्टी को लगता है कि बिहार में उसके पक्ष में लहर चल रही है. इसीलिए कांग्रेस के कुछ नेता कह रहे हैं कि बिहार में तेलंगाना जैसी जीत की संभावनाएं हैं.  

    बिहार में विधानसभा चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने वाले हैं. सवाल उठता है कि कांग्रेस की इस कवायद के पीछे आखिर मंतव्य क्या है? क्या अचानक कांग्रेस को लग रहा है कि तेलंगाना 2023 की तरह का बिहार में उसके पक्ष में हवा चल रही है या कांग्रेस का एकमात्र मकसद तेजस्वी को ठिकाने लगाना है. खासतौर से उनके ओबीसी और मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाकर. जिस तरह अरविंद केजरीवाल के साथ दिल्ली विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस ने किया था. 

    जैसे केजरीवाल को लगाया था किनारे वैसा ही कुछ तेजस्वी के साथ…?

    दरअसल कांग्रेस को यह बात समझ में आ चुकी है कि बिना क्षेत्रीय दलों को खत्म किए कांग्रेस को फिर मजबूत नहीं किया जा सकता. आज कांग्रेस के कोर वोटर्स के बल पर ही क्षेत्रीय राजनीतिक दल मजबूत बने हुए हैं. इसी रणनीति के तहत दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (AAP) से पूरी तरह किनारा कर लिया था. AAP के साथ गठबंधन की कोई संभावना नहीं बनी, और कांग्रेस ने सभी 70 सीटों पर अकेले लड़ने का फैसला किया. नतीजा? AAP 63 से 22 सीटों पर आ गई, कांग्रेस फिर 0 पर सिमट गई, और भाजपा ने 48 सीटों के साथ सत्ता हासिल कर ली. अब बिहार विधानसभा चुनावों में क्या कुछ ऐसा ही होने वाला है. क्या कांग्रेस महागठबंधन में अपने सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव को उसी तरह किनारे करेगी? आने वाले विधानसभा चुनाव में ऐसा होना मुमकिन नहीं है. क्‍योंकि, कांग्रेस की न तो तैयारी है और न ही आगे की रणनीति. हां, वह तेजस्‍वी यादव/राजद के वोट बैंक को कांग्रेस यह जरूर एहसास कराना चाहती है कि उसके असली शुभचिंतक राहुल गांधी ही हैं.

    केजरीवाल के शराब नीति घोटाले में जेल जाने और इस्तीफे ने AAP को कमजोर किया. कांग्रेस ने इसे भुनाया, केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के आरोपों को उछाला, और यमुना सफाई जैसे मुद्दों पर हमला बोला. कांग्रेस ने अकेले लड़कर वोट शेयर बढ़ाया (9% से 12%), हालांकि जीत सीमित रही. इस रणनीति ने AAP को कमजोर किया. बिहार में कांग्रेस के भीतर यह विचार है कि लालू वाले ‘जंगल राज’ का खामियाजा उन्‍हें भी उठाना पड़ता है.

    सीट बंटवारे को लेकर हो रही खींचतान से कांग्रेस फायदा उठाना चाहती है

    बिहार में आरजेडी का वोट बैंक मुख्य रूप से कांग्रेस वाला ही है. बिहार में आरजेडी को कमजोर किए बिना कांग्रेस कभी भी यहां मजबूत नहीं बन सकती. तेजस्वी यादव RJD के नेता और महागठबंधन के चेहरा हैं, जो कांग्रेस, CPI(ML), और अन्य वाम दलों के साथ मिलकर NDA (भाजपा-जद(यू)) को चुनौती दे रहा है. लेकिन सीट-बंटवारे पर तनाव साफ है. लोकसभा चुनावों में मिली सफलता को मापदंड माने तो बिहार में कांग्रेस और आरजेडी आज की तारीख में बराबरी पर हैं. बिहार में 2024 लोकसभा में कांग्रेस ने 9 में से 3 सीटें जीतीं, जबकि RJD 4 पर सिमटी. अगर पप्पू यादव की सीट मिला लें तो कांग्रेस और आरजेडी ने बराबर सीटें हासिल की थीं. इस हिसाब से कांग्रेस अगर सौ सीट भी विधानसभा चुनावों में मांगती है तो कम ही है. हालांकि कांग्रेस 70-75 सीटें ही मांग रही है, पर अपनी पसंद वालीं. आरजेडी नेताओं के बयान बताते हैं कि कांग्रेस की मांग पूरी होने वाली नहीं है. सवाल उठता है कि कांग्रेस तेजस्वी से किनारा करने के लिए इस बहाने का इस्तेमाल करेगी ? 

