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    ‘जाति सर्वेक्षण में क्रिश्चियन सब-कास्ट को दर्शाने वाला कॉलम हटा’, विवाद बढ़ने पर CM सिद्धारमैया ने दी सफाई

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    कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शनिवार को स्पष्ट किया कि जाति सर्वेक्षण में क्रिश्चियन उप-जातियों को दर्शाने वाला कॉलम हटा दिया गया है. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर इस मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया. राजधानी बेंगलुरु में पत्रकारों से बात करते हुए सिद्धारमैया ने क्रिश्चियन उप-जातियों को दर्शाने वाला कॉलम से संबंधित भ्रम पर कहा, ‘अब इसे हटा दिया गया है.’

    उन्होंने आगे स्पष्ट किया, ‘यह मैंने नहीं हटाया. पिछड़ा वर्ग आयोग एक वैधानिक निकाय है. हम इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते और न ही इसे निर्देश दे सकते हैं. हमने गाइडलाइंस जारी किए हैं और पिछड़ा वर्ग आयोग से उसी के अनुसार काम करने को कहा है.’ मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने उन्हें बीजेपी नेताओं द्वारा सौंपा गया पत्र भेजा है. उन्होंने कहा, ‘मैंने पत्र देखा है. बीजेपी इसे राजनीतिक कारणों से कर रही है. क्या मुझे बार-बार बीजेपी को जवाब देते रहना चाहिए?’

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    राज्यपाल ने अपने पत्र में उल्लेख किया था कि जाति सर्वेक्षण से ‘सामाजिक अशांति, दीर्घकालिक जटिलताएं और राज्य के सामाजिक ताने-बाने को अपूरणीय क्षति हो सकती है. उन्होंने मुख्यमंत्री से इस मुद्दे पर पुनर्विचार करने को कहा था.’ बीजेपी के इस आरोप पर कि कांग्रेस हिंदुओं को जातियों में बांट रही है, सिद्धारमैया ने जवाब दिया, ‘हम कब जातियों में बांट रहे हैं? सरकार को लोगों की सामाजिक-शैक्षिक और आर्थिक स्थिति जाननी चाहिए. इसके बिना हम आपके लिए नीतियां कैसे बना सकते हैं?’

    पंचमसाली जगद्गुरु वचनानंद स्वामीजी द्वारा सर्वेक्षण को साजिश करार देने पर सिद्धारमैया ने कहा, ‘क्या केंद्र द्वारा जाति जनगणना करना भी साजिश माना जाएगा? 1931 में जाति जनगणना बंद हो गई थी. अब केंद्र कह रहा है कि वह 2028 में जाति जनगणना करेगा. क्या इसे भी साजिश कहेंगे?’ कैबिनेट बैठक में कुछ मंत्रियों द्वारा जाति सर्वेक्षण का विरोध करने के सवाल पर मुख्यमंत्री ने कहा, ‘कहीं भी जाति सर्वेक्षण का विरोध नहीं हुआ. सभी ने इसके लिए सहमति दी ​है.’

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    उन्होंने जोर देकर कहा कि यह केवल जाति सर्वेक्षण नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक, शैक्षिक और ‘रोजगार’ सर्वेक्षण है, जिसका उद्देश्य समाज में समानता लाना है. सिद्धारमैया ने कहा, ‘यह सर्वेक्षण उन लोगों की पहचान करेगा जो अवसरों से वंचित हैं. अगर समाज में समानता लानी है, तो क्या हमें आर्थिक रूप से कमजोर और अवसरों से वंचित लोगों को प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए?’ मुख्यमंत्री ने बताया कि 1.75 लाख शिक्षकों को इस कार्य के लिए नियुक्त किया गया है. एक शिक्षक 15 दिनों में 120 से 150 घरों का सर्वेक्षण करेगा. 22 सितंबर से 7 अक्टूबर तक चलने वाले इस सर्वेक्षण का अनुमानित खर्च 420 करोड़ रुपये है.

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