भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) की शुरुआत 1 जुलाई 2017 को एक ऐतिहासिक कर सुधार के रूप में हुई थी. सरकार ने GST को लागू करने के साथ-साथ उपभोक्ताओं को कर कटौती और इनपुट टैक्स क्रेडिट यानि कि वस्तु के निर्माण में लगने वाला खर्च का लाभ सुनिश्चित करने के लिए मुनाफाखोरी रोधी (anti-profiteering) प्रावधानों को शामिल किया था. हालांकि, 1 अप्रैल 2025 को इन प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया, क्योंकि सरकार का मानना था कि इस तरह के मामले कम हो गए थे. लेकिन रोजमर्रा के जीवन में उपभोक्ता अक्सर देखते हैं कि कॉरपोरेट्स इन छूटों का लाभ उठाकर कीमतें कम करने के बजाय अपने मुनाफे को बढ़ाते हैं. जिसके चलते सरकार के जीएसटी कम करने के फैसले का असली लाभ कंपनियां ही उठाती हैं. आम लोगों तक सरकार के फैसले का कोई लाभ नहीं पहुंचता.
GST लागू होने के बाद, सरकार ने कर दरों में कई बार कटौती की और इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा को बढ़ाया, ताकि उपभोक्ताओं को कम कीमतों का लाभ मिले. अब एक बार फिर GST स्लैब को सरल बनाया गया, जिसमें 12% और 28% के स्लैब को हटाकर 5%, 18%, और 40% (विलासिता और हानिकारक वस्तुओं के लिए) के स्लैब लागू किए गए हैं. इसके अलावा, दूध, पनीर, पैकेज्ड खाद्य पदार्थ, दवाइयां, और छोटे वाहनों जैसे रोजमर्रा के उत्पादों पर कर दरें कम की गईं. सरकार का दावा है कि ये सुधार उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति को बढ़ाएंगे और अर्थव्यवस्था को 6.5-7% की वृद्धि की ओर ले जाएंगे. पर सवाल उठता है कि बिना किसी निगरानी व्यवस्था के जीएसटी दरों का असली लाभ आम आदमी तक कैसे मिलेगा?
मुनाफाखोरी रोकने की अब तक क्या व्यवस्था थी
मुनाफाखोरी रोधी प्रावधान (सेक्शन 171, CGST एक्ट, 2017) के तहत, व्यवसायों को कर कटौती या ITC के लाभ को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना अनिवार्य था. राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण (NAA) को इसकी निगरानी के लिए स्थापित किया गया था, जो 2017 से 2022 तक सक्रिय रहा. इस दौरान NAA ने कई कंपनियों, जैसे हिंदुस्तान यूनिलीवर (HUL), ज्यूबिलेंट फूडवर्क्स, और मैकडॉनल्ड्स के खिलाफ कार्रवाई की. इसके बावजूद 2022 में NAA को समाप्त कर दिया गया, और 1 अक्टूबर 2024 से मुनाफाखोरी के मामलों को GST अपीलीय ट्रिब्यूनल (GSTAT) को सौंप दिया गया. 1 अप्रैल 2025 से मुनाफाखोरी रोधी शिकायतों को स्वीकार करना बंद कर दिया गया, क्योंकि सरकार का मानना था कि GST प्रणाली स्थिर हो चुकी है और ऐसे मामले कम हो गए हैं.
लेकिन यह धारणा कि मुनाफाखोरी के मामले खत्म हो गए हैं, उपभोक्ताओं के रोजमर्रा के अनुभवों से मेल नहीं खाती है. कई उदाहरणों से पता चलता है कि कॉरपोरेट्स ने कर छूट का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के बजाय अपने मुनाफे को बढ़ाया है.
मिंट की एक रिपोर्ट बताती है कि केरल के वित्त मंत्री के.एन. बालगोपाल और उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने हाल ही में हुई जीएसटी काउंसिल की बैठकों में मुनाफाखोरी पर चिंता जता चुके हैं. जीएसटी काउंसिल की अध्यक्ष और केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ इस मामले में चर्चा भी हो चुकी है. और प्रदेशों के वित्त मंत्रियों का भी मानना है कि टैक्स में कटौती होते ही आमतौर पर कंपनियां अपने उत्पादों के दाम बढ़ा देती हैं. जिससे इसका फायदा आम आदमी को नहीं मिल पाता है.