    क्या बिहार में तेलंगाना जैसा सरप्राइज मिलेगा?

    2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने एक ऐतिहासिक सरप्राइज दिया था. दस साल पुरानी सत्ता का दंभ रखने वाली भारत राष्ट्र समिति (BRS) को धूल चटा दी, और कांग्रेस ने 64 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया. रेवंत रेड्डी मुख्यमंत्री बने. यह जीत एंटी-इनकंबेंसी, युवा बेरोजगारी तथा वेलफेयर प्रॉमिसेस पर आधारित थी. BRS का वोट शेयर 10% गिरा, जबकि कांग्रेस का उतना ही बढ़ा. 

    अब 2025 के बिहार चुनावों (अक्टूबर-नवंबर) में महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-वाम) को वैसी ही उम्मीदें हैं. लेकिन क्या बिहार में तेलंगाना जैसा चमत्कार होगा? तेलंगाना में कांग्रेस की जीत के प्रमुख कारक थे BRS पर भ्रष्टाचार और नौकरियों में देरी के आरोप, छह ‘गारंटी’ वादे (महिलाओं को 1500 रुपये, फसल खरीद) और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का असर.कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों में झाड़ू लगाई, जबकि BRS शहरी केंद्रों तक सीमित रही. यह ‘अंडरडॉग’ की जीत थी, जहां कांग्रेस 2018 में 19% वोट से 2023 में 39% पर पहुंची.

    बिहार में समानताएं साफ हैं. नीतीश कुमार की सरकार पर बेरोजगारी (40% युवा प्रभावित), प्रवासन (20 लाख मजदूर बाहर) और SIR वोटर लिस्ट विवाद के आरोप हैं. महागठबंधन ने ‘पहली नौकरी पक्की’ जैसे वादे किए, जो तेलंगाना की गारंटी से मिलते हैं. राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ (अगस्त 2025) ने लाखों को जोड़ा. 24 सितंबर 2025 को पटना में CWC बैठक को ‘तेलंगाना 2.0’ कहा जा रहा, जहां आरक्षण बढ़ोतरी (62% तक) और नौकरी गारंटी घोषित हो सकती है.

    गुजरात में भी अधिवेशन हुआ था, अब तक कुछ खास हासिल नहीं

    भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए गुजरात एक ऐसा राज्य रहा है जहां पार्टी की जड़ें गहरी हैं, लेकिन पिछले दशकों में यह बीजेपी का किला बन गया है. आजादी के बाद गुजरात में कई कांग्रेस अधिवेशन हुए, लेकिन 2025 के अप्रैल में अहमदाबाद में आयोजित AICC (ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी) सत्र सबसे चर्चित रहा। यह 1961 के भवनगर सत्र के बाद गुजरात में पहला राष्ट्रीय अधिवेशन था.

    लेकिन सवाल उठता है- क्या यह अधिवेशन पार्टी को गुजरात में पुनरुत्थान दे पाया? या गुजरात में भी ‘कुछ हासिल नहीं हुआ’, जैसा कि 2022 के विधानसभा चुनावों के बाद हुआ था? 

    2025 का अहमदाबाद सत्र 150वीं जयंती वर्ष के संदर्भ में हुआ, जहां ‘संगठन सृजन अभियान’ लॉन्च किया गया. राहुल गांधी ने 15-16 अप्रैल को विजिट की, जहां उन्होंने पार्टी को ‘जनता से कटे’ नेताओं को हटाने का वादा किया. 

    जिला स्तर पर स्वायत्त निर्णय प्रक्रिया, प्रदर्शन के आधार पर पुरस्कार, और बीजेपी से सांठ-गांठ वाले नेताओं की सफाई का भी वादा किया गया. यह अधिवेशन 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी था. पार्टी ने दावा किया कि यह ‘बीजेपी के 35 साल के राज’ को चुनौती देगा.

    राहुल के ‘बीजेपी एजेंट्स’ हटाने के वादे पर अमल नहीं हुआ; चार विधायक बीजेपी में चले गए, जिससे विधानसभा में कांग्रेस 17 से घटकर 11 रह गई. वाव उपचुनाव में हार ने बानासकांठा जिले में केवल एक सीट बचा ली.AAP का उदय जारी है; स्थानीय निकाय चुनावों में 27 सीटें जीतीं. 

