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    EVM से वोटर लिस्ट तक… चुनाव आयोग पर विपक्ष के वार, वाजिब सवाल या सियासी हड़बड़ी?

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    आज बात करेंगे राजनीति के नए मुद्दे के बारे में और ये मुद्दा है चुनावों की चोरी का. विपक्ष का आरोप है कि बीजेपी, चुनाव आयोग के साथ मिलकर वोटर लिस्ट के साथ चुनाव और सत्ता की चोरी कर रही है. जिस वक्त राहुल गांधी ये आरोप लगा रहे थे, उस वक्त कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के एक मंत्री ने कह दिया कि अगर ऐसा है तो कर्नाटक में इसके लिए खुद कांग्रेस जिम्मेदार है. इस मंत्री को इस्तीफा देना पड़ गया.

    चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल

    देश के विपक्षी सांसद चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि भारत में चुनावों की चोरी हो रही है. दूसरी तरफ कर्नाटक के सहकारिता मंत्री के. एन. राजन्ना हैं, जिनसे आज इसलिए इस्तीफा ले लिया गया क्योंकि उन्होंने वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के लिए कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार को ही जिम्मेदार बताया था. पिछले हफ्ते राहुल गांधी ने कर्नाटक की बेंगलूरु सेंट्रल लोकसभा सीट पर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी होने का आरोप लगाया. उनका कहना है कि पिछले साल जब इस सीट पर लोकसभा के चुनाव हुए, तब इस वोटर लिस्ट में 1 लाख से ज्यादा फर्जी वोटर्स के नाम शामिल थे और इन्हीं वोटर्स की मदद से बीजेपी ने इस क्षेत्र के चुनाव को चोरी कर लिया और यहां से बीजेपी लोकसभा का चुनाव जीत गई. राहुल गांधी के इन आरोपों पर पूरे विपक्ष ने उनका समर्थन किया और ये कहा कि राहुल गांधी भारत के लोकतंत्र को बचाने की असली लड़ाई लड़ रहे हैं.

    लेकिन जब कर्नाटक सरकार में सहकारिता मंत्री के. एन. राजन्ना ने ये कहा कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ी के लिए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ही जिम्मेदार है और कांग्रेस सरकार के ही शासन में ये वोटर लिस्ट तैयार हुई थी तो इस पर विवाद खड़ा हो गया. बड़े-बड़े नेता के. एन. राजन्ना से नाराज हो गए और आखिरकार आज उन्होंने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को सौंप दिया. इसके बाद ये चर्चा भी शुरू हो गई कि राजन्ना ने पार्टी लाइन के खिलाफ जाकर बयान दिया इसलिए उन्हें इसकी कीमत चुकानी पड़ी. 

    वोटर लिस्ट तैयार करने में सरकार की कितनी भूमिका?

    ऐसा नहीं है कि इससे सिर्फ राजन्ना का नुकसान हुआ. इससे कांग्रेस और राहुल गांधी का भी नुकसान हुआ. आज हर कोई यही कह रहा है कि राजन्ना के आरोप शायद सही थे इसलिए सरकार ने उनसे इस्तीफा ले लिया. हालांकि यहां बड़ी बात ये है कि वोटर लिस्ट को तैयार करने में सरकार की सीधे रूप से कोई भूमिका नहीं होती. सरकार का काम सिर्फ इतना होता है कि वो चुनाव आयोग के साथ मिलकर राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी और जिला निर्वाचन अधिकारी को चुनती है और इसके बाद जब ये अधिकारी वोटर लिस्ट का नया ड्राफ्ट तैयार करते हैं तो ये काम बूथ लेवल ऑफिसर यानी BLO का होता है और ये BLO भी राज्य सरकार के ही कर्मचारी होते हैं. जैसे- सरकारी टीचर, पंचायत सचिव और पटवारी जैसे कर्मचारी.