जीएसटी कम हुआ पर नहीं घटे रोजमर्रा के जीवन में काम आने वाली वस्तुओं का दाम
जीएसटी की दरें पहले भी कई बार कम की गईं. पर आम लोगों को कई बार उसका राहत नहीं मिला. यही कारण रहा कि सरकार में शामिल बहुत से लोगों का मानना था कि जब जीेएसटी दरें कम होने का फायदा आम लोगों तक नहीं पहुंचना है तो फिर इसे कम करने की जरूरत ही क्या है. कम से कम सरकार की आमदनी तो हो रही है . कई बार जीएसटी की दरें कम की गईं पर कॉरपोरेट मुनाफाखोरों ने उसका लाभा आम आदमी तक नहीं पहुंचने दिया.
नेस्ले इंडिया: 2019 में एनएए ने नेस्ले पर 90 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया, क्योंकि कंपनी ने जीएसटी दर कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचाया. नेस्ले ने मैगी और कॉफी की कीमतों में कमी नहीं की. कंपनी ने इसे दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन यह मामला मुनाफाखोरी के क्लासिक उदाहरण के रूप में जाना जाता है.
हिंदुस्तान यूनिलीवर (एचयूएल): 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद, कई उत्पादों पर कर दरों को 28% से घटाकर 18% या 12% किया गया. एचयूएल पर आरोप लगा कि उसने साबुन, शैंपू, और अन्य एफएमसीजी उत्पादों की कीमतों में कमी नहीं की, बल्कि आधार मूल्य बढ़ाकर कर छूट का लाभ अपने पास रखा. एनएए ने एचयूएल को 380 करोड़ रुपये उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा करने का आदेश दिया, लेकिन कंपनी ने इसे दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी. एचयूएल ने अंततः 119 करोड़ रुपये उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा किए, लेकिन इस प्रक्रिया में उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष लाभ नहीं मिला.
डोमिनोज़ पिज्जा (ज्यूबिलेंट फूडवर्क्स): रेस्तरां सेवाओं पर जीएसटी को 18% से घटाकर 5% किया गया, लेकिन ज्यूबिलेंट फूडवर्क्स पर आरोप लगा कि उसने पिज्जा की कीमतों में कमी नहीं की. एनएए ने कंपनी पर 41 करोड़ रुपये की मुनाफाखोरी का आरोप लगाया. कंपनी ने दावा किया कि लागत वृद्धि के कारण कीमतें कम नहीं की जा सकीं, लेकिन उपभोक्ताओं ने इसे मुनाफाखोरी के रूप में देखा. इस मामले में भी हाई कोर्ट ने एनएए के आदेश पर रोक लगा दी, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ नहीं मिला.
मैकडॉनल्ड्स: 2017 में रेस्तरां सेवाओं पर जीएसटी कटौती के बाद, मैकडॉनल्ड्स के दक्षिण और पश्चिम भारत के फ्रेंचाइजी पर आरोप लगा कि उन्होंने कीमतें कम नहीं कीं. एनएए ने इसकी जांच की और पाया कि कर छूट का लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचा. उपभोक्ताओं ने शिकायत की कि बर्गर और अन्य उत्पादों की कीमतें वही रहीं, जबकि कर दरें कम हो गई थीं.
इसी तरह लॉरियल पर 2022 में एनएए ने 186 करोड़ रुपये की मुनाफाखोरी का आरोप लगाया, होंडा के एक डीलर पर आरोप लगा कि उन्होंने कारों पर जीएसटी लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचाया, लाइफस्टाइल रिटेलर पर आरोप लगा कि उन्होंने कपड़ों और अन्य उत्पादों पर जीएसटी लाभ नहीं पहुंचाया .एबॉट हेल्थकेयर पर 96 लाख रुपये की मुनाफाखोरी का आरोप लगा, क्योंकि दवाइयों पर जीएसटी कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचा . सैमसंग और फिलिप्स कंपनियों पर उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों पर जीएसटी लाभ न पहुंचाने का आरोप लगा .रियल एस्टेट कंपनियों पर भी आरोप लगा किजीएसटी दरों को 12% से घटाकर 5% किया गया पर उसका लाभ नहीं मिला. इन सभी कंपनियों का लगभग एक ही बहाना था कि लागत बढ़ गई है.
