बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट रिविजन को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में बयानबाज़ी तेज है. इन दावों और आरोपों के बीच आज तक की टीम सीमांचल के अररिया जिले के बैजनाथपुर पहुंची, जहां यह समस्या सबसे गंभीर है.
गांव पहुंचते ही मिले राजमिस्त्री गंगा पासवान, जो इन दिनों काम छोड़कर केवल अपने नाम की तलाश और BLO से संपर्क में लगे हैं. गंगा बार-बार फोन कर रहे हैं, लेकिन या तो कॉल होल्ड पर लगती है या जवाब में उन्हें स्कूल में कागज देने की सलाह मिलती है.
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मंजू देवी, जो पढ़ी-लिखी नहीं हैं, अपना वोटर कार्ड लेकर आईं लेकिन यह भी पता नहीं लगा पा रहीं कि उनका नाम लिस्ट में है या नहीं. समाजसेवी रंजीत बताते हैं कि “फ़ॉर्म घर-घर नहीं पहुंचे, मृतकों के नाम शामिल हैं और कई जीवित ग्रामीणों के नाम गायब हैं.”
गरीबों की चिंता: सरकारी लाभ और वोट का अधिकार
मंजू देवी कहती हैं, “अगर नाम नहीं जुड़ा तो सरकारी लाभ नहीं मिलेगा. हम गरीब आदमी हैं, वोटर लिस्ट में नाम जरूरी है.” फिकनी देवी कहती हैं कि कागज होने के बावजूद वोटर कार्ड नहीं बन रहा, जिससे उनका डर और बढ़ गया है. इसी तरह नरेंद्र यादव भी चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया से नाराज हैं, और बताते हैं कि उनकी बेटी का नाम भी वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है.
बैजनाथपुर गांव में ही रंजन पासवान बताते हैं कि उनका और उनकी पत्नी रीना देवी का नाम लिस्ट से गायब है, जबकि पहले वोट दे चुके हैं. उन्होंने बताया कि रिवीजन प्रक्रिया के दौरान उनका नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है. अपना पूरा समय वोटर लिस्ट में अपना नाम खोजने में लगा रहे हैं. रेखा देवी, जिनके पति का निधन हो चुका है, कहती हैं कि अगर नाम नहीं जुड़ा तो बच्चों का पालन-पोषण मुश्किल हो जाएगा. मसलन, उनकी चिंता इस बात को लेकर है कि अगर वोटर लिस्ट में नाम नहीं रहेगा तो वे सरकारी लाभ से वंचित रह जाएंगे.
मृतकों के नाम अब भी मौजूद
बैजनाथपुर वार्ड नंबर 6 में 12 ऐसे लोग हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है. फिर भी उनके नाम वोटर लिस्ट में शामिल है. चंद्रकला देवी के बेटे का नाम नहीं है, लेकिन उनके दिवंगत पति का नाम मौजूद है. सोनिया देवी, जो सालों पहले गुजर चुकी हैं, उनके नाम से भी वोट डालने की संभावना है. चंद्रकला देवी और सोनिया देवी के परिजनों ने शिकायत की थी, लेकिन प्रक्रिया पूरी करने के बावजूद बदलाव नहीं हुआ. सोशल एक्टिविस्ट रंजीत कहते हैं कि, 14 मृतकों के नाम वोटर लिस्ट में हैं, जबकि कई जीवित लोगों के नाम लिस्ट से गायब हैं.
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चुनाव आयोग की टाइमलाइन और ग्रामीणों की मुश्किलें
चुनाव आयोग के मुताबिक, 27 अगस्त तक आपत्ति दर्ज कराई जा सकती है और नाम जोड़ने या सुधार के लिए फ़ॉर्म 6, 7, 8 भरे जा सकते हैं, लेकिन गंगा पासवान चार दिन से दौड़-भाग कर रहे हैं. उनकी पत्नी आरती देवी कहती हैं कि वे इसी देश के नागरिक हैं, फिर भी कागज लेने वाला कोई नहीं है. बेटी सोनी कुमारी कहती हैं, “हमारे नाम के बिना नागरिक प्रमाण अधूरा है.”
BLO से आमना-सामना
गंगा पासवान के घर का निवास प्रमाण पत्र भी पर्याप्त साबित नहीं हो रहा. टीम गंगा को लेकर बैजनाथपुर प्राथमिक विद्यालय पहुची, जहां BLO राजीव से मुलाकात हुई. राजीव ने उन्हें फ़ॉर्म भरने और ब्लॉक के कैंप जाने की सलाह दी. गंगा की नाराज़गी थी कि यह बात पहले क्यों नहीं बताई गई. गंगा पासवान के लिए वोटर कार्ड सिर्फ़ पहचान का नहीं, बल्कि उनकी बेटी के सम्मान का सवाल है.
यह मामला दिखाता है कि वोटर लिस्ट रिविजन की प्रक्रिया कितनी मुश्किल और अव्यवस्थित हो सकती है, और इसका सीधा असर गरीब ग्रामीणों के अधिकारों और सरकारी लाभ पर पड़ता है.
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