तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने शनिवार को प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को 30 दिनों की गिरफ्तारी पर हटाने के लिए बनाए गए तीन विधेयकों की समीक्षा के लिए गठित संयुक्त संसदीय समिति (TMC) को तमाशा करार देते हुए इसमें कोई सदस्य नामित नहीं करने का ऐलान किया. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी ने कहा कि वह इस समिति में अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजेगी.
सूत्रों के मुताबिक, समाजवादी पार्टी (SP) भी जेपीसी में अपने किसी सदस्य को भेजने के पक्ष में नहीं है. टीएमसी के राज्यसभा नेता डेरेक ओ’ब्रायन ने एक ब्लॉगपोस्ट में कहा कि टीएमसी और सपा, जो कांग्रेस के बाद संसद में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टियां हैं, उन्होंने जेपीसी में शामिल नहीं होने का फैसला किया है. उन्होंने दावा किया कि सत्तारूढ़ पार्टी की बहुमत के कारण ये समितियां पक्षपातपूर्ण हो जाती हैं.
ओ’ब्रायन ने कहा, ‘लोकसभा और राज्यसभा के अध्यक्ष मिलकर जेपीसी के अध्यक्ष का चयन करते हैं, और सदस्यों का नामांकन पार्टी की संख्या के आधार पर होता है. इससे समिति का झुकाव सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में हो जाता है.’ बता दें कि 20 अगस्त को लोकसभा में पेश किए गए ये विधेयक- संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025, केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025, और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025, गंभीर आरोपों में 30 दिनों तक हिरासत में रहने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को उनके पद से हटाने का कानूनी ढांचा प्रदान करते हैं.
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तीन विधेयकों को समीक्षा के लिए JPC में भेजा गया
इन विधेयकों को समीक्षा के लिए जेपीसी में भेजा गया है. टीएमसी ने बयान में कहा, ‘हम 130वें संविधान संशोधन विधेयक का शुरूआत में ही विरोध करते हैं और हमारे लिए जेपीसी एक तमाशा है. इसलिए हम अपने किसी सदस्य को इसमें नामित नहीं कर रहे.’ डेरेक ओ’ब्रायन ने कहा कि जेपीसी में सत्तारूढ़ पार्टी अपनी संख्या के बल पर विपक्ष के संशोधनों को खारिज कर देती है. उन्होंने आरोप लगाया कि सत्तापक्ष के सांसद खुले दिमाग के बजाय सरकार के विचारों पर मुहर लगाते हैं. विपक्षी सांसदों के पास केवल असहमति नोट दर्ज करने का विकल्प बचता है.
सरकार के हेरफेर का शिकार हो रहीं समितियां: TMC
उन्होंने 1987 के बोफोर्स मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि तब भी विपक्ष ने जेपीसी का बहिष्कार किया था, क्योंकि समिति में सत्तारूढ़ पार्टी का वर्चस्व था. टीएमसी के राज्यसभा सांसद ओ’ब्रायन ने कहा, ‘जेपीसी को मूल रूप से लोकतांत्रिक और अच्छे इरादों वाला तंत्र माना जाता था, लेकिन 2014 के बाद इसका उद्देश्य कमजोर हुआ है. अब ये समितियां सरकार द्वारा हेरफेर का शिकार हो रही हैं.’ उन्होंने इन विधेयकों को एसआईआर और वोट चोरी जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी का स्टंट करार दिया.
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मानसून सत्र के अंत में इन विधेयकों के पेश होने पर लोकसभा में हंगामा हुआ था. टीएमसी सांसदों ने गृह मंत्री अमित शाह के सामने विधेयकों की प्रतियां फाड़ दीं और कागज के टुकड़े उनकी ओर उड़ाए थे. लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सांसदों वाली जेपीसी को इन तीन विधेयकों की समीक्षा का जिम्मा सौंपा गया है. जेपीसी को नवंबर के तीसरे सप्ताह में शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र में अपनी रिपोर्ट पेश करनी है.
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