अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो को भी पिछले कुछ दिनों से अपने बॉस की तरह दिन में ही भारत के सपने आ रहे हैं. हर दिन नवारो कोई उलजुलूल बात भारत के बारे में बोल दे रहे हैं, जिसका मतलब साफ है कि ट्रंप के स्वामिभक्त भारत से बुरी तरह चिढ़े बैठे हैं. भारत को रूस से तेल खरीदने पर टैरिफ लगाकर भी नहीं रोक सकने का अमेरिकी राष्ट्रपति और उनके मातहतों को मलाल होना स्वाभाविक है. दोनों छटपटा रहे हैं कि अमेरिका जैसे महान देश की धमकी का थोड़ा भी असर भारत पर नहीं हुआ. शायद इसलिए ही अब अमेरिका भारत में जातिगत आग भड़काने का सपना देख रहा है.
अमेरिका की यह नीति पुरानी रही है. अमेरिका का समर्थन न करने वाले शासकों को कोपभाजन बनना पड़ा है. अमेरिका अपने विरोधी राष्ट्राध्यक्षों को येन केन प्रकाणेन सत्ता से हटा देता रहा है. पर भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वो चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा है .इसलिए अब नए तरीके से भारत को नुकसान पहुंचाने की बात सोची जा रही है. अब भारत में जातिगत तनाव फैलाने का कुचक्र रचा जा रहा है.जाहिर है कि उसे पता है कि अगर धर्म और जाति के नाम पर भारत में कुछ भी उसे भारत का विपक्ष हाथों हाथ लेगा ही. एक बात और है अमेरिका में नवारों जैसे लोग जो बार-बार कह रहे हैं कि रूस तेल खरीदने से भारत के कुछ खास लोगों को ही फायदा पहुंचा है ये भी पूरी तरह गलत है. भारत को सामाजिक और आर्थिक संरचना को बिना जाने बूझे इस तरह की टिप्पणियां ट्रंप प्रशासन को मूर्ख ही साबित कर रही हैं.
नवारों ने क्या कहा
नवारो ने कहा है कि रूस से तेल खरीद का फायदा भारत का सिर्फ एक छोटा अभिजात्य तबका (ब्राह्मण) उठा रहा है. उन्होंने कहा कि रूस से तेल खरीद के जरिए मुनाफा ब्राह्मण कमा रहे हैं, जबकि इसके चलते होने वाला नुकसान पूरे देश के लोग उठा रहे हैं. उन्होंने एक बार फिर ये भी दोहराया कि ट्रंप का भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने का फैसला सही है.
फॉक्स न्यूज के साथ एक साक्षात्कार में नवारो ने कहा कि भारतीय रिफाइनर रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीद रहे हैं. उसे प्रोसेस करने के बाद महंगे दामों पर निर्यात कर रहे हैं. खासतौर से भारत के ब्राह्मण अपने देश के लोगों की कीमत पर मुनाफाखोरी कर रहे हैं. वहीं रूस इस पैसे का इस्तेमाल यूक्रेन युद्ध में कर रहा है. ऐसे में हमें इसे रोकना होगा.
नवारों को शायद भारत की सामाजिक स्थिति का पता नहीं है
पीटर नवारो का बयान, जिसमें उन्होंने कहा कि ब्राह्मण रूसी तेल से लाभान्वित हो रहे हैं. नवारों के बयान से यह स्पष्ट है कि ट्रंप प्रशासन को भारत की सामाजित संरचना के बारे में बिल्कुल भी पता नहीं है. अगर यह मान भी लिया जाए कि भारत में रूसी तेल का फायदा समाज के कुछ खास लोग उठा रहे हैं तो भी यह सही नहीं है. प्राचीन हिंदू समाज की संरचना ब्राह्मण अभिभावक वर्ग में जरूर रखे गए पर धन संपत्ति से उन्हें दूर रखा गया. प्राचीन काल से ही भारत का पूरा अर्थतंत्र बनिया समाज के हाथ में रहा है.शताब्दियों बाद इस संरचना में बदलाव जरूर हो रहा है पर अभी भारत का अर्थतंत्र विशेषकर ऊर्जा और व्यापार क्षेत्र वैश्य समुदाय के हाथों में केंद्रित है. भारत में तेल रिफाइनिंग और आयात का नियंत्रण मुख्य रूप से निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज, ओएनजीसी, और आईओसी के हाथ में है. रिलायंस इंडस्ट्रीज, जिसका नेतृत्व मुकेश अंबानी वैश्य समुदाय से ही आते हैं. भारत के सभी बड़े पूंजीपति वैश्य ही हैं. अंबानी परिवार ने रूसी तेल को रिफाइन कर पेट्रोल, डीजल, और अन्य उत्पाद बनाए, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचे गए, जिससे उन्हें भारी मुनाफा हुआ. इसी तरह, नायरा एनर्जी, जो रूस के रोसनेफ्ट की सहायक कंपनी है, भी रूसी तेल से लाभान्वित हुई, और इसका संचालन वैश्य समुदाय से जुड़े व्यवसायियों द्वारा किया जाता है. ओएनजीसी और आईओसी जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी रूसी तेल आयात में शामिल रहे, लेकिन इनका लाभ सीधे सरकार और उपभोक्ताओं को पहुंचा, न कि किसी विशेष जाति को.
नवारो के ब्राह्मण शब्द का अर्थ क्या ‘बोस्टन ब्राह्मण’ से है?
