भारतीय संस्कृति में पितरों की पूजा, श्राद्ध और तर्पण की परंपरा बहुत प्राचीन और गहरी है. माना जाता है कि हमारे पूर्वज केवल हमारे जीवन की शुरुआत करने वाले ही नहीं हैं, बल्कि वह हमारे वर्तमान और भविष्य के सुख-दुख के भी आधार हैं. यही वजह है कि शास्त्रों में पितृ ऋण को उतारने का विशेष महत्व बताया गया है. श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि के साथ ही ‘नारायण बलि’ भी जरूरी कर्म बताया गया है. यह खासतौर से उन आत्माओं के लिए किया जाता है जो प्रेत की अवस्था में भटक रही हों.
नारायण बलि क्या है?
शास्त्रों में कहा गया है कि यदि किसी ज्ञात मृतक आत्मा, यानी जिसका नाम और गोत्र पता हो तथा जिसकी मृत्यु का कारण भी आप जानते हों, और वह प्रेत की अवस्था में हों तो उनके उद्धार के लिए नारायण बलि का विधान किया जाता है. अब आप यह सोचेंगे कि कैसे पता चलेगा कि आत्मा प्रेत अवस्था में है तो कभी-कभी मृत आत्मा सपने में आकर खुद भी यह संकेत देती है कि वह कष्ट में है और मुक्ति चाहती है. ऐसे में नारायण बलि करना जरूरी माना गया है.
इसके साथ ही अगर किसी की आकस्मिक मृत्यु हुई है, अकाल मृत्यु हुई है, या कोई अपनी किसी बड़ी इच्छा के पूरे हुए बिना ही मृत्यु को प्राप्त कर चुका है तो ऐसे में नारायण बलि का कर्मविधान जरूरी हो जाता है.
सीधे तौर पर ऐसा भी कह सकते हैं कि अगर किसी जीव का प्रेत भटक रहा है और आपको इसका अहसास हो रहा है तो इस निमित्त श्राद्ध किया जाता है.
नारायण बलि का सीधा अर्थ है, भगवान विष्णु (नारायण) और उनके पार्षदों का आवाहन कर, पूजन-तर्पण द्वारा उस आत्मा को उनके चरणों में समर्पित करना. यह आत्मा को भगवान की शरण में सौंप देने का एक मार्ग है. इस विधान के बाद आत्मा प्रेतत्व से मुक्त होकर सद्गति प्राप्त करती है.
त्रिपिंडी श्राद्ध और नारायण बलि का अंतर
अगर मृत आत्मा का नाम और गोत्र पता हो तो उसके लिए नारायण बलि या पार्वण श्राद्ध किया जाता है. अगर आत्मा का नाम-गोत्र पता न हो, या फिर बहुत प्राचीन पूर्वजों की आत्माओं का उद्धार करना हो, तब ‘त्रिपिंडी श्राद्ध’ किया जाता है. इसमें भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्मा और भगवान शंकर को समर्पित तीन पिंड बनाए जाते हैं और तर्पण किया जाता है. इसके जरिये उन सभी अज्ञात आत्माओं की सद्गति के लिए प्रार्थना की जाती है. इस प्रकार जैसे त्रिपिंडी श्राद्ध का महत्व है, वैसे ही नारायण बलि भी आत्मा की मुक्ति के लिए अत्यंत प्रभावी है.
कब करना चाहिए नारायण बलि?
नारायण बलि केवल मृत्यु के बाद शांति के लिए ही नहीं, बल्कि परिवार के जीवन में आ रही अनेक समस्याओं को दूर करने के लिए भी जरूरी माना गया है.
शास्त्रों में कहा गया है कि अगर
1. घर में बार-बार रोग बढ़ें और धन व्यर्थ खर्च हो.
2. संतान कुमार्गगामी हो जाए.
3. विवाह में बाधाएं आएं.
4. पति-पत्नी में निरंतर कलह और झगड़े हों.
5. घर में अशांति और अज्ञात भय का वातावरण हो.
6. अचानक आर्थिक रुकावटें आने लगें.
तो पितरों की शांति और आत्माओं की सद्गति के लिए नारायण बलि या श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए.
श्राद्ध कर्म का सामान्य महत्व
वैदिक परंपरा में यह नियम है कि किसी भी बड़े शुभ कार्य से पहले नांदीमुख श्राद्ध किया जाए. इसका आशय यह है कि जब तक हमारे पितर तृप्त और प्रसन्न नहीं होंगे, तब तक हमारे जीवन में पूर्ण सुख और शांति संभव नहीं है. श्राद्ध-तर्पण जीवन का अभिन्न अंग है. गृहस्थ जीवन को सुखमय बनाने के लिए हर गृहस्थ को समय-समय पर इन कर्मों का पालन करना चाहिए.
शास्त्रों में यह वर्णन है कि कुछ आत्माएं मृत्यु के बाद भी मोहवश इस संसार में ही भटकती रहती हैं. ये आत्माएं अपने ही संबंधियों के शरीरों और मन-मस्तिष्क पर प्रभाव डालती हैं. जो परिवार में रोग, कलह, टकराव, तनाव और अशांति का कारण बनती हैं.
ऐसी आत्माएं अपनी मुक्ति चाहकर भी प्राप्त नहीं कर पातीं. वे व्यक्ति को धार्मिक और शास्त्रोक्त पूजन से दूर करने का प्रयास करती हैं. इनका समाधान केवल शास्त्रों में वर्णित विधि से संभव है, और इसके लिए ‘नारायण बलि’ सबसे प्रभावी उपाय माना गया है. इस पूजन द्वारा आत्मा को भगवान नारायण की शरण में समर्पित कर दिया जाता है और वह प्रेतत्व से मुक्त होकर दिव्य लोक की ओर प्रस्थान करती है.
नारायण बलि केवल एक कर्मकांड भर नहीं है, बल्कि यह जीवन और मृत्यु के बीच संबंध को समझने का एक गहरा प्रयास है. यह न केवल मृत आत्माओं को मुक्ति दिलाता है बल्कि जीवित परिवारजनों को भी शांति और सुख का अनुभव कराता है. ऐसे में गृहस्थ को अपने पूर्वजों की स्मृति में, उनकी शांति के लिए और अपनी जीवन यात्रा को सहज बनाने के लिए समय-समय पर नारायण बलि, त्रिपिंडी श्राद्ध और तर्पण जैसे कर्म करने चाहिए.
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