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    राहुल गांधी को जान का खतरा है या नहीं, क्या कांग्रेस अपने ही गेम प्लान में फंस गई?

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    लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने पुणे की विशेष अदालत में पेशी के दौरान अपनी जान को खतरा बताया है और अतिरिक्त सुरक्षा की मांग की है. हालांकि अब खबर आ रही है कि उनके वकील ने कोर्ट को दी गई अर्जी वापस लेने का फैसला लिया है. कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने यह जानकारी देते हुए बताया कि वकील ने बिना राहुल गांधी से परामर्श लिए ये अर्जी डाल दी थी. जिसे अब वापस लिया जा रहा है. सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी का वकील बिना उनसे सलाह लिए उनकी जान को खतरा घोषित कर दिया? सवाल यह भी है कि क्या राहुल गांधी की सुरक्षा में कमी है. क्योंकि उन्हें अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद सबसे तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराई गई है. तो क्या समझा जाए कि यह कांग्रेस का एक और गेम प्लान है? इस तरह के कई बातें सामने आ रही हैं.

    क्या ऐसा हो सकता है कि वकील ने राहुल की जान के खतरे की अर्जी अपने मन से डाली होगी

    इंडियन एक्‍सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक राहुल के वकील ने पुणे कोर्ट में दाखिल अर्जी में लिखा कि वीर सावरकर पर बयान के कारण कुछ लोग मेरे खून के प्यासे हो गए हैं. शिकायतकर्ता नाथूराम गोडसे गोपाल गोडसे के वंशज हैं, जिनका इतिहास हिंसक गतिविधियों से जुड़ा रहा है. शिकायत में यह भी बताया गया था कि दो नेताओं ने मुझे धमकी दी थी. जिसमें एक पुराने कांग्रेसी अब भाजपाई बन चुके रवनीत सिंह बिट्टू हैं. जो अभी नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ा रहे हैं. बिट्टू पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के बेटे हैं. दूसरा नाम तरविंदर सिंह तरवाह का लिया गया है. तरविंदर भी पुराने कांग्रेसी हैं पर दिल्ली विधानसभा में बीजेपी से विधायक हैं.

    लेकिन, अब राहुल के उन्‍हीं वकील ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करके स्वीकार किया कि उन्होंने बिना उनके क्लाइंट के निर्देश या सलाह के एक याचिका दायर की थी, जिसमें जान के खतरे का दावा किया गया था. सवाल उठता है कि क्या वकील सही बोल रहा है? और यदि सही बोल भी रहे हैं तो उनके पास भाजपा के दो नेताओं का अर्जी में नाम उल्‍लेख करने का क्‍या आधार था?

    ऐसा संभव नहीं हो सकता कि बिना राहुल गांधी या कांग्रेस पार्टी के रणनीतिकारों के परामर्श या सहमति के उनके वकील ने उनके नाम से उनकी जान के खतरे की अर्जी दायर कर दी हो. भारतीय कानूनी व्यवस्था में, वकील अपने मुवक्किल की ओर से कार्रवाई करते हैं और उनकी ओर से कानूनी दस्तावेज तैयार करते हैं.लेकिन वास्तव में वकील को अपने मुवक्किल की सहमति या निर्देशों के आधार पर ही आगे बढ़ना होता है. वह भी राहुल गा्ंधी जैसे एक बड़े नेता के संदर्भ में तो कतई कोई भी वकील इतना बड़ा फैसला खुद नहीं ले सकता है.

    एक और तर्क राहुल गांधी के खिलाफ जाता है. वकील कानूनी मामले तो समझता है , इसलिए इस संबंध में वो अपने मन से फैसले ले सकता है पर दो पुराने कांग्रेसी सरदारों से राहुल गांधी को जान का खतरा है यह बात तो वकील ने खुद अपने मन से नहीं ही लिखा होगा. कांग्रेस पार्टी भले कितना भी लीपापोती कर ले. पर रवनीत सिंह बिट्टू और मारवाह का नाम ऐसे ही अपने मन से वकील ने लिख दिया होगा ये बात किसी को हजम नहीं हो सकती.  

    अगर वकील ने डाल ही दी अर्जी तो उसे वापस लेने की क्या जरूरत थी?

    राहुल गांधी के लिए अर्जी वापस लेने के एक नहीं कारण थे. राहुल गांधी, जो कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेता हैं और गांधी परिवार से ताल्लुक रखते हैं, को इस तरह के बयानों से अपनी पार्टी और समर्थकों के बीच गलत संदेश जाने का डर हो सकता है. गोडसे के वंशजों का उल्लेख करके जान का खतरा बताना राजनीतिक रूप से हिंदुत्व समर्थक समूहों और भाजपा के लिए एक मुद्दा बन सकता था. जिससे उनकी छवि को नुकसान पहुंच सकता था.

