पूरे देश में होने वाले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद, 50 करोड़ से ज्यादा वोटर्स को किसी भी अतिरिक्त दस्तावेज़ की जरूरत नहीं पड़ेगी. इसका कारण यह है कि उनके नाम पहले से ही मतदाता सूची में दर्ज हैं. एक जुलाई, 1987 से पहले जन्म होने की अंडरटेकिंग देने वाले मतदाताओं को कोई अन्य दस्तावेज लगाने की जरूरत नहीं होगी.
निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के मुताबिक, भारत के आधे से ज्यादा वोटर्स इस नए प्रोसेस के दायरे में आएंगे. इन मतदाताओं को कोई भी दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि उनका नाम उनके राज्य में आयोजित पिछली विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की मतदाता सूची में शामिल होगा.
ज्यादातर राज्यों में मतदाता सूची का आखिरी एसआईआर 2002 से 2008 के बीच हुआ था, जिसे इस प्रक्रिया के लिए कट-ऑफ माना जाएगा.
राज्यों की तैयारी…
अधिकारियों ने बताया कि निर्वाचन आयोग जल्द ही अखिल भारतीय एसआईआर को लागू करने की तारीख तय करेगा. राज्यों में मतदाता सूचियों को सुधारने करने का काम इस साल के अंत से पहले शुरू हो सकता है. पिछले हफ्ते ही हुए एक सम्मेलन में, राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ) को अपने-अपने राज्यों में पिछली एसआईआर के बाद प्रकाशित मतदाता सूची तैयार रखने को कहा गया है.
सुर्खियों में बिहार का SIR
बिहार में आखिरी एसआईआर 2003 में हुआ था. इसके मुताबिक, अभी इसमें सूचीबद्ध कुल मतदाताओं के 60%, यानी 4.96 करोड़ मतदाताओं को अपनी जन्मतिथि या जन्मस्थान स्थापित करने के लिए मतदाता सूची के प्रासंगिक भाग को छोड़कर कोई सहायक दस्तावेज देने की जरूरत नहीं है. बिहार में इस प्रक्रिया को लेकर राजनीतिक विवाद भी हो चुका है, जहां विपक्षी दलों ने दस्तावेजों की कमी के कारण लोगों के मताधिकार से वंचित होने की आशंका जताई थी.
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अन्य मतदाताओं के लिए नियम
केवल 40% मतदाताओं को ही अपनी जन्मतिथि या स्थान की पुष्टि के लिए सूचीबद्ध 12 दस्तावेजों में से कोई एक प्रस्तुत करना होगा. इसके अलावा, वोटर बनने या राज्य के बाहर से आने वाले कुछ आवेदकों के लिए एक अतिरिक्त ‘घोषणा पत्र’ भी शुरू किया गया है. ऐसे लोगों को यह शपथपत्र देना होगा कि उनका जन्म 1 जुलाई, 1987 से पहले भारत में हुआ था.
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