एक और सवाल उठता है कि क्या नवारो ने ब्राह्मण शब्द का यूज जाति के रूप में नहीं किया? भारत में कुछ लेफ्ट लिबरल लोगों का कहना है कि नवारो ने इस शब्द का इस्तेमाल इलिट लोगों के लिए किया. अमेरिका में ‘बोस्टन ब्राह्मण’ शब्द 19वीं शताब्दी में अमेरिकी फिजिशियन और कवि ओलिवर वेंडेल होम्स द्वारा अपने उपन्यास में गढ़ा गया था, जो बोस्टन के धनी, शिक्षित और कुलीन श्वेत एंग्लो-सैक्सन प्रोटेस्टेंट परिवारों के समूह को संदर्भित करता था. ये परिवार शुरुआती अंग्रेजी उपनिवेशवादियों के वंशज थे, जिन्होंने व्यापार और उद्योग के माध्यम से पैसा कमाया और सामाजिक प्रभाव हासिल किया.
ऐसा हो सकता है, पर ऐसा है नहीं. नवारो ने कहा … You got Brahmins profiteering at the expense of the Indian people. तो उनका इशारा ब्राह्मण समुदाय की ओर था, जिसे वे रूसी तेल सौदों से लाभान्वित होने वाले एलिट समूह के रूप में देख रहे थे. यह बयान भारतीय समाज की जातिगत संरचना को शामिल करता है, जहां ब्राह्मणों को परंपरागत रूप से उच्च जाति माना जाता है और उन्हें आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक शक्ति के केंद्र के रूप में देखा जाता है .
निश्चित तौर पर पीटर नवारो की ये भाषा सिर्फ भारत के रूसी तेल खरीदने के लिए नहीं है, बल्कि ये भारतीय समाज के भीतर जातीय विभाजन को भड़काना के लिए होगा.नोवारो की भाषा भारत में जातिगत संरचना पर हमला करने की हो सकती है. क्योंकि वो समझते हैं कि हिंदू -मुसलमान करने में देश की सत्ताधारी पार्टी को ही फायदा होने वाला है .
इसलिए वो भारतीय विपक्ष के जाति जनगणना जैसे मुद्दे को हवा देने की नियत से जाति वाला एंगल उठाना चाहते हैं. ऐसा हम नहीं अमेरिकी इंटेलेक्चुअल्स का भी कहना है.
अमेरिकी थिंक टैंक CNAS के इंडो-पैसिफिर एनालिस्ट डेरेक जे ग्रॉसमैन ने पीटर नवारो के इस बयान पर कहा है कि ‘भारत में जातिगत अशांति को बढ़ावा देना कभी भी अमेरिकी विदेश नीति नहीं होनी चाहिए’
सीनियर जर्नलिस्ट अभिजीत मजूमदार ने पीटर नवारो के बयान पर लिखा है कि ट्रंप प्रशासन भारत की जातिगत दरारों का फायदा उठाने की कोशिश में डीप स्टेट-कम्युनिस्ट-इस्लामिस्ट की रणनीति अपना रहा है. द स्किन डॉक्टर नाम का एक्स अकाउंट लिखता है कि ‘निश्चित तौर पर, उनके बीच का कोई आत्म-घृणा करने वाला कोई भारतीय, उन्हें भारत की कमजोरियों पर हमला करने के लिए गाइड कर रहा है, या फिर वे उन लोगों के साथ मिले हुए हैं जो जातिगत युद्धों को बढ़ावा देकर भारत में सत्ता हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं या हो सकता है कि दोनों ही बातें हों.
रूसी तेल खरीदने में भारत के आम लोगों को कम फायदा नहीं हुआ है
2022 से पहले, भारत का रूसी तेल आयात नगण्य था, लेकिन युद्ध के बाद यह 35-40% तक पहुंच गया. वैश्विक बाजार में रूसी तेल डिस्काउंटेड रेट पर उपलब्ध था. यदि भारत रूसी तेल आयात नहीं करता, तो उसे मध्य पूर्व से अधिक महंगा तेल खरीदना पड़ता, जो घरेलू ईंधन की कीमतों को बढ़ा सकता था. यह ऊर्जा सुरक्षा आम जनता को लाभ पहुंचाती है. इससे पेट्रोल, डीजल, और अन्य ईंधन की आपूर्ति निर्बाध बनी रही. यदि आपूर्ति बाधित होती, तो परिवहन, कृषि, और उद्योग जैसे सेक्टर प्रभावित होते, जिससे रोजगार और उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती थीं.
2022-2023 के दौरान, वैश्विक तेल की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गईं, जिससे कई देशों में मुद्रास्फीति बढ़ीं पर भारत इससे अछूता रहा. रूसी तेल 60-70 डॉलर प्रति बैरल की दर पर उपलब्ध था, जबकि वैश्विक बाजार में कीमतें 100 डॉलर से ऊपर थीं. भारत ने सस्ता तेल खरीदकर मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सफलता पाई. सरकार ने रूसी तेल से बने उत्पादों को सस्ते में रिफाइन और निर्यात किया, जिससे विदेशी मुद्रा अर्जित की गई. जिसके चलते रुपया स्थिर रहा और विदेशों से सामान मंगाने में आसानी बनी रही. यदि रुपये का तेजी से अवमूल्यन होता तो भारत में महंगाई की मार झेलना मुश्किल होता. जिसका सीधा प्रभाव आम आदमी पर पड़ता.
रूसी तेल आयात ने भारत के रिफाइनिंग सेक्टर को बढ़ावा दिया. जो देश की औद्योगिक अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह न केवल तेल कंपनियों को लाभ पहुंचाती है, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार सृजन और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देती है. रूसी तेल आयात ने भारत के व्यापार संतुलन को सकारात्मक दिशा में प्रभावित किया. इसके चलते देश का व्यापार घाटा कम हुआ. व्यापार घाटे में कमी का अप्रत्यक्ष लाभ भी आम जनता को ही मिला. निजी वाहनों और घरेलू ऊर्जा के लिए जरूरी पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी नियंत्रित रहीं.
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