टैरिफ को लेकर अमेरिका राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) लगातार भारत पर दबाव बना रहे हैं, बिना बातचीत भारत पर 50% टैरिफ (Tariff) का ऐलान कर दिया गया है, भारत अभी तक खुलकर अमेरिका का विरोध नहीं कर रहा है, क्योंकि दोनों देशों के बीच अच्छे रिश्ते हैं. लेकिन टैरिफ की वजह से रिश्तों में कड़वाहट धीरे-धीरे भर रहा है. तमाम बड़े एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि अगर अमेरिका जबर्दस्ती टैरिफ थोपता है, तो भारत को इसका आर्थिक नुकसान होगा. लेकिन फिर भारत भी दूसरे विकल्पों पर विचार करने के लिए मजबूर हो जाएगा, जिसका नुकसान अमेरिका को भी उठाना पड़ सकता है.
दरअसल, न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के सीनियर नॉन-रेजिडेंट फेलो एडवर्ड प्राइस (Edward Price) का कहना है कि भारत में 21वीं सदी का सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली देश बनने की क्षमता है. उनका मानना है कि भारत भविष्य में अमेरिका-चीन टकराव के परिणाम को तय कर सकता है. लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में वाशिंगटन इस साझेदारी को बनाने में विफल हो रहा है, यानी भारत और अमेरिका के रिश्ते खराब हो रहे हैं.
अमेरिका-भारत के रिश्ते हो रहे हैं खराब
एड प्राइस ने चेतावनी दी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति अपने हालिया फैसले से उस एकमात्र सहयोगी को दूर कर रहे हैं, जो चीन को हरा सकता है. एडवर्ड प्राइस ने CNBC को दिए इंटरव्यू में कहा है कि भारत 21वीं सदी का सबसे ‘प्रभावशाली’ देश बन सकता है, और भविष्य में यह देश अमेरिका और चीन के संघर्ष में अपना प्रभाव झोंकता है, तो वह निर्णय लेने वाला भी बन सकता है.
एक्सपर्ट एड प्राइस यह बयान ऐसे समय पर आया है, जब ट्रंप प्रशासन ने भारत पर रूसी तेल और हथियारों के निर्यात पर 50% तक के शुल्क की घोषणा की है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार और रणनीतिक साझेदारी में तनाव बढ़ा है. उन्होंने इस बात पर भी सवाल उठाया कि अमेरिका भारत और ब्राजील, साथ ही यूरोपीय संघ को चीन और रूस के मुकाबले जितना करीब ला सकता था, वह क्यों नहीं कर रहा? उनका कहना है कि अमेरिका को अगर रूस और चीन का सामना करना है तो फिर उसे भारत, ब्राजील और ईयू को अपने करीब लाना चाहिए.
चीन को रोकने के लिए अमेरिका को भारत का साथ जरूरी
प्राइस का ये भी कहना है कि BRICS कोई अमेरिकी विरोधी संगठन नहीं है. उनके अनुसार चीन और भारत के बीच लंबे समय से मतभेद हैं, जैसा कि रूस और चीन के बीच भी हैं, ऐसे में ब्रिक्स को एक ऐसा संगठन बता देना जो हमेशा अमेरिका-पश्चिम के खिलाफ रहेगा, सही नहीं है. चीन विरोधी गठबंधन को मजबूत करने के बजाय फिलहाल वाशिंगटन ब्रिक्स एकता को मजबूत करने का जोखिम उठा रहा है.
उन्होंने कहा कि अगर हमारी बात अमेरिका माने तो उसे भारत को जितना संभव हो उतना करीब लाने पर काम करना चाहिए, न कि नई दिल्ली को बीजिंग के करीब धकेलने का जोखिम उठाना चाहिए. क्योंकि 21वीं सदी में भारत अगर अपने पत्ते सही ढंग से खेलता है, तो भले वो सबसे शक्तिशाली नहीं, लेकिन प्रभावशाली देश बनना चाहिए.
व्यापार की आड़ में भारत झुकने वाला देश नहीं
अंत एड प्राइस ने कहा कि दुनिया बदल चुकी है, और अब आप व्यापार की आड़ में किसी भी देश को जबर्दस्ती झुका नहीं सकते. आज के दौर में चीन अधिक समृद्ध है, और उसे विश्व मंच पर एक संप्रभु देश होने का पूरा अधिकार है. वैश्वीकरण का यही प्रभाव है कि अब विश्व अर्थव्यवस्था में अधिक समकक्ष प्रतिस्पर्धी हैं.
इस बीच भारतीय काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (ICRIER) ने चेतावनी दी है कि 50% अमेरिकी टैरिफ लगभग 70% भारतीय निर्यात को प्रभावित कर सकता है. इससे निपटने के लिए भारत को नीति सुधार, बाजार विविधीकरण और प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत है.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया है कि भारत अपनी कृषि और अन्य संवेदनशील सेक्टर को बचाने के लिए बहुत भारी कीमत चुकाने को तैयार है. भारत ने अमेरिकी टैरिफ को एकतरफा और अन्यायपूर्ण कदम बताया है.
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