    वोटर लिस्ट का फाइनल ड्राफ्ट जारी होने से पहले भी वोटर्स की सही पहचान के लिए सरकारी कर्मचारियों की मदद ली जाती है और ये सारा काम उन चुनाव अधिकारियों की देखरेख में होता है, जिन्हें राज्य सरकार ने चुनने में चुनाव आयोग की मदद की होती है और जिन्हें राज्यपाल ने नियुक्त किया होता है. यानी राहुल गांधी अगर ये कहते हैं कि उन्हें कर्नाटक की एक लोकसभा सीट पर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी मिली है तो यहां इस हिसाब से राज्य की कांग्रेस सरकार पर भी सवाल उठाए जा सकते हैं. हालांकि वोटर लिस्ट तैयार करने में राज्य सरकार की सीधे तौर पर कोई भूमिका नहीं होती.

    राजन्ना ने राहुल गांधी के आरोपों पर जितनी भी बातें कहीं, उन्हें लेकर सवाल उठाया जा सकता है लेकिन पिछले कुछ समय से राजन्ना कर्नाटक में मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने का संकेत दे रहे थे और पार्टी में उन्हें लेकर सबकुछ ठीक नहीं था. यानी हो सकता है कि पार्टी पर दबाव बनाने के लिए राजन्ना ने राहुल गांधी के आरोपों पर अपनी ही सरकार को घेरा और इसके बाद उनका इस्तीफा हो गया. हालांकि इन सबके बाद भी इससे ये साबित नहीं होता है कि उन्होंने जो सवाल उठाए, वो गलत थे. राजनीति में इस तरह की घटनाओं के लिए एक खास शब्द का इस्तेमाल होता है और वो शब्द है- Audio Masking. इसका मतलब होता है अनचाही आवाज को किसी दूसरी आवाज से दबा देना. उदाहरण के लिए के. एन. राजन्ना की आवाज विपक्ष के मुद्दे को कमजोर कर रही थी इसलिए विपक्ष ने यहां Audio Masking से इस आवाज को अपनी आवाज से दबा दिया.

    विपक्षी सांसदों का पैदल मार्च

    आज विपक्षी दलों के लगभग सभी सांसदों ने संसद भवन से चुनाव आयोग तक पैदल मार्च निकालने का ऐलान किया और ये कहा कि वो चुनाव आयोग के दफ्तर जाकर अपनी शिकायत दर्ज कराएंगे. कांग्रेस का ये भी कहना था कि राहुल गांधी ने 7 अगस्त को फर्जी वोटर्स के मुद्दे पर जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, उसी तरह का प्रेजेंटेशन वो चुनाव आयोग को भी देने के लिए तैयार हैं. लेकिन जिस वक्त ये पैदल मार्च शुरू हुआ, उस दौरान दिल्ली पुलिस की सख्ती से हंगामा खड़ा हो गया. दिल्ली पुलिस का कहना था कि विपक्षी दलों ने इस विरोध प्रदर्शन की इजाजत ही नहीं ली थी जबकि विपक्ष का कहना था कि शांतिपूर्वक चुनाव आयोग के दफ्तर जाने के लिए इजाजत लेने की क्या जरूरत है.

    इस बात पर काफी विवाद हुआ और अखिलेश यादव ने तो बैरिकेड्स पर चढ़कर चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचने की कोशिश की. इस विरोध प्रदर्शन में कुछ सांसदों की तबियत भी बिगड़ गई. मार्च के दौरान TMC सांसद महुआ मोइत्रा अचानक बेहोश हो गईं जबकि TMC सांसद मिताली बाग और कांग्रेस सांसद संजना जाटव को भी प्रदर्शन के दौरान चक्कर आ गए और स्थिति ये हो गई कि उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. अभी बहुत सारे लोगों को ऐसा लग रहा है कि पुलिस ने विपक्षी सांसदों के खिलाफ कार्रवाई की, जिससे उनकी तबियत खराब हो गई लेकिन ये सच नहीं है. सच्चाई ये है कि गर्मी ज्यादा होने से इन सांसदों की तबियत खराब हुई और काफी देर तक संसद भवन के आसपास अफरा-तफरी मची रही. विपक्ष का आरोप है कि जब महुआ मोइत्रा की तबियत बिगड़ी, तब भी पुलिस ने उन्हें हिरासत में रखा और राहुल गांधी समेत कई नेता उनकी मदद कर रहे थे.

