देश के बड़े समाजवादी नेता डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि सड़कें अगर खामोश रहेंगी तो संसद आवारा हो जाएगी. उनका मतलब ये था कि किसी भी लोकतंत्र को जगाए रखने के लिए जनता को खुद जागते रहना होगा. इसीलिए ये नारा याद कराके हम आपको संसद के मॉनसून सत्र के आखिरी दिन का वो हिसाब याद दिलाना चाहते हैं, जो बताता है कि 120 घंटे जिस लोकसभा को चलना था, वहां केवल 37 घंटे काम हुआ है.
मॉनसून सत्र में लोकसभा में जिन सांसदों को 120 घंटे देश के हित में चर्चा करनी थी, वहां केवल 37 घंटे काम हुआ. 83 घंटे बर्बाद कर दिए गए. यानी 31 फीसदी काम हुआ. 69 फीसदी समय मेरी सियासत-तुम्हारी सियासत के नाम हंगामे में बहा दिया गया और यही राज्यसभा में हुआ. जहां 120 घंटे के काम के नाम पर 47 घंटे काम करके सांसदों ने अपने हित के हंगामे के कारण देशहित के 73 घंटों को बर्बाद होने दिया. यानी 38 फीसदी काम किया. 62 फीसदी समय का जनता के लिए इस्तेमाल ही नहीं किया गया.
आम आदमी तो संसद से 350 किमी दूर उत्तर प्रदेश के बलिया में भी सोचता रहता है कि उम्मीद की कोई किरण तो जनप्रतिनिधि ही निकाल सकते हैं. जहां जनता का इलाज बिजली ना होने पर मोबाइल टॉर्च की रोशनी में किया जाता है. यही आम आदमी इस भरोसे में रहता है कि जिन्हें चुनकर संसद भेजा है, वही सार्थक बहस करके नई अलग जगाएंगे.
जनता के 204 करोड़ रुपए बर्बाद!
जिन्हें अलख जगानी थी, उन सांसदों ने देश की संसद के मॉनसून सत्र में क्या किया? इसका हिसाब सुनकर हंसी आएगी. लोकसभा में 83 घंटे काम नहीं हुआ. यानी 124 करोड़़ 50 लाख रुपए जनता का बर्बाद कर दिया गया. राज्यसभा में 73 घंटे की बर्बादी मतलब 80 करोड़़ रुपए. मतलब दोनों सदनों में मिलाकर 204 करोड़ 50 लाख रुपए बर्बाद कर दिए गए.
79वें स्वतंत्रता दिवस पर 79 घंटे भी नहीं चली संसद
देश जब 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाता है. तब उस दौरान मॉनसून सत्र में 79 घंटे भी संसद नहीं चलती और जिस तरह चलती है, उसका हिसाब सुनेंगे तो लगेगा कि क्या इसीलिए सांसद चुने जाते हैं. 24 जुलाई को लोकसभा 12 मिनट चली. 1 अगस्त को लोकसभा 12 मिनट चल पाई. 23 जुलाई को लोकसभा 18 मिनट चली. 4 अगस्त को 24 मिनट में लोकसभा को स्थगित करना पड़ा. 21 दिन में केवल 5 दिन लोकसभा 1 घंटे या उससे ज्यादा चली. जहां घंटाभर बैठकर सांसद काम नहीं कर सकते हैं. उन्हें ही 5-5 साल की जिम्मेदारी देकर जनता भेज देती है.
राजनीति बढ़ती गई, चर्चा घटती गई
संसद पहले ज्यादा चलती थी. धीरे-धीरे राजनीति बढ़ती गई. हंगामा बढ़ता गया. चर्चा घटती गई. भारत की पहली लोकसभा 14 सत्र में 3784 घंटे तक चली थी, अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो 1974 तक लगातार बैठकों की संख्या हर लोकसभा कार्यकाल में 100 से ज्यादा रहीं. 1974 के बाद 2011 तक केवल 5 बार ऐसा हुआ कि सदन में बैठकों की संख्या 100 के पार गई. पहली लोकसभा में 333 बिल पास हुए थे. 17वीं लोकसभा यानी पिछली लोकसभा में 2019 से 2024 के बीच 222 बिल पास हुए. इस बार संसद में हंगामे के बीच जनता के लिए जरूरी बिल पास हुए हैं, लेकिन विपक्ष की तरफ से बिना चर्चा किए हुए.
93% सांसद करोड़पति
संसद में बैठने वाले 93% सांसद करोड़पति हैं. जिन्हें अभी एक लाख 24 हजार रुपए हर महीने वेतन मिलता है. संसदीय क्षेत्र भत्ता 84 हजार रुपए होता है. दैनिक भत्ता सांसदों का 2500 रुपए है. वेतन भत्ता जोड़कर हर सांसद को हर महीने दो लाख 54 हजार रुपए जनता के पैसे से दिया जाता है.
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