    बिहार के 2025 अधिवेशन (24 सितंबर, पटना) को गुजरात से तुलना हो रही है. बिहार में कांग्रेस उम्मीदें बांध रही- वोटर लिस्ट सुधार, नौकरी गारंटी. लेकिन गुजरात दिखाता है कि अधिवेशन अकेला काफी नहीं है. अगर फैसले अमल में न आए, तो बिहार में भी ‘कुछ हासिल नहीं’ हो सकता. कांग्रेस को गुजरात से सीखना चाहिए. 

    तेजस्वी को घेरने के लिए सीडब्ल्यूसी की बैठक वॉर रूम खोलने जैसी कवायद

    बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से ठीक पहले महागठबंधन (INDIA ब्लॉक) में दरारें साफ नजर आ रही हैं. कांग्रेस, जो कभी RJD की ‘छाया’ में रही, अब तेजस्वी यादव की राजनीति को चुनौती देने की कवायद में लगी है. जहां कांग्रेस तेजस्वी के CM चेहरे को कमजोर करने की रणनीति बना रही है, वहीं सीट-बंटवारे पर घमासान, आंतरिक मतभेद और नेतृत्व की होड़ ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है. सीडब्यूसी में पहुंच रहे कांग्रेस नेता इस तरह का बयान दे रहे हैं कि जैसे  बिहार सीएम चेहरे पर अभी फैसला होना है. 

    इसी तरह राहुल गांधी और तेजस्वी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’भी कांग्रेस की यात्रा बनकर रह गई थी. RJD के बैनर-झंडे गायब रहे, जो कांग्रेस की ‘संदेश’ देने वाली चाल मानी जा रही थी. 

     X पर चर्चा है कि यह तेजस्वी को ‘किनारे’ करने की कोशिश है, ताकि कांग्रेस मजबूत सौदेबाजी कर सके. तेजस्वी और आरजेडी को कमजोर करने के लिए सीडब्ल्यूसी की बैठक के साथ कांग्रेस’वॉर रूम’ जैसा अभियान शुरू कर सकती है. यहां राहुल और मल्लिकार्जुन खड़गे बेरोजगारी, SIR घोटाले आदि पर फोकस करेंगे, लेकिन अंदरूनी एजेंडा तेजस्वी को CM चेहरा बनाने पर सवाल उठाना होगा. प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम ने कहा, CM चेहरा बैठक में तय होगा. 

    कांग्रेस को बिहार चुनावों से इतनी उम्मीद क्यों बढ़ गई है?

    वोटर लिस्ट विवाद और राहुल गांधी की यात्रा से कांग्रेस की उम्मीदें बढ़ीं हैं. जून 2025 में चुनाव आयोग ने SIR अभियान शुरू किया.राहुल गांधी ने 17 अगस्त से 1 सितंबर तक वोटर अधिकार यात्रा निकाली, जिसमें कन्हैया कुमार जैसे युवा नेता शामिल हुए. यात्रा में लाखों लोग जुटे, खासकर युवा और प्रवासी मजदूर.

    2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने बिहार में 3+1 (पप्पू यादव को मिलाकर)  सीटें जीतीं, जो आरजेडी के बराबर ही थी. जबकि आरजेडी ने 23 सीटों पर चुनाव लड़कर 4 सीटें जीतीं थीं. यानि कि कांग्रेस का स्ट्राइक बेहतर था आरजेडी से.जाहिर कि कांग्रेस का हौसला बुलंद है. नीतीश कुमार की बार-बार गठबंधन बदलने की राजनीति से लोग ऊब चुके हैं.

    कांग्रेस को लगता है कि अगर वह अकेले मैदान में उतरती है तो मुस्लिम वोट उसके साथ जा सकते हैं.  इसके साथ ही कांग्रेस को सवर्ण वोट और दलित वोटर्स पर भी भरोसा है. लोकसभा चुनावों में यूपी और बिहार में जहां कांग्रेस के प्रत्याशी मजबूत रहे वहां पार्टी को मुस्लिम, दलित और सवर्णों को वोट अच्छी खासी संख्या में मिले हैं. जिस तरह राहुल गांधी ने जाति जनगणना और आरक्षण को बढ़ाने की बात हर मंच से करते हैं उसका असर कुछ अति पिछड़ी जातियों पर भी पड़ सकता है.

    —- समाप्त —-



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