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    नेपाल बना अमेरिका-चीन जंग का नया अखाड़ा? समझें- सोशल मीडिया बैन और Gen-Z की हिंसक क्रांति का पूरा गठजोड़

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    3 सितंबर 2025 को बीजिंग में चीन ने शक्ति प्रदर्शन किया. दुनिया के 26 देशों के नेता शामिल होते हैं. इन्हीं में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी शामिल दिखते हैं. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हाथ मिलाते ओली की तस्वीरें वैश्विक सुर्खियों में छा जाती हैं.

    लेकिन हैरानी की बात यह है कि चीन की इस ताक़तवर परेड के महज 5 दिन बाद नेपाल जल उठता है. सवाल उठने लगे—आख़िर नेपाल में संसद पर हमला किसने करवाया? जनता अपनी ही सरकार से इतनी नाराज़ क्यों है?

    नेपाल की सरकार ने अचानक फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और एक्स (ट्विटर) समेत 26 बड़े अमेरिकी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रतिबंध लगा दिया. वजह बताई गई कि इन कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन की शर्त पूरी नहीं की.

    लेकिन असल में यही फैसला नेपाल की युवा पीढ़ी को भड़का गया. 1995 के बाद पैदा हुई “जेनरेशन-ज़ी” यानी इंटरनेट और टेक्नोलॉजी के साथ पली-बढ़ी नई पीढ़ी सड़कों पर उतर आई. उनकी मांग है कि सरकार अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए सोशल मीडिया बैन नहीं कर सकती.

    हज़ारों युवा प्रदर्शन कर रहे हैं. कई जगहों पर हिंसा भड़क गई. संसद का गेट तोड़ने की कोशिश पर सुरक्षा बलों ने फायरिंग कर दी. अब तक दर्जन भर से ज़्यादा छात्रों की मौत हो चुकी है.

    प्रदर्शनकारियों द्वारा फेंके गए पत्थरों से संसद के सामने की सड़क ढक गईं (Photo: Reuters)

    US के नुकसान से चीन की चांदी

    यहां गौर करने वाली बात यह है कि जहां अमेरिकी कंपनियां नेपाल में बैन हुईं, वहीं चीन का ऐप टिकटॉक लगातार धड़ल्ले से चल रहा है. सरकार के फैसले के बाद टिकटॉक नेपाल में एकमात्र बड़ा प्लेटफार्म बचा है. इससे सरकार को विरोध की तस्वीरों और आवाज़ को अपने हिसाब से नियंत्रित करने का मौक़ा मिल रहा है.

    यह भी पढ़ें: ‘हामी नेपाल’… वो NGO जिसने पड़ोसी देश में प्रदर्शन को दिया बढ़ावा, यूं ही नहीं अचानक हिंसक हो गए Gen-Z प्रदर्शनकारी

    जितनी ज़्यादा अशांति नेपाल में होगी, केपी ओली सरकार चीन पर उतनी ही ज़्यादा निर्भर होती जाएगी. यानी नेपाल में अशांति का सीधा फ़ायदा बीजिंग को मिल रहा है.

    भ्रष्टाचार और असंतोष

    नेपाल में पहले भी युवाओं ने राजशाही की बहाली की मांग को लेकर ज़बरदस्त प्रदर्शन किया था. तब भी सोशल मीडिया ने आंदोलन को हवा दी थी. माना जा रहा है कि उसी अनुभव से सबक लेते हुए सरकार ने इस बार सोशल मीडिया को ही बंद कर दिया.

    जब प्रदर्शनकारी संसद के पास इकट्ठा हुए (Photo: Reuters)

    युवाओं का आरोप है कि सत्ता पर काबिज़ पार्टियां—चाहे सत्ताधारी हों या विपक्षी—भ्रष्टाचार में एक-दूसरे की मदद कर रही हैं. यही वजह है कि नौजवान अब न केवल सोशल मीडिया बैन के खिलाफ़ बल्कि बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर भी सरकार से भिड़ गए हैं.

    राजनीतिक अस्थिरता और चीन का बढ़ता दबदबा

    नेपाल में 240 साल पुरानी राजशाही 2008 में खत्म कर दी गई थी. इसके बाद संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य बना. लेकिन तब से लेकर अब तक 17 साल में 11 सरकारें बदल चुकी हैं. राजनीतिक अस्थिरता बनी रही और इस बीच चीन का प्रभाव लगातार बढ़ता गया.

    भारत से घनिष्ठ संबंध रखने वाली राजशाही के बाद अब नेपाल पर चीन का असर साफ़ देखा जा सकता है. यही वजह है कि जब भी नेपाल में असंतोष भड़कता है, उसकी गूंज बीजिंग और वॉशिंगटन तक सुनाई देती है.

    संसद के पास पुलिस के जवान पहरा देते दिखे (Photo: Reuters)

    यह भी पढ़ें: नेपाल ही नहीं दुनिया के इन देशों में भी लग चुकी हैं सोशल मीड‍िया पर बंद‍िशें, अमेर‍िका में TikTok पर अब भी बहस जारी

    बड़ा सवाल

    अब सवाल यह है—क्या नेपाल में सोशल मीडिया बैन का मकसद सिर्फ़ रजिस्ट्रेशन नियम लागू करना था? या फिर यह जनभावनाओं को दबाने और विरोध की आवाज़ को कंट्रोल करने की एक बड़ी साज़िश है?

    नेपाल में शुरू हुआ “जेनरेशन-ज़ी रिवोल्यूशन” सिर्फ़ सोशल मीडिया का मामला नहीं है. यह युवाओं की उस पीढ़ी का विद्रोह है जो अब कह रही है— “अब देश हम चलाएंगे.”

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