    यह भी संभव हो सकता है कि राहुल गांधी और उनकी कानूनी टीम ने महसूस किया कि यह अर्जी उनकी रक्षा के लिए प्रभावी नहीं होगी या इसे कोर्ट में गंभीरता से नहीं लिया जाएगा. इसके साथ  जान का खतरा बताने के लिए ठोस सबूत की आवश्यकता होती है, और यदि इस अर्जी में पर्याप्त सबूत नहीं थे, तो यह उनकी विश्वसनीयता को कमजोर कर सकता था.

    राहुल गांधी को अक्सर उनकी राजनीतिक परिपक्वता और निर्णय लेने की क्षमता पर सवाल उठाए जाता रहा है. हो सकता है कि पार्टी को लगा हो कि अर्जी को कमजोरी या डर के रूप में पेश किया जा सकता था, जो उनकी नेता के रूप में छवि को नुकसान पहुंचा सकता था.

    जो भी हो यह साफ दिखता है कि कांग्रेस में सिस्टमेटिक ढंग से कोई काम नहीं हो रहा है. एक छोटी सी बात पर भी पार्टी इतनी उधेड़बुन में रहती है यह घटना से साफ हो गया है. 

    कांग्रेस का कोई गेम प्लान या आंतरिक तालमेल की कमी?

    राहुल गांधी की ओर से पुणे कोर्ट में दायर की गई उस अर्जी को वापस लेना, जिसमें उन्होंने अपनी जान को खतरा बताया था, कई सवाल खड़े करता है. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि नेता अपनी जान का खतरा बताकर आम जनता के बीच विक्टिम कार्ड खेलते रहे हैं. अगर कुछ लोग इसमें कांग्रेस का कोई गेम प्लान देख रहे हैं तो इसमें उनका दोष नहीं है. हो सकता है कि पार्टी ने आम लोगों की हमदर्दी हासिल करने के लिए इस तरह की कोशिश की हो.  पर कांग्रेस के अंदर आंतरिक तालमेल की जबरदस्त कमी के चलते प्लान क्रियान्वित न हो पाया हो. राहुल की ओर से वकील की कार्रवाई पर आपत्ति और अर्जी वापसी का फैसला इस ओर इशारा करता है कि पार्टी एकजुट रणनीति पर काम नहीं कर रही है.

    क्या राहुल गांधी को पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिली हुई है?

    राहुल गांधी, जो वर्तमान में लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं और कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेता हैं, को भारत सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान की जाती है. उनकी सुरक्षा का स्तर समय-समय पर खतरे के आकलन के आधार पर तय होता है, जो खुफिया एजेंसियों द्वारा किया जाता है. कुछ साल पहले तक पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवारों को भी एसपीजी की सिक्युरिटी मुहैया कराई जाती थी. पर अब एसपीजी की सुरक्षा केवल वर्तमान पीएम को ही मिलती है. 

    हालांकि राहुल गांधी को ‘जेड प्लस’ श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है, जो भारत में उच्चतम सुरक्षा स्तरों में से एक है. यह सुरक्षा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) द्वारा दी जाती है, जिसमें लगभग 100 से अधिक सुरक्षाकर्मी शामिल होते हैं. इसके अतिरिक्त, उन्हें उन्नत सुरक्षा सहायता (एडवांस्ड सिक्योरिटी लाइजन या एएसएल) भी प्रदान की जाती है, जो उनके यात्रा और सार्वजनिक कार्यक्रमों के दौरान अतिरिक्त सावधानी बरतती है.  पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेस पार्टी ने कई बार दावा किया कि उनकी सुरक्षा में चूक हुई है.’भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान इस तरह की घटनाएं कई बार हुईं.  दूसरी तरफ सीआरपीएफ कहती है कि राहुल गांधी द्वारा सुरक्षा दिशा-निर्देशों का 113 बार उल्लंघन किया गया जिससे उनकी सुरक्षा मुश्किल हो जाती है. कांग्रेस का तर्क है कि सरकार जानबूझकर उनकी सुरक्षा कमजोर कर रही है.गांधी परिवार के इतिहास में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्याओं को देखते हुए, कुछ लोग मानते हैं कि उन्हें फिर से एसपीजी सुरक्षा दी जानी चाहिए.

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