    चुनाव आयोग ने विपक्ष के 30 सांसदों के साथ बैठक करने पर सहमति जताई थी लेकिन विपक्ष के 300 से ज्यादा लोकसभा और राज्यसभा के सांसद सड़कों पर चुनाव आयोग की घेराबंदी करने पहुंच गए और इनमें कुछ सांसदों को तो इतनी गर्मी लग रही थी कि वो प्रदर्शन के दौरान अपनी गाड़ियों में जाकर बैठ गए थे.

    हंगामे में बर्बाद हो रहे करोड़ों रुपये  

    साल 2014 से 2025 के बीच लोकसभा की कुल 1 हजार 450 घंटे की कार्यवाही हंगामे, वॉकआउट और नारेबाजी की भेंट चढ़ चुकी है. लोकसभा की कार्यवाही का कुल 32 प्रतिशत समय इस हंगामे में बर्बाद हुआ, जो यूपीए की सरकार के मुकाबले 5 प्रतिशत ज्यादा है. विपक्ष कहता है कि उसकी आवाज को दबाया जाता है जबकि आंकड़े कहते हैं कि लोकसभा में सबसे ज्यादा आक्रामक आज का विपक्ष है, जिसके हंगामे के कारण संसद की कार्यवाही बार-बार स्थगित होती है और यहां सिर्फ समय की बर्बादी नहीं हो रही बल्कि आम जनता के टैक्स के पैसों की भी बर्बादी हो रही है.

    पिछले 11 सालों में लोकसभा की कुल 1 हजार 450 घंटे की कार्यवाही बर्बाद होने से दो हजार 175 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है और यहां बात सिर्फ इस नुकसान की नहीं है. मुद्दे की बात ये है कि पहले लोकसभा के कुछ सत्र में ईवीएम को लेकर हंगामा हुआ और अब ईवीएम की जगह वोटर लिस्ट के जरिए चुनावों को चुराने का आरोप लगाया जा रहा है. इनमें भी जब ईवीएम को लेकर आरोप लगे थे, तब भी विपक्ष दावे के साथ कहता था कि ईवीएम में कोई सेटिंग हुई है. पिछले साल जब महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए थे, जब 10 सीटों पर ईवीएम में गड़बड़ी होने का आरोप लगा गया. ये मुद्दा विपक्ष ने पूरे देश में उठाया और ईवीएम को लेकर खूब राजनीति हुई. इसके बाद चुनाव आयोग ने इस मामले की जांच की और ईवीएम में दर्ज हुए वोटों का VVPAT की पर्चियों से मिलान किया और जब ये मिलान हुआ तो सभी ईवीएम बिल्कुल सही मिलीं. लेकिन बड़ी बात ये है कि जो नेता ईवीएम में सेटिंग होने का आरोप लगा रहे थे, उन्होंने पिछले हफ्ते आई इस खबर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. अब विपक्ष ने ईवीएम को भुला दिया है और उसका कहना है कि असली चोरी तो वोटर लिस्ट में हो रही है. 