क्यों नहीं पहुंचता है उपभोक्ताओं तक लाभ?
भारत में मुनाफाखोरी की गणना के लिए कोई एकसमान पद्धति नहीं है. NAA ने मामले-दर-मामले अलग अलग जांच की, जिससे व्यवसायों को यह तर्क देने का मौका मिला कि लागत वृद्धि के कारण कीमतें कम नहीं की जा सकीं. ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया जैसे देशों में नेट प्रॉफिट मार्जिन या नेट डॉलर मार्जिन जैसी स्पष्ट पद्धतियां थीं, जो भारत में इस तरह के नियम बने ही नहीं.
GST लाभ को उपभोक्ताओं तक पहुंचाना इसलिए जटिल हैं क्योंकि किसी उत्पाद में कई घटकों पर अलग-अलग कर दरें लागू होती हैं, जिससे अंतिम कीमत में कमी को ट्रैक करना कठिन होता है.
उपभोक्ताओं को यह जानकारी नहीं होती कि उन्हें कर कटौती का लाभ मिलना चाहिए. ऑस्ट्रेलिया में GST लागू होने से पहले एक साल तक उपभोक्ता शिक्षा अभियान चलाया गया था, लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ.
मुनाफाखोरी रोधी प्रावधानों को खत्म करने का क्या यह सही समय था?
मुनाफाखोरी रोधी प्रावधानों को समाप्त करने का सरकार का तर्क था कि GST प्रणाली अब स्थिर हो चुकी है, और उपभोक्ता शिकायतें कम हो गई हैं. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय समय से पहले लिया गया.
वह भी तब जब इतने मामले सामने आए थे. एनएए को और मजबूत करने के बजाए उसको खत्म करना कहीं से भी सही फैसला नहीं कहा जा सकता. GST 2.0 के तहत बड़े पैमाने पर कर कटौती की गई, जिसके बाद उपभोक्ताओं को कीमतों में कमी की उम्मीद है. लेकिन मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण के अभाव में, कंपनियों पर इस लाभ को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने का कोई सख्त दबाव नहीं होगा. कॉर्पोरेट पर पहले एनएए का कुछ डर भी रहता था , पर अब तो बिल्कुल खुला खेल फरुखाबादी होगा.
एंटी मुनाफाखोरी कानून के बिना, उपभोक्ताओं के पास शिकायत का कोई प्रभावी तंत्र नहीं है. उपभोक्ता जागरूकता की कमी इस समस्या को बढ़ाती है. सरकार को GSTAT को मजबूत करना होगा.जीएसटी अपीलीय ट्रिब्यूनल भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) से संबंधित विवादों के समाधान के लिए स्थापित एक वैधानिक निकाय है.
इसे केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 के तहत बनाया गया है. GSTAT का मुख्य उद्देश्य जीएसटी कानूनों, कर निर्धारण, और अनुपालन से जुड़े अपीलों को सुनना और निपटाना है. यह व्यवसायों और करदाताओं को जीएसटी अधिकारियों के फैसलों के खिलाफ अपील करने का मंच प्रदान करता है.
2024 में मुनाफाखोरी रोधी मामलों को भी GSTAT को सौंपा गया, लेकिन इसकी प्रभावशीलता सीमित रही. यह उच्च न्यायालयों से पहले विवादों को हल करने का एक किफायती और तेज तरीका बन सकता है. पर इसके लिए बहुत से सुधार करने होंगे.
क्या सरकार एंटी मुनाफाखोरी कानून फिर से लाने की तैयारी में थी ?
बिजनेस स्टैंडर्ड की अगस्त महीने में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार सरकार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) व्यवस्था में प्रस्तावित सुधार के बाद एंटी मुनाफाखोरी-रोधी प्रावधानों को कुछ समय के लिए फिर से लागू करने पर विचार कर रही है. बीएस ने अपने सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि इससे यह सुनिश्चित होगा कि कारोबारी अप्रत्यक्ष कर का फायदा उपभोक्ताओं को अवश्य पहुंचाएं.बीएस लिखता है कि सरकार दो साल के लिए मुनाफाखोरी-रोधी उपायों को लागू करने की योजना बना रही है. ताकि कारोबारी दरों में कमी के लाभ को अपनी जेब में न रख सकें.
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