अमेरिका की ओर से भारत पर जो 50% टैरिफ लगाया गया है, उसमें आधा सिर्फ रूस के साथ कारोबारी संबंधों को लेकर है, खासकर रूसी तेल और हथियारों की खरीद से खफा डोनाल्ड ट्रंप ने ये एक्स्ट्रा टैरिफ जुर्माने के तौर पर भारत पर जड़ा है. न केवल ट्रंप, बल्कि उनके वित्त मंत्री से लेकर प्रशासन के तमाम अधिकारियों ने भारत पर मुनाफाखोरी और रूस से तेल और हथियार खरीदकर यूक्रेन युद्ध में उसकी मदद करने के आरोप लगाए हैं. हालांकि, इन आरोपों को लेकर लगातार भारत सरकार भी अपनी तस्वीर साफ कर रही है. आइए जानते हैं सरकारी सूत्र कैसे दे रहे हैं यूएस के लगाए गए आरोपों का जवाब?
सवाल- क्या भारत ने पुतिन को वित्तीय जीवनदान दिया है?
जवाब- नहीं, भारत ने एक ग्लोबल संकट को रोकने का काम किया है. रूस दुनिया के लगभग 10% तेल की आपूर्ति करता है, अगर भारत उससे तेल खरीदना बंद कर दे, तो कच्चे तेल की कीमत 200 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है. तेल का प्रवाह बनाए रखकर, भारत ने दुनिया के बाजारों को स्थिर किया है और वैश्विक नागरिकों की मदद की है. दुनिया ने भारत की भूमिका की सराहना की है.
सवाल- क्या रूसी तेल खरीद के लिए भारत अमेरिकी डॉलर का यूज कर रहा है?
जवाब- ये गलत है, भारतीय रिफाइनर रूसी तेल के लिए अमेरिकी डॉलर का उपयोग नहीं करते हैं, बल्कि खरीदारी तीसरे देशों के व्यापारियों के माध्यम से की जाती है और AED जैसी मुद्राओं से भुगतान किया जाता है. अमेरिकी सरकार ने कभी भी भारत से खरीदारी बंद करने के लिए पहले नहीं कहा, क्योंकि भारत का व्यापार पूरी तरह से वैध है और G7 व EU प्राइस कैप नियमों के तहत है.
सवाल- क्या भारत तेल की कालाबाजारी में शामिल है?
जवाब- किसी भी तरह की कोई कालाबाजारी नहीं है. रूसी तेल पर ईरानी या वेनेज़ुएला के क्रूड ऑयल की तरह प्रतिबंध नहीं हैं. इसे पश्चिमी देशों द्वारा मुनाफाखोरी रोकने के लिए बनाई गई मूल्य-सीमा प्रणाली के तहत बेचा जाता है. अगर अमेरिका रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाना चाहता, तो वह उस पर प्रतिबंध लगा देता, उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि उसे भी बाजार में रूसी तेल की जरूरत का पता है.
सवाल- क्या भारत ने मुनाफाखोरी के लिए रूसी आयात बढ़ाया?
जवाब- नहीं, भारत ने अपने नागरिकों के लिए ईंधन की कीमतें कम कीं, जबकि वैश्विक तेल की कीमतें 137 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं थीं. सरकारी तेल कंपनियों को 21,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, जबकि सरकार ने मुनाफाखोरी रोकने के लिए निर्यात पर कर लगाया. भारत के आयात ने वैश्विक स्तर पर आने वाली तेजी को रोकने का काम किया और सभी के लिए महंगाई को कम किया.
सवाल- क्या भारत रूसी तेल के लिए धन शोधन का केंद्र बना?
जवाब- ऐसा नहीं है, भारत दशकों से दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रिफाइनर रहा है. कच्चे तेल का शोधन और ईंधन का निर्यात, ग्लोबल सिस्टम इसी तरह काम करता है. रूसी कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगाने के बाद, यूरोप खुद भारतीय डीजल और जेट ईंधन पर निर्भर हो गया. यह एक स्थिरीकरण है, धन शोधन नहीं.
सवाल- क्या भारत रूस को फायदा और अमेरिकी निर्यातकों पर शुल्क लगा उन्हें दंडित कर रहा?
जवाब- व्यापार घाटे का तर्क खोखला है, क्योंकि अमेरिका दूसरे देशों चीन, ईयू और मेक्सिको के साथ कहीं ज्यादा घाटा चलाता है. भारत का 50 अरब डॉलर का घाटा तुलनात्मक रूप से बहुत छोटा है. इस बीच, भारत अरबों डॉलर के अमेरिकी विमान, एलएनजी, रक्षा उपकरण और तकनीक खरीदता है.
सवाल- क्या भारत अमेरिकी रक्षा पर मुफ्त में लाभ कमा रहा है?
जवाब- नहीं, भारत जीई के साथ मिलकर जेट इंजन का को-प्रोड्यूस कर रहा है, एमक्यू-9 ड्रोन खरीद रहा है और क्वाड व हिंद-प्रशांत रक्षा संबंधों को गहरा कर रहा है. सूत्रों के मुताबिक, भारत एशिया में चीन का सैन्य से सक्रिय रूप से मुकाबला करने वाली एकमात्र प्रमुख शक्ति है, यह अमेरिका के लिए एक सीधा रणनीतिक लाभ ही है.
सवाल- क्या यूक्रेन में शांति का रास्ता दिल्ली से होकर गुजरना चाहिए?
जवाब- बलि का बकरा बनाकर शांति नहीं लाई जा सकती. भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कूटनीति का आह्वान किया है. इस बीच, यूरोप अभी भी रूसी गैस का खरीदार है और अमेरिका अभी भी रूसी यूरेनियम का आयात कर रहा है. भारत ने जिम्मेदारी से काम किया, ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़े नियमों का पालन किया और तेल की कीमतों को बढ़ने से रोका है.
सरकारी सूत्रों ने साफ किया है कि भारत ने रूस को धन नहीं दिया, बल्कि अपने और दुनिया के लिए बाजारों को स्थिर, ईंधन को किफायती और महंगाई को नियंत्रण में रखा है. उन्होंने कहा कि भारत को बलि का बकरा बनाकर राजनीति को फायदा हो सकता है, लेकिन इससे तथ्य नहीं मिलते.
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