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    …तो देवी लक्ष्मी तुरंत चली जाती हैं घर से, श्राद्ध पक्ष में कर रहे हैं ये गलतियां तो संभल जाएं

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    श्राद्ध पक्ष का समय चल रहा है. इस समय को लोग पितरों के तर्पण और पिंडदान का समय मानते हैं, लेकिन पितृपक्ष सिर्फ पितरों के पूजन का ही समय नहीं होता है, बल्कि यह समय देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने का भी होता है. पुराणों में देवी लक्ष्मी धन की देवी कहा गया है.

    श्राद्धपक्ष के दौरान ही महालक्ष्मी व्रत का अनुष्ठान भी किया जाता है. ऐसे में उनकी हृदय से आराधना करके देवी लक्ष्मी की कृपा पाई जा सकती है, लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात ये है कि देवी का एक नाम चंचला भी है और वह कभी भी किसी भी एक स्थान पर बहुत दिनों तक नहीं ठहरती हैं. 

    इसलिए कार्य और व्यवहार में जरा भी कुछ गलत हुआ तो वह उस स्थान पर से चली जाती है.

    महाभारत में है इस प्रसंग का वर्णन 
    महाभारत में इस विषय को लेकर एक जरूरी प्रसंग भी सामने आता है. इसमें देवराज इंद्र और महालक्ष्मी संवाद का वर्णन किया गया है. देवी लक्ष्मी इस बातचीत में इंद्र देव को बताती हैं वह किन लोगों पर प्रसन्न होकर कृपा करती हैं. महाभारत के शांति पर्व मे दिए गए प्रसंग के अनुसार कथा कुछ ऐसी है कि, एक समय जब देवी लक्ष्मी असुरों का साथ छोड़कर देवराज इंद्र के यहां निवास करने के लिए पहुंची, तब इंद्र ने देवी लक्ष्मी से पूछा कि किन कारणों से आपने दैत्यों का साथ छोड़ दिया है ? इस प्रश्न के उत्तर में देवी लक्ष्मी ने देवताओं के उत्थान और साथ ही दानवों के पतन की वजह बताई थी.

    कहीं आप भी तो नहीं कर रहे ये गलतियां?
    लक्ष्मीजी ने बताया जो लोग नियम-अनुशासन से व्रत-उपवास करते हैं. हर दिन सूर्योदय से पूर्व बिस्तर छोड़ देते हैं, रात को सोते समय दही का सेवन नहीं करते हैं. सुबह-सुबह घी और पवित्र वस्तुओं का दर्शन किया करते हैं. इन सभी बातों का ध्यान रखने वाले लोगों के यहां लक्ष्मी यानी मैं हमेशा ही निवास करती हूं.

    पूर्व काल मे सभी दानव भी इन नियमों का पालन करते थे. इस कारण मैं उनके यहां निवास कर रही थी. अब सभी दानव अधर्मी हो गए हैं. इस कारण मैंने उनका त्याग कर दिया है. आगे महालक्ष्मी ने इंद्र को बताया कि जो पुरुष दानशील, बुद्धिमान भक्त,  सत्यवादी होते हैं, उनके घर में मेरा वास होता है. जो लोग ऐसे कर्म नहीं करते हैं. मैं उनके यहां निवास नहीं करती हूं.

    जहां, पितरों का तर्पण हो वहां रहती हैं देवी
    इंद्र के पूछने पर महालक्ष्मी ने कहा कि जो लोग धर्म का आचरण नहीं करते हैं. जो लोग पितरों का तर्पण नहीं करते हैं. जो लोग दान-पुण्य नहीं करते हैं. उनके यहां मेरा निवास नहीं होता है. महाभारत मे महालक्ष्मी ने बताया है कि जहां मूर्खों का आदर होता है. वहां उनका निवास नहीं होता. जिन घरों मे व्यक्ति दुराचारी यानी बुरे चरित्र वाले हो.

    जहां लोग उचित ढंग से उठने बैठने के नियम नहीं अपनाते हैं. जहां साफ-सफाई नहीं रखी जाती हैं. वहां लक्ष्मी का निवास नहीं होता है. देवी लक्ष्मी ने बताया कि वह स्वयं धनलक्ष्मी, भूति, श्री, श्रद्धा, मेधा, संनति, विजिति, स्थिति, धृति, सिद्धि, समृद्धि, स्वाहा, स्वधा, नियति तथा स्मृति हैं. धर्मशील पुरुषों के देश में, नगर में, घर में सदैव निवास करती हैं. लक्ष्मी उन्हीं लोगों पर कृपा बरसाती हैं जो युद्ध मे पीठ दिखाकर नहीं भागते हैं. शत्रुओं को बाहुबल से पराजित कर देते हैं. शूरवीर लोगों से लक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं.

    जिन घरों मे भोजन बनाते समय पवित्रता का ध्यान नहीं रखा जाता है. जहां जूठे हाथों से ही घी को छू लिया जाता है. वहां मैं निवास नहीं करती हूं. लक्ष्मीजी ने बताया जिन घरों में लोग बुजुर्गों पर, नौकरों की तरह हुक्म चलाते हैं. उन्हें परेशान करते हैं. अनादर करते हैं मैं उन घरों का त्याग कर देती हूं. यह काम स्त्रियां भी करती हैं तब तो मैं अपना सारा सौभाग्य समेट कर वहां से चली जाती हूं.

    पति-पत्नी भी न करें ये गलतियां
    जिस घर मे पति पत्नी को पत्नी अपने पति को मारते हैं. पत्नी कलहप्रिया यानी झगड़ालू होती है. पति की बात नहीं मानती. पति भी पत्नी का ध्यान नहीं रखते और अहित करते हैं. मैं उन घरों का त्याग कर देती हूं. जो लोग अपने शुभ चिंतकों के नुकसान पर हंसते हैं. उनसे मन ही मन द्वेष रखते हैं. किसी को मित्र बनाकर उसका अहित करते हैं तो मैं उन पर लोगों कृपा नहीं बरसाती हूं. ऐसे लोग सदैव दरिद्र रहते हैं.

    इसलिए सिर्फ श्राद्ध पक्ष में ही नहीं, अगर आप सामान्य दिनों में भी ऐसी ही गलतियां करते हैं तो आप कभी सुकून और संतोष का जीवन नहीं जी सकते हैं. देवी लक्ष्मी की कृपा कभी नहीं मिलती है और धन-संपदा उन्हें कभी नहीं मिल पाता है.

    —- समाप्त —-



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