    वोटर लिस्ट में कई गड़बड़ियों के आरोप

    राहुल गांधी का आरोप है कि वोटर लिस्ट में कई गड़बड़ियां हैं और इसमें ऐसे कई फर्जी वोटर्स के नाम हैं, जिनकी मदद से बीजेपी चुनावों में धांधली करके जीत जाती है. वो ये भी कहते हैं कि जिन सीटों पर बीजेपी का जीतना मुश्किल होता है, वहां हजारों-लाखों में फर्जी वोटर्स का नाम वोटर लिस्ट में डाला जाता है. ये ऐसे वोटर होते हैं, जिन्होंने एक से ज्यादा जगहों पर वोटर आईडी कार्ड बनवाए होते हैं या जिनका पता गलत होता है या जिनके वोटर आईडी कार्ड पर फोटो ही नहीं होती या जिनमें दो या उससे ज्यादा वोटर आईडी कार्ड पर एक ही व्यक्ति की फोटो होती है. राहुल गांधी कह रहे हैं कि उन्होंने अभी सिर्फ कर्नाटक की एक लोकसभा सीट की वोटर लिस्ट की जांच करवाई है और इसमें 1 लाख से ज्यादा वोटर फर्जी निकले है लेकिन हो सकता है कि ये गड़बड़ियां पूरे देश की वोटर लिस्ट में फैली हों.

    राहुल गांधी के आरोपों में बारीक गैप

    राहुल गांधी जो आरोप लगा रहे हैं, वो गंभीर हैं लेकिन इनमें एक गैप भी है, जो दूर से देखने पर नजर नहीं आता. लेकिन पास से इसे देखा जाए तो कई खामियां दिखती हैं. जैसे राहुल गांधी कह रहे हैं कि उन्हें वोटर लिस्ट में फर्जी वोटर्स मिले हैं लेकिन इससे ये साबित नहीं होता कि इन सारे फर्जी वोटर्स के नाम से चुनावों में वोट डाले गए. दूसरा- ये वोटर लिस्ट चुनावों से पहले ही जारी हो जाती है और हर राजनीतिक पार्टी के लिए उपलब्ध रहती है. अगर किसी क्षेत्र या सीट की वोटर लिस्ट में गड़बड़ी है तो सवाल यही है कि कांग्रेस ने इस वोटर लिस्ट की चुनावों से पहले जांच क्यों नहीं कराई.

    तीसरा- ये भी मुमकिन है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में जिन 99 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते, वहां भी ऐसे डुप्लीकेट वोटर्स या कलस्टर वोटर्स हो सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो क्या इसका मतलब ये माना जाएगा कि इन सीटों पर कांग्रेस या किसी और दल ने चुनाव चुराए हैं. असल में ये पूरा मुद्दा वोटर लिस्ट को सुधारने का है. हमारे देश में शुरुआत से ही ये समस्या रही है कि लोग कई बार एक से ज्यादा जगहों पर अपना वोट बनवा लेते हैं या जो वोटर मर चुके हैं, उनका नाम भी वोटर लिस्ट में मौजूद रहता है या बिना फोटो के वोटर आईडी कार्ड बन जाते हैं.

    ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चुनाव आयोग के पास इस काम के लिए अपना मेकैनिज्म नहीं है. वो हर राज्य के बीएलओ पर निर्भर करता है और कुछ जगहों पर वोटर रिवीजन के काम में इतनी लापरवाही होती है कि वोटर लिस्ट का शुद्धिकरण हो ही नहीं पाता. इसके अलावा जब चुनाव आयोग बिहार जैसे राज्यों वोटर लिस्ट की गंभीरता से जांच करता भी है तो भी इस पर राजनीति होने लगती है और मुद्दे को घुमा दिया जाता है.

    EC ने शपथ पत्र जमा कराने को कहा 

    आज भी राहुल गांधी ने ये आरोप लगाया कि बेंगलूरु के साथ महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों में गड़बड़ी हुई और इन राज्यों के नतीजे सही नहीं थे. लेकिन जब इन्हीं दावों को लेकर कर्नाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव आयोग राहुल गांधी से शपथ पत्र जमा कराने के लिए कह रहे हैं तो वो ऐसा नहीं कर रहे. इससे ये सवाल भी खड़ा होता है कि अगर राहुल गांधी के आरोपों में सच्चाई है तो वो शपथपत्र देकर अपना आरोपों की खुद जिम्मेदारी क्यों नहीं लेना चाहते.

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